प्रशासन की काहिली के कारण त्राहि-त्राहि कर रहे शहर की इस हालत पर अपने “कुशासन” के लिए शर्मिंदा होने की बजाय इसे “प्रकृति का कोप” कहकर निकल लेना न केवल अशोभनीय है अपितु संवेदनहीन भी है ! ईश्वर राजधानी में जमा इस अपार पानी की कुछ बूँदे राजनीति की आँखों को भी बख़्शे
source (Kumar Vishwas sir)