शीला दीक्षित के बाद अब कौन? दिल्ली कांग्रेस में फिर गहराया नेतृत्व का संकट

कांग्रेस की दिग्गज नेता और दिल्ली की तीन बार मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित का शनिवार को निधन हो गया. अजय माकन के इस्तीफे के बाद दिल्ली प्रदेश कांग्रेस की कमान 81 साल की शीला ही संभाल रही थीं. शीला लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को सीट भले न दिला सकी हों, लेकिन पार्टी को तीसरे स्थान से दूसरे पर लाकर विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने उम्मीदें जरूर पैदा कर दीं. ऐसे में उनके अचानक निधन के बाद एक बार फिर दिल्ली कांग्रेस में नेतृत्व का संकट खड़ा हो गया है.
शीला दीक्षित दिल्ली में कांग्रेस का सबसे भरोसेमंद चेहरा थीं. उनका निधन ऐसे वक्त पर हुआ है जब कांग्रेस, खासतौर पर गांधी परिवार को उनकी सलाह की सबसे ज्यादा दरकार थी. कांग्रेस सिर्फ दिल्ली में नहीं बल्कि देश में भी अपने सबसे गंभीर संकट से जूझ रही है. इस समय शीला दीक्षित की मौजूदगी पार्टी की भावी दशा-दिशा तय करने में अहम हो सकती थी. दिल्ली प्रदेश कांग्रेस भी उन्हीं के सहारे अपनी खोई हुई सियासी जमीन पाने की कवायद कर रही थी. शीला के जाने के बाद अब कांग्रेस की कमान किसके हाथ में होगी? इस सवाल का कोई आसान जवाब न तो कांग्रेस के पास है और न ही सियासी जानकार ऐसी कोई भविष्यवाणी करने का जोखिम उठा रहे हैं.
लोकसभा चुनाव से ऐन पहले अजय माकन ने प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने 1998 की तर्ज पर प्रदेश कांग्रेस की कमान एक बार फिर शीला दीक्षित को सौंपी. शीला ने इस जिम्मेदारी को बाखूबी निभाया और उन्होंने लोकसभा चुनाव में ज्यादातर नेताओं की इच्छा के विपरीत, आम आदमी पार्टी से लोकसभा चुनाव में गठबंधन नहीं किया.
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस भले ही हार गई, लेकिन पार्टी तीसरे स्थान से उठकर दूसरे पर पहुंच गई. कांग्रेस को 21 फीसदी वोट मिले और दिल्ली की 7 में से 6 सीटों पर पार्टी के प्रत्याशियों को आम आदमी पार्टी से ज्यादा वोट मिले. इस तरह दिल्ली में मुख्य मुकाबला बीजेपी बनाम कांग्रेस रहा. इससे दिल्ली में कांग्रेस कार्यकर्ताओं में एक बार फिर वापसी की आस जागी थी.  
माना जा रहा था कि कांग्रेस 2020 में होने वाला अगला विधानसभा चुनाव उनके ही नेतृत्व में लड़ेगी. लेकिन अब पार्टी के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि आखिर शीला का उत्तराधिकारी कौन होगा? कांग्रेस के लिए यह चुनौती इसलिए भी काफी बड़ी है, क्योंकि इस वक्त न सिर्फ कांग्रेस कमजोर हो चुकी है बल्कि गुटबाजी भी इसमें चरम पर है.
दरअसल शीला दीक्षित ने 1998 से 2013 तक 15 साल दिल्ली में जो विकास कार्य किए हैं, उसका लोहा उनके विरोधी भी मानते हैं. यही वजह है कि पार्टी में उन्हें चुनौती देने वाले नेता भी जनता के बीच जाकर शीला के नाम पर ही वोट मांगते रहे हैं. लेकिन अब शीला के दुनिया को अलविदा कह जाने के बाद कांग्रेस नेताओं का यह बड़ा हथियार अपनी धार गवां बैठा है.  
मौजूदा समय में दिल्ली में ऐसा कोई नेता नहीं है जो शीला के उत्तराधिकारी होने का दावा कर सके. मौजूदा डॉ. अशोक वालिया, अजय माकन, राजकुमार चौहान, अरविंदर सिंह लवली, परवेज हाशमी और हारून यूसुफ जैसे नेता हैं. लेकिन शीला के जाने से कांग्रेस में जो वैक्यूम पैदा हुआ है, उसे भरना इन नेताओं के लिए एक बेहद मुश्किल चुनौती होगी.

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