लोकसभा में मानवाधिकार संरक्षण संशोधन विधेयक 2019 को मंजूरी दी

लोकसभा ने शुक्रवार को मानवाधिकार संरक्षण संशोधन विधेयक 2019 को मंजूरी दे दी तथा सरकार ने कहा कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और राज्य मानवाधिकार आयोगों को और अधिक सक्षम बनाने के लिए यह विधेयक लाया गया है। विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए गृह राज्य मंत्री नित्यनंद राय ने कहा कि मोदी सरकार की नीति है कि ‘‘न किसी पर अत्याचार हो, न किसी अत्याचारी को बख्शा जाए’’। इस संशोधन विधेयक के माध्यम से आयोग के अध्यक्ष के रूप में ऐसे व्यक्ति को भी नियुक्त करने का प्रावधान किया गया है जो उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश रहा है। गृह राज्य मंत्री राय ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा नीत सरकार की नीतियों के केंद्र में ‘‘मानव और मानवता का संरक्षण’’ है। वैशाली को लोकतंत्र की प्रथम जननी बताते हुए केंद्रीय मंत्री ने कहा कि भारत की सामाजिक व्यवस्था में पहले भी मानवता का संरक्षण एवं मानव के अधिकारों की सुरक्षा की व्यवस्था रही है। राय ने कहा, ‘‘ मोदी सरकार की यह नीति यह कि न किसी पर अत्याचार हो न किसी अत्याचारी को बख्शा जाए । नागरिकों के अधिकारों की व्यवस्था को संरक्षित करने के लिए यह संशोधन विधेयक लाया गया है।’’ 
उन्होंने कहा, ‘‘विपक्ष के सदस्यों ने चर्चा के दौरान इस पर जो चिंताएं दर्ज कराई हैं उन सबका समाधान इसमें है।’’ मंत्री के जवाब के बाद सदन ने ध्वनिमत से विधेयक को मंजूरी दे दी । इससे पहले गृह राज्य मंत्री ने कहा कि इसमें महिलाओं का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया गया है। सिविल सोसाइटी के सदस्यों को दो से बढ़ा कर तीन किया गया है और उनकी भागीदारी से समाज के अधिकारों को और बल मिलेगा। राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग के अध्यक्ष को इसमें शामिल करने का पहले से ही प्रावधान है। एआईएमआईएम के सांसद असद्दुदीन ओवैसी के द्वारा अल्पसंख्यक आयोग का मुद्दा उठाये जाने पर नित्यानंद राय ने कहा कि अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष पहले से ही राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्य हैं। साथ ही, ओबीसी का प्रावधान किया गया है जिसके तहत अल्पसंख्यक भी आते हैं। इसके अलावा दिव्यांग जन को भी शामिल करने का प्रस्ताव है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में उच्चतम आयोग के सेवानिवृत्त प्रधान न्यायाधीश के अतिरिक्त शीर्ष न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों को भी शामिल किया गया है। राज्य मानवाधिकार आयोग में उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के अतिरिक्त अन्य न्यायाधीशों को भी शामिल किया गया है। अब वे (उच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीश) भी इसके पात्र हो सकते हैं। 
उन्होंने इस बात का भी जिक्र किया कि जहां तक राज्य मानवाधिकार आयोग का प्रश्न है, 25 राज्यों में 13 में अध्यक्ष के पद अभी खाली है।उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय आयोग और राज्य आयोग में कोई पद रिक्त नहीं रहे, इसके लिए इसमें प्रावधान किया गया है। भेदभाव को लेकर विपक्ष के आरोपों पर मंत्री ने कहा कि कहीं भी गिरफ्तारी में भेदभाव
नहीं किया गया है। उन्होंने कहा, ‘‘ मानवता तार- तार तब होती थी, जब बेबस लोग पैसे के अभाव में (इलाज नहीं होने पर) दम तोड़ देते थे।’’ विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों के अनुसार, इसमें यह प्रावधान किया गया है कि आयोग के अध्यक्ष के रूप में ऐसा व्यक्ति होगा, जो उच्चतम न्यायालय का प्रधान न्यायाधीश रहा हो। उसके अतिरिक्त किसी ऐसे व्यक्ति को भी नियुक्त किया जा सके जो उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश रहा है । 
 इसमें आयोग के सदस्यों की संख्या दो से बढ़ाकर तीन करने का प्रावधान है जिसमें एक महिला हो। इसमें प्रस्ताव किया गया है कि आयोग और राज्य आयोगों के अध्यक्षों और सदस्यों की पदावधि को पांच वर्ष से कम करके तीन वर्ष किया जाए और वे पुनर्नियुक्ति के पात्र होंगे। इसमें मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 को मानव अधिकारों के संरक्षण के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, राज्य मानवाधिकार आयोग और मानव अधिकार न्यायालयों के गठन को लेकर उपबंध करने के लिए अधिनियमित किया गया था इसके अलावा, कुछ राज्य सरकारों ने भी अधिनियम में संशोधन के लिए प्रस्ताव किए हैं क्योंकि उन्हें संबंधित राज्य आयोगों के अध्यक्ष के पद पर उक्त पद के लिए वर्तमान पात्रता मानदंडों के कारण उचित अभ्यर्थियों को ढूंढने में कठिनाइयां आ रही हैं। उपरोक्त बातों को ध्यान में रखते हुए उक्त अधिनियम के कुछ उपबंधों का संशोधन करना आवश्यक हो गया है। इसमें प्रस्ताव किया गया है कि ऐसे व्यक्ति जो उच्च न्यायालय के न्यायाधीश रहे हों, उन्हें राज्य आयोग के अध्यक्ष के रूप में नियुक्ति हेतु पात्र बनाया जा सकेगा ।

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