2015 की शुरुआत में दिल्ली विधानसभा का चुनावी नतीजा आया और ऐसा आया कि उसने देश-दुनिया को चौंका दिया. उस चुनाव ने आंदोलन की धरती से राजनीति के अखाड़े में उतरे नए नवेले खिलाडी को चैंपियन बना दिया. चैंपियन भी ऐसा कि उसने इस अखाड़े के पुराने पहलवानों को चित करते हुए 54 फीसदी से ज्यादा वोट प्राप्त किए. दिल्ली की 70 सीटों में से 67 सीट जीतकर अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) दिल्ली के मुख्यमंत्री बने.
उस चुनाव से पहले भी आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) ने अरविंद केजरीवाल के चेहरे पर अपनी रणनीति बनाई थी और उन्हें ऐतिहासिक सफलता भी मिली थी. अब सरकार का पांचवा साल है. अगले साल की शुरुआत में फिर चुनाव होने वाला है. दिल्ली की आम आदमी पार्टी एक बार फिर चुनाव को अरविंद केजरीवाल बनाम कौन, इस सवाल के इर्द-गिर्द लेकर जाना चाहती है. उसे इस फार्मूले ने 2015 से पहले आई नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की आंधी में भी चट्टान की तरह खड़ा रखा था. अब एक बार फिर पार्टी दिल्ली के चुनाव को उस ओर ले जाने की तैयारी में जुट गई है.
मोदी सरकार गरीब हितैषी है या कॉरपोरेट हितैषी?दिल्ली में अगले साल की शुरुआत में चुनाव होने हैं. आम आदमी पार्टी चुनाव को एक बार फिर 'अरविंद केजरीवाल बनाम कौन' इस सवाल की तरफ ले जाना चाहती है. ऐसा क्यों करना चाहती है, इसके पीछे भी एक बड़ा कारण है. दिल्ली में पिछला चुनाव 7 फरवरी 2015 को हुआ था और नतीजे 10 फरवरी को आए थे. उससे करीब नौ महीने पहले देश की लोकसभा के नतीजे आए थे और देश ने नरेंद्र मोदी को निर्विवाद रूप से अपना नेता चुन लिया था.
दिल्ली की सातों सीट भी बीजेपी ने जीत ली थी. दिल्ली की सत्ता से बीजेपी लंबे समय से बाहर थी. बीजेपी को उम्मीद थी कि मोदी लहर पर सवार होकर उसका सूबे में पंद्रह साल का वनवास खत्म होगा और वो सरकार बनाने में कामयाब रहेगी. उस समय ऐसा लग रहा था कि दिल्ली भी बीजेपी आसानी से जीत लेगी. लेकिन जैसे जैसे समय बीतने लगा, बीजेपी को लगने लगा कि दिल्ली की लड़ाई उतनी आसान नहीं है, जितना वो सोच रही थी. आम आदमी पार्टी बार बार ये सवाल उठा रही थी कि उनके पास अरविंद केजरीवाल है, बीजेपी और कांग्रेस के पास मुख्यमंत्री के उम्मीदवार के रूप में कौन है. आम आदमी पार्टी के इस राजनीतिक जाल में बीजेपी उलझ गई.
अब एक बार फिर दिल्ली का चुनाव सामने हैं. लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 2014 से भी बड़ी सफलता दी है. दिल्ली में तो आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों को 2014 से भी कम वोट मिले हैं. ऐसे में एक बार फिर आम आदमी पार्टी अपने 2014 के फार्मूले पर लौट आई है. पार्टी का दावा है कि केंद्र के लिए भले ही नरेंद्र मोदी जनता की पसंद हैं, लेकिन दिल्ली के मुख्यमंत्री के तौर पर आज भी अरविंद केजरीवाल पहली पसंद बने हुए हैं. इसी कारण आम आदमी पार्टी ने अब अपने प्रचार को अरविंद केजरीवाल विरुद्ध कौन की तरफ मोड़ना शुरू कर दिया है.
रूस और इंडिया के बीच 20वें समिट में बोले मोदी, ‘देश के आंतरिक मामलों में बाहरी दखल बर्दाश्त नहीं’ पार्टी को लगता है कि दिल्ली में कांग्रेस का कोई राजनीतिक वजूद नहीं है और उसका मुकाबला बीजेपी के साथ ही होगा. इसी कारण पिछले कुछ समय से आम आदमी पार्टी के नेताओं ने बीजेपी को मुख्यमंत्री पद के दावेदार का नाम खोलने के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया है. पार्टी के नेता और संसद सदस्य संजय सिंह ने पिछले दिनों केंद्रीय नेता और दिल्ली बीजेपी के पुराने धुरंधर विजय गोयल के घर का घेराव किया. उन्होंने कहा कि दिल्ली में बीजेपी के कई गुट हैं. बीजेपी को साफ करना चाहिए कि उनका मुख्यमंत्री पद का चेहरा कौन है, विजय गोयल, दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी या फिर विधानसभा में पार्टी के नेता विजेंद्र गुप्ता.
उस समय कहा जाता था कि दिल्ली बीजेपी में कई गुट हैं. बीजेपी आलाकमान ने एक बड़ा दांव खेला. 15 जनवरी 2015 यानी दिल्ली चुनाव से ठीक 22 दिन पहले दिल्ली की जानी मानी पूर्व IPS अधिकारी, अन्ना आन्दोलन में अरविंद केजरीवाल की साथी किरण बेदी को पार्टी में शामिल कराया गया और 19 फरवरी 2015 को उन्हें अपनी पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री पद का चेहरा भी घोषित कर दिया. लेकिन इसके बाद जो हुआ वो इतिहास में दर्ज हो गया. ना सिर्फ किरण बेदी करीब 23 सौ वोट से चुनाव हार गईं, बल्कि बीजेपी को दिल्ली में ऐतिहासिक हार का सामना करना पड़ा.
2015 के चुनाव नतीजों से साफ हो गया था कि दिल्ली की जनता ने जहां प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी का साथ दिया था. वहीं, दिल्ली के मुख्यमंत्री के तौर पर अरविंद केजरीवाल उसकी पसंद बनी हुई थी. यही कारण रहा कि जिस दिल्ली ने नौ महीने पहले हुए केंद्र के चुनाव में बीजेपी को सातों लोकसभा सीटे दी थीं, उसी दिल्ली ने विधानसभा में बीजेपी को सिर्फ तीन ही सीटे दीं.