‘बेटी बचाओ,बेटी पढ़ाओ’ का सचःसिर्फ प्रचार में खत्म कर दिया 56% बजट

सरकार की इस स्कीम को तीन मंत्रालयों महिला और बाल विकास, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण और मानव संसाधन विकास के माध्यम से देशभर में लागू करने का फैसला किया गया. इस स्कीम के लागू होने के चार साल बाद सरकार ने जो आंकड़े जारी किए हैं, उससे पता चलता है कि इस स्कीम का मुख्य उद्देश्य सिर्फ पब्लिसिटी था.
पब्लिसिटी पर हुआ सबसे ज्यादा खर्च
'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' स्कीम पर साल 2014-15 से 2018-19 तक आवंटित हुए कुल फंड का 56 फीसदी से ज्यादा फंड 'मीडिया संबंधी गतिविधियों' पर खर्च किया गया. इसके विपरीत, 25 फीसदी से कम धनराशि जिलों और राज्यों को बांटी गई. जबकि 19 फीसदी से ज्यादा धनराशि जारी नहीं की गई.
ये आंकड़े इसी साल 4 जनवरी को लोकसभा में केंद्रीय महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री डॉ. वीरेंद्र कुमार ने अपने जवाब में दिए हैं. पांच सांसदों बीजेपी के कपिल पाटिल और शिवकुमार उदासी, कांग्रेस की सुष्मिता देव, तेलंगाना राष्ट्र समिति के गुथा सुकेंदर रेड्डी और शिवसेना के संजय जाधव ने सदन में 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' को लेकर सवाल रखा था.
अब तक सरकार इस स्कीम पर 644 करोड़ रुपये आवंटित कर चुकी है. इनमें से केवल 159 करोड़ रुपये ही जिलों और राज्यों को भेजे गए हैं.
स्कीम सफल या विफल?
संसद में यह पूछे जाने पर कि क्या उन्होंने इस योजना को विफल माना है, मंत्री ने इनकार में जवाब दिया. वास्तव में, उन्होंने बताया कि सरकार ने देश के सभी 640 जिलों में इस योजना को लागू करने का फैसला लिया है.
साल 2015 में स्कीम के पहले चरण में, सरकार ने अपेक्षाकृत कम लिंगानुपात वाले 100 जिलों पर ध्यान केंद्रित किया. उसके बाद दूसरे चरण में, सरकार ने 61 और जिलों को जोड़ा.
इन 161 जिलों में बाल लिंगानुपात के आधार पर योजना आंशिक तौर पर सफल रही है. 161 में से 53 जिलों में, 2015 से बाल लिंग अनुपात में गिरावट आई है. इनमें से पहले चरण के 100 में से 32 जिले और दूसरे चरण के 61 में से 21 जिले शामिल हैं. हालांकि, बाकी जिलों में बाल लिंगानुपात में वृद्धि हुई है.
केंद्रशासित प्रदेशों में गिरावट खास तौर पर तेज रही है. उदाहरण के लिए, निकोबार में, चाइल्ड सेक्स रेशियो साल 2014-15 में प्रति 1000 पुरुषों पर 985 महिलाओं का था, जो साल 2016-17 में गिरकर 839 हो गया. पुदुचेरी के यानम में, यह 2014-15 में 1107 था, जो गिरकर 976 हो गया. सरकार ने क्रमशः अंडमान और निकोबार द्वीप समूह और पुदुचेरी को 55 करोड़ रुपये और 46 करोड़ रुपये दिए हैं.
विशेषज्ञों का कहना है कि स्कीम की सीमित सफलता काफी हद तक इस तथ्य की वजह से है कि सरकार धन को प्रभावी रूप से जारी नहीं कर रही है और यह शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्रों में ठोस हस्तक्षेप के बजाय प्रचार पर बहुत ज्यादा खर्च कर रही है.

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