बीजेपी के केंद्र की सत्ता में क़ाब़िज होने के बाद सोशल मीडिया और जन मंचों पर भाषा की जो गिरावट देखी गई है, वह अभूतपूर्व है।
कभी कोई चुना हुआ प्रतिनिधि, कभी कोई कार्यकर्ता तो कभी कोई समर्थक सत्ता के मद में चूर होकर अनाप शनाप बयानबाज़ी करते हैं।
दुर्भाग्य ये है कि प्रधानमंत्री मोदी ऐसे लोगों के ख़िलाफ़ कुछ बोलते नज़र नहीं आते। ऐसा लगता है कि वे असंसदीय भाषा को मौन स्वीकृति दे रहे हैं।
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