एक तरफ सरकार ने गुड़गांव में भवन एवं सन्निर्माण कल्याण बोर्ड के पैसों से रियायती दर पर खाना खाने की कैंटीन चलाई गई है, वहीं दूसरी तरफ मजदूरो को बिल्कुल साथ लगती दीवार के साथ अधिकारियों की नासमझी के चलते अपना खाना खुद बनाकर खाना पड़ रहा है। जबकि इस सर्दी में 21वीं सदी के इस कथित स्मार्ट सिटी महानगर की जरूरतों को पूरा करने वाले मजदूरों के काम की तलाश में इक्कठे होने के स्थान पर लेबर शेड भी नही है। वो रेन बसेरे मजदूरों की पहुंच से दूर बनाए गए हैं। जोकि सिर्फ कानून की आंखों में धूल झोंककर जेबें भरने का उपक्रम बनकर रह गए हैं।
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