चुनावी संकट बन गया कांग्रेस के समक्ष अब अस्तित्व का संकट

पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश ने 2017 में ही कह दिया था कि कांग्रेस के समक्ष पहले यदाकदा चुनावी संकट आता रहता था. पर, अब अस्तित्व का संकट उपस्थित हो चुका है. कश्मीर पर मोदी सरकार की ताजा कार्रवाई को लेकर कांग्रेस में उभरी गंभीर मतभिन्नता ने जयराम की आशंका  सच साबित कर दी है. जयराम ने कहा था कि पार्टी ने 1977 में चुनावी संकट का सामना किया. पार्टी ने 1996 से 2004 तक चुनावी संकट का सामना किया. पर, आज जो कुछ हो रहा है, वह चुनावी संकट नहीं है. वह अस्तित्व का संकट है.
यदि हम अपने दृष्टिकोण में लचीले नहीं हुए तो हम अप्रासंगिक हो जायेंगे. जयराम की इस टिप्पणी के अलावा कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के स्तर पर क्या अगस्त के इस महीने में इस बात पर कोई चिंतन चल रहा है कि ‘करो या मरो’ का नारा देने वाली कांग्रेस की आज यह हालत कैसे हुई? उसके लिए कौन-कौन लोग जिम्मेदार रहे? 
कांग्रेस को मजबूत करने के उपाय : स्वस्थ लोकतंत्र के लिए एक मजबूत प्रतिपक्ष की जरूरत होती है. पर, आज देश की मुख्य प्रतिपक्षी पार्टी यानी  कांग्रेस की स्थिति डांवाडोल लग रही है. पूर्वाग्रहमुक्त लोगों के लिए भी यह चिंता की बात है. पर, कुछ अन्य लोग भी चिंतित हैं, जो  कांग्रेसी सत्ता से परोक्ष या प्रत्यक्ष रूप से लाभ उठाते रहे हैं. 

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