सियासी स्वार्थ के लिये प्रवासी भारतीयों का इस्तेमाल ग़लत?
नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटिजंस की दहशत अब असम से बाहर भी पहुंच चुकी है. सत्ताधारी नेताओं द्वारा देश के कई राज्यों में इसे लागू करने की धमकी दी जा रही है.
अभी प्रधानमंत्री मोदी अमेरिका में थे. अमेरिकी राष्ट्रपति और अपने ‘प्रगाढ़ मित्र’ डोनाल्ड ट्रंप के साथ उन्होंने ह्यूस्टन में ‘हाउडी मोदी’ कार्यक्रम में गजब का समां बांधा.
प्रवासी भारतीय और भारत मूल के अन्य लोगों को जोड़कर देखें तो भारतीय प्रवासियों की (इंडियन डायस्पोरा) 3 करोड़ से भी कुछ ज़्यादा आबादी मानी जाती है.
भारतीय प्रवासी समाज से देश के लिए रचनात्मक सहयोग लेने की बजाय कुछ राजनीतिक दल सत्ता या संकीर्ण सियासी स्वार्थ में उनका इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहे हैं.
उग्र हिन्दुत्व या दक्षिणपंथी ख़ेमे के शीर्ष नेताओं ने जिस तरह ध्रुवीकरण की राजनीति का अंतरराष्ट्रीयकरण किया है, उससे परदेस में भी इंडियन डायस्पोरा और दक्षिण एशियाई समाजों में विभाजन बढ़ रहा है. यह ख़तरनाक प्रवृत्ति है.