ब्रांड ममता और तृणमूल कांग्रेस का कायापलट करने में जुटे प्रशांत किशोर

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर के साथ अपनी दो घंटों की मुलाकात के महज चार दिन बाद 10 जून को, मुख्यमंत्री कार्यालय (सीएमओ) के तहत एक जनशिकायत प्रकोष्ठ की स्थापना कर दी. इस केंद्र का संचालन तो सरकारी बाबू करते हैं, पर इसके प्रबंधन और निगरानी की ज़िम्मेदारी बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता के पास है, जो पार्टी की साइबर सेल भी संभाल चुके हैं.
ममता बनर्जी ने इसके बाद 22 जून का अपना ‘कट मनी’ वाला बयान दिया था, जिसमें उन्होंने सरकारी योजनाओं में कमीशन लेने के खिलाफ पार्टी पदाधिकारियों को चेतावनी दी थी. पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने दिप्रिंट से बातचीत में मुख्यमंत्री की उस टिप्पणी पर भी किशोर की छाप होने का उल्लेख किया था.
उसके बाद के एक महीने के दौरान, संयमित दिखती ममता बनर्जी द्वारा शुरू जनता से जुड़ने के कार्यक्रमों पर किशोर की विशेषज्ञता और रणनीतियों की छाप साफ नज़र आती है. भाजपा के बढ़ते दबदबे से अपने जनाधार की रक्षा का हरसंभव प्रयास कर रहीं. मुख्यमंत्री का रवैया ज़्यादा पेशेवर हो गया है और उनकी प्रतिक्रियाएं ज़्यादा संयत.
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किशोर की छाप स्पष्ट नज़र इसी सोमवार को तब दिखी, जब बनर्जी ने ‘दीदी के बोलो’ (दीदी से बात करो) वेबसाइट की शुरुआत की. इस वेब प्लेटफॉर्म के ज़रिए लोग मुख्यमंत्री को अपने सुझावों से और शिकायतों से अवगत करा सकते हैं.
वेबसाइट पर उपलब्ध एक फॉर्म में नाम, लिंग, फोन नंबर, वाट्सएप नंबर, जिला और चुनाव क्षेत्र संबंधी जानकारियां भरने के बाद लोग अपने सुझाव या अपनी शिकायतें दर्ज करा सकते हैं.
वेबसाइट का उद्घाटन करते वक्त बनर्जी ने ज़ोर देकर कहा कि ये कोई चुनावी तिकड़म नहीं है, साथ ही वह भाजपा पर परोक्ष हमला करने से भी नहीं चूकीं. उन्होंने कहा, ‘ये अपनी पार्टी के आधुनिकीकरण की दिशा में एक कदम है. ये चुनाव प्रचार के लिए नहीं है, क्योंकि चुनाव तो अभी 18 महीने दूर हैं. यह ज़मीनी स्तर पर जनता से संबंधों को मज़बूत करने का प्रयास है.’
बनर्जी ने आगे कहा, ‘हम उस तरह से एक संगठित पार्टी नहीं है. कई बड़े दल हैं, जिनके पास अपार धन है और जो डेटा इकट्ठा करते रहते हैं. सारा डेटा वे दूसरे उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल करते हैं. हम तो सिर्फ लोगों के बीच पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं.’
प्रशांत किशोर की छाप
बनर्जी ने कोलकाता में 6 जून को किशोर से मुलाकात की थी, यानि लोकसभा चुनावों के परिणाम घोषित होने के मात्र दो हफ्ते बाद. ऐसा प्रतीत होता है कि पश्चिम बंगाल में भाजपा के बढ़ते असर से निपटने के लिए मुख्यमंत्री राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर पर भरोसा कर रही हैं, जिन्हें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (2014), बिहार में नीतीश कुमार (2015), पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह (2017) और आंध्र प्रदेश में जगन रेड्डी (2019) की चुनावी जीतों का श्रेय दिया जाता है.
तृणमूल कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने दिप्रिंट को बताया कि किशोर के संगठन इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी (आईपैक) ने कोलकाता बैठक के तत्काल बाद अपना काम शुरू कर दिया था, और उसके प्रतिनिधियों ने राज्य के राजनीतिक मुद्दों को समझने के लिए राज्य के ग्रामीण इलाकों के दौरे किए हैं.
किशोर के जुड़ने के बाद, बनर्जी ने कई सरकारी नीतियों में संशोधन किए हैं, जिनमें ‘ऊंची जातियों’ को 10 फीसदी आरक्षण तथा राज्य पुलिस बल, प्राथमिक शिक्षकों और त्रिस्तरीय पंचायती व्यवस्था से जुड़े कर्मियों के वेतन ढांचे की समीक्षा की उनकी घोषणाएं शामिल हैं.
बनर्जी ने ये भी कहा है कि उनकी पार्टी के नेता राज्य के 10,000 गांवों की यात्रा करेंगे, स्थानीय लोगों की बातों को गंभीरता से सुनेंगे और समस्याओं को समझने के लिए यदि ज़रूरी लगा तो गांवों में एक-दो दिन रुकेंगे भी. पार्टी नेता बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं के घरों में भोजन भी करेंगे.
उन्होंने कहा, ‘पार्टी तय करेगी कि किसे कहां जाना है. अपनी मर्ज़ी से कोई कहीं नहीं जा सकता.’ एक अन्य घटनाक्रम में लगभग दो महीनों के अंतराल के बाद, बनर्जी ने 26 जुलाई से ज़िलों में प्रशासनिक बैठकों का सिलसिला दोबारा शुरू कर दिया है. सरकारी सूत्रों के अनुसार ऐसी बैठकें आगे भी चलती रहेंगी, जिसमें मुख्यमंत्री अधिकारियों की अपनी टीम के साथ ज़िलों में जाती हैं और वहां विधायकों, नेताओं, पंचायत प्रतिनिधियों और स्थानीय नौकरशाहों से सीधे संवाद करती हैं.
मुख्यमंत्री ने अपनी पार्टी नेताओं को भी सख्त निर्देश दिए हैं कि वे किशोर के निर्देशों और सुझावों का पालन करें. हालांकि, पार्टी के भीतर इस पर मिश्रित प्रतिक्रिया देखने को मिली है. तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने जहां किशोर के निर्देशों के पालन पर अपनी सहमति व्यक्त की है, वहीं मध्यम दर्जे के पदाधिकारियों और ज़मीनी कार्यकर्ताओं ने इसे लेकर अपने संदेह व्यक्त किए हैं.
तृणमूल के एक सांसद ने अपना नाम नहीं दिए जाने की शर्त पर कहा, ‘दीदी काफी समय से सब कुछ खुद संभाल रही हैं. लंबे और हिंसक संघर्ष का उनका अपना इतिहास रहा है. इसलिए, कभी-कभार उन्हें भी बैकअप की ज़रूरत होती है.’
‘कभी भी साथ छोड़ सकने वाले किसी अवसरवादी नेता पर भरोसा करने से बेहतर है पेशेवर बैकअप की व्यवस्था करना. अपने बीच के गद्दारों के कारण ही हम इस हाल में पहुंचे हैं. प्रशांत जी हमें जो भी बता रहे हैं, हम उससे आश्वस्त हैं.’
सब सहमत नहीं
पर तृणमूल कांग्रेस का एक वर्ग बंगाल की राजनीति में अभी-अभी दाखिल हुए राजनीतिक विशेषज्ञ को लेकर आशंकित हैं. वे अभी तक किशोर के विचारों को लेकर आश्वस्त नहीं हुए हैं और उनका यहां तक मानना है कि मुख्यमंत्री के ‘कट मनी’ वाले बयान से पार्टी को नुकसान पहुंचा है.
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बीरभूम के एक पार्टी नेता ने दिप्रिंट से कहा, ‘हमें पता है कि हमारे नए रणनीतिकार ने दीदी को कट मनी पर बोलने की सलाह दी थी. और ये सच है कि उस बयान से उनकी ईमानदार और साफ-सुथरी छवि उभरती है. पर उन नेताओं और कार्यकर्ताओं का क्या जो पार्टी तंत्र के निचले स्तर पर हैं और जिनका आम जनता से रोज़ संपर्क होता है? क्या हम जनता का भरोसा नहीं खो रहे? हम समझ सकते हैं कि किशोर को ममता बनर्जी के ब्रांड को स्थापित करने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है, पर उन्हें पार्टी की छवि की भी चिंता करनी चाहिए.’
तृणमूल के कुछ हलकों में ये भी धारणा है कि किशोर तृणमूल खेमे में भाजपा के ‘ट्रॉजन हॉर्स’ हैं. एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘किशोर जद(यू) के एक वरिष्ठ पदाधिकारी हैं, जो कि (भाजपा नेतृत्व वाले) एनडीए का घटक है. हम उन पर एक मित्र जैसा भरोसा कैसे कर सकते हैं? हमारे नेताओं ने हमसे कहा है कि वह एक पेशेवर विशेषज्ञ हैं और पिछले पांच वर्षों में उनकी सफलता का अनुपात 80 फीसदी से ज़्यादा रहा है. इसलिए, हमें उन पर भरोसा करना होगा.’

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