बिहार में विधानसभा चुनाव की उलटी गिनती शुरू, सियासी गतिविधियों में आने लगी है तेजी

बिहार के सियासी दलों की गतिविधियां बता रही हैं चुनावी साल में सियासत के कदम पडऩे ही वाले हैं। ठीक चार साल पहले नौ सितंबर 2015 को चुनाव आयोग ने बिहार विधानसभा चुनाव की अधिसूचना जारी कर दी थी। इस हिसाब से सोमवार के बाद से चुनाव की उल्टी गिनती शुरू हो जाएगी। सभी दलों और दावेदारों के बीच तैयारियों के लिए समय की गणना वर्षों में नहीं, बल्कि महीनों में होने लगेगी।
चुनावी लिहाज से सियासत में अति सक्रियता का दौर शुरू भी हो चुका है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि गठबंधनों के कैनवास का स्वरूप प्रभावित होने लगा है। नेताओं के बोलने-डोलने, आने-जाने और मेल-मुलाकातों के मायने निकाले जाने लगे हैं। राजग और महागठबंधन के नेतृत्व की धड़कनें भी उसी रफ्तार से बढऩे लगी हैं।
उपमुख्यमंत्री एवं भारतीय जनता पार्टी नेता सुशील मोदी का हालिया बयान बताता है कि राष्‍ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को और पुख्ता करने का प्रयास शुरू कर दिया गया है। दूसरी ओर पांच दलों वाले महागठबंधन में पाला बदलने के बहाने तलाशे जाने लगे हैं। लोकसभा चुनाव के नतीजों ने घटक दलों को सोच समझकर कदम बढ़ाने के लिए मजबूर कर दिया है।
कांग्रेस के कदम बिहार में एकला चलो के रास्ते पर बढ़ते दिख रहे हैं। हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा प्रमुख जीतनराम मांझी ने लालू प्रसाद के सियासी भविष्य तेजस्वी यादव की सूझ-बूझ और अनुभव पर सवाल खड़ा करके जता दिया है कि पुरानी राह उन्हें पसंद नहीं आ रही है। बेकरारी का तीसरा मोर्चा भी खुलता दिख रहा है। दोनों बड़े गठबंधनों में जगह पाने से अभी तक वंचित दलों के कुछ नेता एकत्र होने लगे हैं। पूर्व सांसद अरुण कुमार, पूर्व मंत्री नरेंद्र सिंह, रेणु कुशवाहा और राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव एक छतरी के नीचे आने के उपक्रम में हैं। प्रारंभिक मंथन कर चुके हैं। कुनबे के विस्तार के लिए जीतनराम मांझी को भी मनाने का प्रयास जारी है। हालांकि, तीसरे मोर्चे के बारे में अभी कुछ स्पष्ट तौर पर नहीं कहा जा सकता है, लेकिन इतना तय है कि चुनाव के महीने करीब आते-आते गुल जरूर खिलेंगे।

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