मोदी राज 1.0 में 60 फीसदी बढ़े विलफुल डिफॉल्टर, पर वसूले गए 7,600 करोड़ रुपये

मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में देश में विलफुल डिफॉल्टर यानी जानबूझ कर कर्ज न चुकाने वाले लोगों-कंपनियों की संख्या में करीब 60 फीसदी की बढ़त हुई है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सोमवार को संसद में एक सवाल के जवाब में यह जानकारी दी है.
मोदी प्रथम सरकार के पहले साल यानी वित्त वर्ष 2014-15 के अंत में देश में विलफुल डिफॉल्टर्स की संख्या 5,349 थी, लेकिन वित्त वर्ष 2018-19 के अंत यानी गत मार्च तक यह संख्या बढ़कर 8,582 तक पहुंच गई. वित्त मंत्री ने सदन को बताया कि इन विलफुल डिफॉल्टर से 7,600 करोड़ रुपये की वसूली भी की जा चुकी है.
संसद के निचले सदन लोकसभा में सीतारमण ने एक सवाल के लिखित जवाब से यह भी साफ किया कि विलफुल डिफॉल्टर 'ऐसे व्यक्ति को कहते हैं जिसके पास लोन चुकाने का संसाधन तो होता है, लेकिन वह जानूबूझ कर नहीं चुकाता और कर्ज में हासिल पैसे को कहीं और इस्तेमाल करता है.' 

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उन्होंने बताया कि सिक्यूरिटाइजेशन ऐंड रीकंस्ट्रक्शन ऑफ फाइनेंशियल एसेट्स ऐंड इनफोर्समेंट ऑफ सिक्यूरिटी इंट्रेस्ट एक्ट, 2002 के प्रावधानों के तहत 6,251 मामलों में कार्रवाई की गई. इसके तहत ही 31 मार्च 2019 तक सार्वजनिक बैंकों ने 8,121 मामलों में कर्ज वसूली के लिए मामला दायर किया है. रिजर्व बैंक के निर्देश के मुताबिक 2,915 मामलों में एफआईआर दर्ज किए गए हैं.
उठाए गए सख्त कदम
वित्त मंत्री ने सदन को बताया कि दंडात्मक कार्रवाई के तहत विलफुल डिफॉल्टर को अब बैंक या वित्तीय संस्थाओं से कोई लोन या सुविधा नहीं दी जाती और उनकी कंपनियों को 5 साल तक कोई नया वेंचर शुरू करने से रोक दिया गया है. यही नहीं, भारतीय प्रतिभूति विनिमय बोर्ड (SEBI) के नियमों के मुताबिक विलफुल डिफॉल्टर लोगों और कंपनियों को पूंजी बाजार से फंड जुटाने से भी रोक दिया गया है.
NPA में गिरावट का दावा
वित्त मंत्री ने बताया कि सरकार की रणनीति की वजह से सार्वजनिक बैंकों की गैर निष्पादित परिसंपत्ति (NPA) में गिरावट आई है. मार्च 2018 के 8.95 लाख करोड़ रुपये के मुकाबले मार्च 2019 में एनपीए घटकर 8.06 लाख करोड़ रुपये रह गया है. हालांकि मार्च 2016 में बैंकों का एनपीए 2.79 लाख करोड़ रुपये ही था. सीतारमण ने बताया कि एनपीए के मोर्चे पर अच्छी खबर यह है कि वित्त वर्ष 2015-16 से 2018-19 के बीच सार्वजनिक बैंकों ने 3.59 लाख करोड़ रुपये की वसूली की है. पिछले वित्त वर्ष में ही 1.23 लाख करोड़ रुपये की वसूली की गई है.

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