इन पार्टियों की राष्ट्रीय सदस्यता पर मंडराया काला साया !

देश की तीन राजनीतिक पार्टियों का राष्ट्रीय पार्टी होने का दर्जा छिन सकता है. हालिया लोकसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन नहीं करने वाली पार्टियों पर ये खतरा मंडरा रहा है. राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी), तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) राष्ट्रीय पार्टी होने का दर्जा खो सकती हैं.
यह पार्टियां निर्वाचन प्रतीक (आरक्षण और आवंटन) आदेश, 1968 के मानक पर खरी नहीं उतर पा रही हैं. इसी का हवाला देकर चुनाव आयोग ने  इन पार्टियों को कारण बताओ नोटिस भेजा गया है. नोटिस में ये पूछा गया है कि इनसे राष्ट्रीय पार्टी होने का दर्जा क्यों नहीं छीना जाना चाहिए?
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क्या आपको पता है कि किस पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी माना जाता है और इसके लिए कौन सी चीज़ों की दरकार होती है? आइए, डालते हैं इससे जुड़ी जानकारी पर एक नज़र-
क्या है पार्टियों को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा देने का नियम
पार्टी कम से कम 3 अलग-अलग राज्यों को मिलाकर लोकसभा की 2 प्रतिशत सीटें (2014 के चुनाव के अनुसार 11 सीटें) जीतती है.
पार्टी 4 लोकसभा सीटों के अलावा लोकसभा या विधान सभा चुनाव में चार राज्यों में 6 प्रतिशत वोट प्राप्त करती है.
पार्टी को चार या चार से अधिक राज्यों में क्षेत्रीय पार्टी का दर्जा हासिल हो तो भी उसे राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल सकता है.
इन तीन पार्टियों पर 2014 के आम चुनाव के नतीजों के बाद भी ऐसी ही तलवार लटकी थी. हालांकि, 2016 में जब चुनाव आयोग ने राष्ट्रीय पार्टी के दर्जे से जुड़े नियम बदले तब जाकर इन्हें राहत मिली. नए नियम के तहत पार्टियों को मिलने वाला राष्ट्रीय पार्टी के दर्जे पर हर 10 साल में पुनर्विचार किया जाना है. पहले ये हर पांच साल के समय पर होता था.
2014 के आम चुनाव में मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का सूपड़ा साफ हो गया था. ऐसे में पार्टी पर भी ये ख़तरा मंडरा रहा था. लेकिन 2019 के आम चुनाव में 10 सीटें जीतने वाली बसपा के ऊपर से फिलहाल ये ख़तरा टल गया है. वहीं, मेघालय में भारतीय जनता पार्टी के साथ सरकार चला रही नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल हुआ है.
इस आम चुनाव में टीएमसी को कुल 22 सीटें मिली हैं, एनसीपी को पांच और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया को दो सीटें मिली हैं. ऐसे में सीपीआई चार सीटों वाली शर्त को पूरा नहीं करती. वहीं, इसमें टीएमसी को 4.5 प्रतिशत, एनसीपी को 0.7 प्रतिशत और सीपीआई को 0.3 प्रतिशत वोट मिले हैं.
राष्ट्रीय पार्टियों में मणिपुर की नेशनलिस्ट पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) का नाम भी जुड़ गया है. पूर्वोत्तर यानी नॉर्थ ईस्ट की किसी भी पार्टी को चुनाव आयोग से पहली बार ये दर्जा हासिल हुआ है. पार्टी के अनुरोध पर चुनाव चिन्ह के तौर पर इसे ‘किताब’ छाप दिया गया है. पार्टियों को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिए जाने से लेकर चुनाव चिन्ह दिए जाने का काम चुनाव चिह्न (आरक्षण और आवंटन) आदेश, 1968 के तहत किया जाता है.
एनपीपी का आधार मणिपुर में है, लेकिन पूर्व लोकसभा स्पीकर पूर्णो संगमा ने 2013 में जब इसकी कमान संभाली तब इसका विस्तार किया. मेघालय में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के समर्थन से सरकार का नेतृत्व कर रही है और मणिपुर में भाजपा का समर्थन कर रही है. ये केंद्र में भी एनडी का हिस्सा है.
पार्टी ने हाल ही में हुए अरुणाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में पांच सीटें जीतीं और इसके पास लोकसभा में भी एक सांसद है. पार्टी की लोकसभा सासंद का नाम अगाथा संगमा है जो कि सीएम की बहन हैं और उन्होंने ये जीत मेघालय के तुरा लोकसभा सीट से हासिल की.
आपको बता दें कि चुनाव आयोग ने 15 मार्च को एक अधिसूचना जारी की थी, जिसके मुताबिक फिलहाल सात पार्टियों के पास राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा है. वहीं, ताज़ा जानकारी के मुताबिक इनके इसे दर्जे पर ख़तरे की तलवार लटक रही है. देखना ये है कि ये पार्टियों के जवाब के बाद चुनाव आयोग क्या फैसला लेता है.

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