नौ दिन चले अढ़ाई कोस अंततः वही हुआ जिसकी आशंका थी *अतिथि* *शिक्षकको* स्थायी करने के बारे में मध्यप्रदेश शासन ने सामान्य प्रशासन विभाग के मंत्री की अध्यक्षता में चार सदस्यीय मंत्री परिषद समिति बना दी है , जो 3 माह में शासन को प्रतिवेदन सौंपेगी इस निर्णय से केवल अतिथी शिक्षक को बल्कि इस सरकार के शुभ चिन्तकों को भी निराशा हुई किसानों की कर्जमाफी के बारे में विचार करने के लिए कोई समिति नहीं बनाई गई थी , जब कि किसानों की कर्ज माफी की तरह अतिथि शिक्षक को नियमित करने का वादा भी वचन पत्र में था किसानों की कर्ज माफी में अरबों रुपया लोकसभा चुनाव के पूर्व ही राज्य शासन को खर्च करने होंगे , जब कि संविदा कर्मियों की माँग थी कि नियमतिकरण करने की शुरूआत लोकसभा चुनाव के पहले कर दी जाए , भुगतान बाद में करें यदि सरकार ऐसा करती तो केवल अतिथि शिक्षक को बल्कि हर मतदाता को यह भरोसा हो जाता कि वचन पत्र में जो कहा , वो किया
मंत्री परिषद की समिति गठित करने का निर्णय तो शिवराजसिंह की सरकार भी कर गई थी , लेकिन कुछ नहीं हुआ आज देश का हर नागरिक जानता है कि सरकारें जब कोई काम नहीं करना चाहतीं तो समिति का गठन कर देतीं हैं कोई भी समिति नियत समय में अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत नहीं करती और उनका कार्यकाल वर्षों तक बढ़ता रहता है यह आम धारणा है समिति में यदि वित्त विभाग का मंत्री होता है तो प्रस्तावों में कंजूसी अवश्यसंभावी है वित्त विभाग का काम ही आपत्ति लगाना है
वैसे मप्र शासन चाहे तो समिति को 1 सप्ताह में प्रतिवेदन देने को कह सकती है क्योंकि यह मामला नया नहीं है , पूर्व सरकार के समय ही विभागों से जानकारी ले ली गई थी कि कितना वित्तीय भार पड़ेगा , नियमतिकरण करने की क्या प्रक्रिया होगी ? एक सप्ताह में प्रतिवेदन प्राप्त होने पर शासन टोकन स्वरूप नियमतिकरण की कार्यवाही लोकसभा चुनाव की आचार संहिता जारी होने के पूर्व कर सकती है इस कार्य के लिए सरकार में दृढ़ इच्छाशक्ति का होना आवश्यक है यदि नई सरकार पिछली सरकार से अलग अपनी साख बनाना चाहती है तो उसे मेरे प्रस्ताव पर विचार कर तत्काल कार्यवाही करनी चाहिये जय अतिथि शिक्षक
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