हिंदू पाकिस्तान - कितना वाज़िब है डर?

जब एक निर्वाचित विधायक खुलेआम कहता है कि अगला चुनाव हिंदू बनाम मुस्लिम होगा, जब एक केंद्रीय मंत्री सरे आम कहता है कि संविधान बदलेगा। हम इसे बदलने के लिए ही आए हैं, जब सांसदों के लिए बिजली, पानी, शिक्षा या स्वास्थ्य से बढ़कर राम मंदिर हो जाए तो डर लगना जायज़ है। जब मज़हब की आड़ में चुने हुए विधायक बलात्कारियों का समर्थन करें, जब जाति के नाम पर लोगों के साथ बर्बरता की जाए तब ये डर लगना जायज़ है। यही वो कारण हैं जो सोचने पर मजबूर कर देते हैं कि कहीं संख्याबल मिलने पर बीजेपी संविधान न बदल दे। और इस सोच को पुख़ता करती है बीजेपी की विरासत जो गोलवलकर और दीन दयाल उपाध्याय के संदेशों के रूप में जन संघ के रास्ते इन तक पहुँची है।
दरअसल, एक अच्छे वंशज के नाते वह अपने पूर्वजों को स्थापित तो करना चाहती है, लेकिन पूर्वजों को स्थापित करने के लिए उनकी शून्यसम विचारधारा का सहारा नहीं ले सकती। इसीलिए बीजेपी और पीएम मोदी के कामों में विरोधाभास दिखता है। और यही विरोधाभास इस डर को जन्म देता है कि कहीं संविधान को बदल न दिया जाए। संख्याबल मिलने पर कहीं उन ओछी विचारधाराओं को लागू न कर दिया जाए जिस तरह की कुंठित विचारधाराओं ने पाकिस्तान को जन्म दिया था। यही डर शशि थरूर को कहने पर मजबूर करता है कि कहीं हमारा देश हिंदू - पाकिस्तान न बन जाए।

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