जालान कमेटी की सिफारिशें और आरबीआई द्वारा सरकार को 1.76 लाख करोड़ दिए जाने का गणित क्या है?

आखिरकार भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने अपने आरक्षित कोष से सरकार को 1.76 लाख करोड़ से ज्यादा की रकम इस वित्त वर्ष में सौंपने के फैसले पर मुहर लगा दी. फिलहाल यह मसला चर्चा में है और इसको लेकर राजनीतिक आरोपों-प्रत्यारोपों का सिलसिला भी शुरु हो चुका है. आरबीआई द्वारा चालू वित्त वर्ष में सरकार को 1.76 लाख करोड़ से ज्यादा की रकम देने के आधिकारिक एलान के बाद विपक्ष ने सरकार पर अपने हमले की तीव्रता जरूर बढ़ा दी है, लेकिन इसमें कुछ अप्रत्याशित जैसा भी नहीं है. यह पहले ही साफ था कि आरबीआई से केंद्र सरकार को इसी वित्त वर्ष में मोटी रकम मिल सकती है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी आरबीआई रिजर्व से इस मोटी रकम के ट्रांसफर को सरकार द्वारा की गई चोरी बता रहे हैं तो अन्य विपक्षी दल इसे देश के आर्थिक स्थायित्व के लिए खतरा मानते हैं.
विपक्ष के इन आरोपों को आरबीआई-सरकार के बीच चुनाव से पहले हुए विवाद के दौरान बढ़ी सियासी सरगर्मी कीे कड़ी के तौर पर देखा जा सकता है. उस समय के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने यहां तक कह दिया था कि केंद्रीय बैंक के आरक्षित कोष पर नजर गड़ाने वाले देशों को देर-सवेर बाजार के कोप का सामना करना पड़ता है. इसके बाद रिजर्व बैंक के तत्कालीन गवर्नर उर्जित पटेल ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था.
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तब विवाद के समय विपक्ष ने सरकार पर आरोप लगाया था कि केंद्र सरकार रिजर्व बैंक से मोटी रकम लेकर चुनावों से पहले लोक-लुभावन घोषणायें करना चाहती है ताकि इसका सियासी लाभ लिया जा सके. इस विवाद के सियासी रंग लेने के बाद ही सरकार ने आरबीआई के कैपिटल फ्रेमवर्क (पूंजीगत ढांचे) पर विचार के लिए आरबीआई के पूर्व गवर्नर बिमल जालान के नेतृत्व में एक समिति गठित की थी. मोदी सरकार को चुनावों से पहले भले आरबीआई सरप्लस का भुगतान न हो सका हो, लेकिन इस समय उसके लिए जालान कमेटी की ‘रिपोर्ट देर आयी, दुरुस्त आयी’ जैसी है. अर्थव्यवस्था मंदी के दौर में है और सरकार अपने राजस्व वसूली के लक्ष्य से काफी पीछे चल रही है. ऐसे में आरबीआई से मिलने वाले 1.76 लाख करोड़ की रकम सरकार के लिए काफी राहत भरी है.
अगर, विपक्ष के आरोपों को छोड़ भी दिया जाये तो भी यह सवाल अपनी जगह है कि सरकार को इतनी मोटी रकम देने से क्या एक केंद्रीय बैंक के तौर पर आरबीआई कमजोर होगा? उसके पूर्व गवर्नर डी सुब्बाराव ने अब से कुछ समय पहले कहा था कि सरकार रिजर्व बैंक से पैसे पाने के लिए जिस तरह बेचैन है, वह उसकी हताशा को दिखाता है. उन्होंने जालान कमेटी को यह हिदायत भी दी थी कि आरबीआई की सभी परिसंपत्तियों का मूल्यांकन करने में उसे बेहद सतर्क रहना चाहिए. ऐसे में यह जानना महत्वपूर्ण है कि आरबीआई के आरक्षित कोष को लेकर बिमल जालान कमेटी की सिफारिशें क्या हैं और किस आधार पर सरप्लस ट्रांसफर का यह फार्मूला बना है. आरबीआई बोर्ड ने इन सिफारिशों पर क्या रवैया अपनाया, यह जानना भी काफी महत्व रखता है.
आरबीआई रिजर्व के बारे में कुछ बातें
रिजर्व बैंक के आरक्षित कोष के मुख्यतः तीन हिस्से हैं. पहला हिस्सा है - करेंसी एंड गोल्ड रिवैल्यूएशन एकाउंट (सीजीआरए). यह आरबीआई के आरक्षित कोष का सबसे बड़ा हिस्सा होता है. 2017-18 के वित्त वर्ष के दौरान सीजीआरए फंड में लगभग 6.91 लाख करोड़ रूपये थे. इसके बाद आरबीआई का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण फंड है - कंटिंजेंसी फंड (सीएफ) या आकस्मिक निधि. 2017-18 के वित्त वर्ष में इस कोष में आरबीआई के पास 2.32 लाख करोड़ रूपये थे. आकस्मिक निधि का इस्तेमाल आरबीआई आम तौर पर विनिमय दर संभालने और मौद्रिक नीति को स्थिरता देने के लिए करता है. इसके अलावा अपने एसेट डेवलपमेंट फंड (एडीएफ) में भी आरबीआई एक निश्चित मात्रा में रकम रखता है. लेकिन, यह बाकी दो फंडों के मुकाबले छोटा होता है. इसके अलावा आरबीआई अपने आरक्षित कोष की कुछ रकम अन्य मदों में भी रखता है.
जालान कमेटी की सिफारशें क्या हैं
सरकार और रिजर्व बैंक के बीच आरक्षित कोष को लेकर हुए विवाद को हल करने के लिए बिमल जालान कमेटी का गठन किया गया था. जालान कमेटी का काम था कि वह रिजर्व बैंक के पूंजीगत ढांचे पर विचार करे और यह तय करे कि क्या वाकई आरबीआई के सरप्लस में जरूरत से ज्यादा पैसे हैं.
जालान कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि आरबीआई को सीजीआरए के तहत इतना फंड रखना चाहिए कि वह उसकी बैलेंसशीट में दर्शायी गई कुल रकम का 20 से 24.5 फीसद हो. यानी सीजीआरए में मौजूद रकम कुल परिसंपत्ति के 20 प्रतिशत से कम न हो और 24.5 फीसद से ज्यादा न हो. जून 2019 तक आरबीआई के सीजीआरए में जो रकम मौजूद थी, वह बैलेंसशीट की 23.3 फीसद थी. यानी, सीजीआरए के तहत मौजूद रकम जालान कमेटी द्वारा बताई गई रेंज में ही थी. ऐसे में कमेटी का मानना था कि फिलहाल सीजीआरए फंड में किसी अतिरक्त रकम की आवश्यकता नहीं है. इसलिए, आरबीआई का इस साल का शुद्ध लाभ जो 1.23 लाख करोड़ से ज्यादा है, वह सरकार को स्थानांतरित कर दिया जाए.
इसके अलावा दूसरे महत्वपूर्ण कंटिंजेंसी फंड के बारे में जालान कमेटी ने कहा कि आरबीआई को अपनी आकस्मिक जरूरतों से निपटने के लिए कंटिंजेंसी फंड में इतनी रकम रखनी चाहिए जो बैलेंस शीट के 5.5 से 6.5 फीसद के बीच हो. आरबीआई के पास मौजूदा समय में कंटिंजेंसी फंड में जो रकम है वह उसकी बैलेंस शीट की 6.8 फीसद है. जो जालान कमेटी के अधिकतम मानक से .3 फीसद ज्यादा बैठती है. हालांकि, जालान कमेटी ने अपनी सिफारिश में कहा था कि मौजूदा साल में आरबीआई को इस फंड के लिए न्यूनतम सीमा को मानना चाहिए. आरबीआई बोर्ड ने कमेटी की इस सिफारिश को मानते हुए अपनी आकस्मिक निधि में बैलेंस शीट का 5.5 फीसद रखने और बाकी की रकम सरकार को ट्रांसफर करने का फैसला किया है. इस तरह से 52,637 करोड़ रूपये सरकार को आकस्मिक निधि से भी मिल गए. इसे आरबीआई के इस साल के शुद्ध लाभ (एक लाख तेईस हजार करोड़ रुपये) में जोड़ दें तो सरकार को मिलने वाली कुल रकम 1.76 लाख करोड़ से ज्यादा हो जाती है.
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इससे आरबीआई की सेहत पर क्या असर पड़ेगा
आरोपों-प्रत्यारोपों की बात अपनी जगह है, लेकिन यह सवाल भी अपनी जगह पर है कि इससे आरबीआई की स्वायत्तता और आर्थिक मुश्किलों से निपटने की क्षमता पर क्या फर्क पड़ेगा? क्या आरबीआई के सरप्लस को ट्रांसफर करने का जालान कमेटी का फार्मूला सरकार-केंद्रीय बैंक के विवाद का खात्मा है या नई मुश्किलों की शुरुआत. इसको लेकर अर्थशास्त्रियों के अपने-अपने मत हैं. हालांकि, मोटे तौर पर जालान कमेटी को कोई संदेह की निगाहों से नहीं देखता है.
आरबीआई का अपने आरक्षित कोष को लेकर कितना परंपरागत नजरिया क्यों न रहा हो, लेकिन दुनिया के बहुत सारे अर्थशास्त्री इसे भारतीय केंद्रीय बैंक की ताकत के रूप में भी देखते रहे हैं. ऐसे में इनमें से कई लोगों का मानना है कि जालान कमेटी की सिफारिशों को पूरी तरह मानने के बाद आरबीआई की आपात आर्थिक हालात से निपटने के क्षमता पहले से कम हुई है जो देश की अर्थव्यवस्था के लिए उतनी अच्छी बात नहीं है.
आर्थिक मसलों के जानकार जालान कमेटी की सिफारिशों से ज्यादा सवाल इन सिफारिशों पर आरबीआई बोर्ड के रवैये पर उठा रहे हैं. जैसे, जालान कमेटी की सिफारिश थी कि आकस्मिक निधि को बैलेंस शीट का 5.5 से 6.5 फीसद के बीच रखा जाए. इनका मानना है कि आरबीआई को इसे अधिकतम सीमा यानी 6.5 फीसद रखना चाहिए था. जबकि इसे न्यूनतम सीमा पर रखने का फैसला किया गया है. ऐसे ही सीजीआरए को 20 से 24.5 फीसद रखने की सिफारिश की गई थी. मौजूदा सीजीआरए आरबीआई की बैलेंस शीट का 23.3 फीसद था. आरबीआई समिति की सिफारिशों को मानते हुए इसे 24.5 फीसद पर रखा जा सकता था. आरबीआई बोर्ड के इन फैसलों से सरकार को सरप्लस के रूप में कुछ ज्यादा पैसे तो मिल गए लेकिन इससे आरबीआई की क्षमताओं पर किस तरह का असर पड़ा है इसके बारे में अभी कुछ कहना मुश्किल है.
जानकार मानते हैं कि इससे ऐसा लगता है कि आरबीआई को अपने आरक्षित कोष और उसके जरिये आर्थिक मुश्किलों को हल करने की अपनी क्षमता की चिंता कम और सरकार को दी जाने वाली रकम की चिंता ज्यादा थी. आरबीआई पर यह भी आरोप लग रहे हैं कि वह स्वायत्त रूप से काम करने के बजाय सरकार के लिए काम करने जैसी भूमिका में दिख रही है. हालांकि, आर्थिक जानकारों का एक खेमा मानता है कि आरबीआई का आरक्षित कोष सरकार की नीतियों से भी प्रभावित होता है, इसलिए इसे इस रूप में नहीं देखा जाना चाहिए.
फिलहाल मंदी की चुनौतियों से जूझ रही सरकार के लिए यह रकम बहुत मददगार है, इससे किसी को इन्कार नहीं हो सकता है. लेकिन, इन सारी कवायदों के बीच यह भी ध्यान रखना होगा कि केंद्रीय बैंक आरबीआई देश की अर्थव्यवस्था की धुरी है और इसलिए उसकी स्वायत्तता और साख के बारे में जो भी शंकायें उठ रही हैं, उन्हें जल्द से जल्द दूर होना चाहिए.

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