मोदी सरकार ने सोशल मीडिया पर 24 घंटे निगरानी रखने की योेजना में किया सुधार

 सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने मीडिया में बदलाव के साथ तालमेल रखने के लिए भारतीय सूचना सेवा (आईआईएस) के कैडर के पुनर्गठन के लिए एक आंतरिक समूह का गठन किया है. यह जानकारी दिप्रिंट को मिली है.
आईआईएस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, ‘डिजिटल मीडिया, सोशल मीडिया और चौबीसों घंटे सातों दिन टेलीविज़न के आने की वजह से सरकार ने आईआईएस को पुनर्गठन करने का फैसला किया है.’
आईआईएस को केवल प्रिंट मीडिया को ध्यान में रखते हुए बनाया गया था लेकिन डिजिटल मीडिया के उछाल के साथ आईआईएस अधिकारियों के नौकरी की प्रकृति में काफी बदलाव आया है. समूह के कुछ सुझावों में निजी कंपनियों से मंत्रालयों के सोशल मीडिया के काम को आउटसोर्स करने और नई विशेषज्ञता वाले लोगों को लाने आदि के लिए एक समान नीति रखना है.
जब प्रिंट ने इस मामले पर टिप्पणी मांगी तो मंत्रालय ने किसी भी तरह की पुष्टि करने से मना कर दिया.
हालांकि, कई मंत्रियों के पास निजी जनसंपर्क एजेंसियों के कर्मचारी के रूप में सलाहकार होते हैं, यह व्यवस्था न तो औपचारिक रूप से होती है और न ही मंत्रालयों में समान.
अभी ज्यादातर मंत्री ऐसे हैं, जिन्होंने पीआर एजेंसियों को काम पर रखा है. लेकिन मंत्रालयों के लिए एजेंसियां नहीं हैं सरकार चाहती है कि सभी मंत्रालय के सोशल मीडिया को संभालने के लिए पीआर एजेंसियां ​​हों.
आईआईएस के अधिकारी- देश के प्रशासनिक नागरिक सेवा से आते हैं. ये सरकार के मीडिया प्रबंधक होते हैं और विभिन्न इकाइयों में काम करते हैं जिनमें प्रेस सूचना ब्यूरो (पीआईबी), दूरदर्शन समाचार, ऑल इंडिया रेडियो (एआईआर) और विज्ञापन और प्रचार निदेशालय (डीएवीपी) शामिल हैं. अपने कार्यकाल के दौरान उन्हें विभिन्न मंत्रालयों, संवैधानिक निकायों जैसे भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) भारत के चुनाव आयोग या यहां तक ​​कि विदेश में तैनात किया जा सकता है.
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‘चौबीसों घंटे सातों दिन नौकरी’
आईआईएस अधिकारियों का काम अब चौबीस घंटे है. वे सरकार और मीडिया के बीच एक महत्वपूर्ण पुल की तरह काम करते हैं.
एक वरिष्ठ पीआईबी अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘जब विभाग बनाया गया था, तो यह सिर्फ प्रिंट मीडिया था. जिसके लिए हम जिम्मेदार थे. लेकिन अब, चौबीसों घंटे सातों दिन समाचार, सोशल मीडिया और डिजिटल मीडिया है. आज के समय में दिन के अखबारों की कतरन केवल पर्याप्त नहीं है. अब उनको ट्विटर ट्रेंड्स, प्राइम डिबेट सब पर 24 घंटे काम पर नज़र रखनी पड़ती है.
अधिकारी ने कहा, ‘आईआईएस अधिकारियों की भूमिकाओं के पुनर्गठन में चौबीसों घंटे सातों दिन नौकरी की प्रकृति भी होगी.
तीसरे आईआईएस अधिकारी इस बात पर सहमत हुए कि ‘पहले के समय में, हम सरकार से प्रतिक्रिया प्राप्त करने के लिए रात तक इंतजार कर सकते थे, लेकिन अब यदि आप तुरंत जानकारी नहीं देते हैं, तो यह गलत सूचना द्वारा नियंत्रित कर ली जाती है.
पीआईबी के पूर्व प्रधान महानिदेशक फ्रैंक नरोन्हा ने कहा, ‘इस डिजिटल युग में, पीआईबी को गुणवत्ता और गति प्रदान करने की आवश्यकता है. सभी प्रक्रियाओं को नई जरूरतों अपनाने की आवश्यकता है क्योंकि एक अच्छी पुरानी प्रेस विज्ञप्ति अब जरूरी नहीं रही.’
अधिकारियों की बड़ी कमी से आईआईएस जूझ रहा है. कई आईआईएस अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि सेवा में बड़े पैमाने पर रिक्तियां हैं.
अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा ‘एक अधिकारी कई मंत्रालयों को संभाल रहा है और अब जबकि हर मंत्रालय को 24 घंटे ध्यान देने की आवश्यकता है, हम उन सभी के साथ न्याय नहीं कर पा रहे हैं. दूसरे अधिकारी ने कहा कि वर्तमान में केंद्र सरकार में चार मंत्रालय संभाल रहे हैं.
पिछले साल प्रिंसिपल डीजी के पद से रिटायर हुए फ्रैंक नरोन्हा ने कहा कि अधिकारियों की कमी की समस्या पिछले कुछ समय के लिए बनी रही है. उन्होंने कहा, ‘मेरे समय में भी, कम से कम 30 प्रतिशत अधिकारियों की कमी थी, लेकिन किन्हीं कारणों से, हम सरकार को यह समझाने में सक्षम नहीं हुए हैं कि अधिकारियों की संख्या बढ़ाने की आवश्यकता है.
हर कोई सोचता है कि हमारे पास बहुत स्टाफ हैं, लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है. मीडिया ने तेजी से विस्तार किया है और इसलिए, पीआईबी को भी विस्तार करने की आवश्यकता है. बुनियादी ढांचे, सिस्टम को अपग्रेड किए बिना इसे रखना संभव नहीं है.’
फ्रैंक नरोन्हा ने कुछ संरचनात्मक परिवर्तनों की आवश्यकता को भी बताया. मंत्रालयों को उच्च, मध्यम और निम्न डेसिबल मंत्रालयों में विभाजित किया जाना चाहिए. वित्त, रक्षा, वाणिज्य आदि जैसे उच्च डेसिबल वाले लोगों के लिए, आपके पास 3-4 समर्पित अधिकारी होने चाहिए और कम डेसिबल वाले लोगों के लिए आप एक क्लस्टर बना सकते हैं और इसे एक अधिकारी के जिम्मे किया जाना चाहिए.
‘अमित्र सरकार’
कुछ अधिकारियों ने यह भी शिकायत की कि नरेंद्र मोदी सरकार न केवल मीडिया के वर्गों से बल्कि कुछ पीआईबी अधिकारियों से भी अपनी दूरी बनाए रखती है.
एक अन्य अधिकारी ने कहा, ‘हमें महत्वपूर्ण बैठकों में नहीं बुलाया जाता है और कई चीजों पर हम लूप में नहीं रह सकते, खबर पहले ही कहीं आ गयी होती है हमको नहीं पता होता है. हम अक्सर केवल फॉलो-अप करने के लिए छोड़ दिए जाते हैं.’
कुछ पीआईबी अधिकारियों ने दावा किया है कि सरकार ने मंत्रालयों में पत्रकारों को तवज्जो नहीं देने के निर्देश दिए और केवल उन्हें राष्ट्रीय मीडिया केंद्र (एनएमसी) में बुलाने को कहा गया.
एक अधिकारी ने दावा किया, जो कि नाम नहीं बताना चाहते थे. उन्होंने कहा, ‘हमें पत्रकारों को मंत्रालयों में बुलाने से हतोत्साहित किया जाता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि वे हमसे मिलने के बहाने अन्य अधिकारियों से मिलते हैं, लेकिन अगर हम मंत्रालय में कई घंटे बिता रहे हैं, तो हम पत्रकारों को नहीं कह सकते कि वह वहां हमसे न मिलें.’
इन दावों के बारे में दिप्रिंट के प्रश्नों का जवाब पीआईबी के प्रिंसिपल डीजी, सितांशु कर ने नहीं दिया.
हालांकि, एक अन्य वरिष्ठ पीआईबी अधिकारी, जिन्होंने नाम न छापने की शर्त पर बात की, ने दावों को खारिज कर दिया.
एक अधिकारी ने कहा जो आईआईएस एसोसिएशन के सदस्य भी हैं कि यह एक ऐसी सरकार है जो अपनी सार्वजनिक छवि बनाने में निवेश करती है. वे यह सुनिश्चित करने के लिए हर कदम पर हमें शामिल करते हैं कि सभी गतिविधियों को अच्छी तरह से प्रचारित किया जाए.

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