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योगी सरकार की नजर विधान परिषद पर, टीचर-ग्रैजुएट के चुनाव में कूदेगी BJP

उत्तर प्रदेश में बीजेपी विधानसभा और लोकसभा चुनाव में अपनी जीत का परचम फहराने के बाद विधान परिषद में भी अपनी ताकत बढ़ाने की कोशिशों में जुट गई है. विधान परिषद में स्नातक एवं शिक्षक क्षेत्र की 11 एमएलसी सीटों पर 2020 में होने वाले चुनाव के लिए बीजेपी ने पूरी तरह से कमर कस ली है. बीजेपी शिक्षकों के द्वारा चुनावी जाने वाली विधान परिषद सीटों पर पहली बार किस्मत आजमाने जा रही है.
सूबे में जीत का सिलसिला बरकरार रखने के लिए ने सभी सीटों पर सहायता प्राप्त और वित्तविहीन शिक्षक संघों को तोड़ने की रणनीति बनाई है. बीजेपी सभी 11 विधान परिषद सीटों के लिए अपने उम्मीदवारों का नाम सितंबर के पहले सप्ताह में एलान कर सकती है. बीजेपी ने शिक्षक एवं स्नातक क्षेत्र के उम्मीदवारों को भी प्रचार के लिए पर्याप्त समय देने की योजना बनाई है.
बता दें कि विधानसभा में दो-तिहाई से ज्यादा बहुमत वाली बीजेपी सरकार विधान परिषद में अल्पमत में है. ऐसे में बीजेपी ने विधान परिषद में भी अपनी सदस्य संख्या बढ़ाने के लिए शिक्षक एवं स्नातक क्षेत्र की सीटों पर नजर गड़ा दी है. इसके लिए बीजेपी ने सभी 11 विधान परिषद सीटों पर उम्मीदवार उतारने का फैसला किया है, जिसके लिए स्क्रीनिंग शुरू कर दी है. शिक्षक संघों के संभावित उम्मीदवार बीजेपी से टिकट पाने के जुगाड़ में हैं.
दिनेश शर्मा और अशोक कटारिया को जिम्मेदारी
सूत्रों की मानें तो स्नातक एवं शिक्षक क्षेत्र के विधान परिषद चुनाव की कमान पर्दे के पीछे से उप मुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा देख रहे हैं. शर्मा विधान परिषद में सदन के नेता भी हैं. प्रदेश के सहायता प्राप्त और वित्तविहीन शिक्षक संघों को बीजेपी के पाले में लाने की जिम्मेदारी उन्हीं के कंधों पर है.
बीजेपी ने सभी 11 सीटों से संबंधित जिला अध्यक्षों और जिला प्रभारियों को शिक्षक एवं स्नातक के ज्यादा से ज्यादा मतदाताओं के नाम मतदाता सूची में जुड़वाने की जिम्मेदारी सौंप दी है. बीजेपी के प्रदेश महामंत्री और परिषद चुनाव के प्रभारी अशोक कटारिया ने चुनावी बैठकें कर स्थानीय समीकरण के हिसाब से रणनीति बनानी शुरू कर दी है.
शिक्षक संघों की बढ़ी टेंशन
शिक्षक संघ के एलएमली उमेश द्विवेदी ने aajtak.in से बातचीत करते हुए कहा कि बीजेपी और कांग्रेस दोनों राष्ट्रीय पार्टियां अभी तक शिक्षक संघ के एमएलसी चुनाव नहीं लड़ती रही हैं. यह पहली बार है कि बीजेपी चुनावी मैदान में अपने उम्मीदवार उतारने जा रही है. बीजेपी अगर सभी 11 सीटें भी जीत जाती है तो भी विधान परिषद में बहुमत का आंकड़ा नहीं छू पाएगी.
उमेश द्विवेदी ने कहा कि शिक्षकों को राजनीति पार्टियों के बीच नहीं बांटना चाहिए. बीजेपी के चुनावी मैदान में उतरने से लोगों के मन में विपरीत असर पड़ेगा और विद्यालय का माहौल भी खराब होगा. ऐसे में अभी तक जिस तरह से राष्ट्रीय पार्टियां इससे दूर थी उन्हें दूर ही रहना चाहिए.
ये है राज्य की विधान परिषद सीटों का गणित
बता दें कि उत्तर प्रदेश की कुल 100 विधान परिषद सीटें हैं. इनमें से बीजेपी के पास महज 21 सदस्य हैं. जबकि सपा के पास 55 सदस्य हैं और बसपा के पास 8 विधान परिषद सदस्य हैं. इसके अलावा कांग्रेस के पास दो सदस्य हैं, जिनमें से एक सदस्य दिनेश प्रताप सिंह ने बीजेपी का दामन थाम लिया है. इनके अलावा 5 सदस्य स्नातकों के द्वारा चुने जाते हैं और 6 सदस्य शिक्षक संघ के द्वारा चुनकर आते हैं.
उत्तर प्रदेश में स्नातक एवं शिक्षक क्षेत्र के 11 विधान परिषद सदस्यों का कार्यकाल मई 2020 में पूरा हो रहा है. ऐसे में मार्च-अप्रैल में इन 11 सीटों पर चुनाव होने हैं. इन सदस्यों के क्षेत्र कई जिले और कई मंडलों को मिलकर होते हैं. इसीलिए बीजेपी पहले से अपने उम्मीदवार को उतारकर उन्हें चुनाव प्रचार के लिए पर्याप्त समय देना चाहती है. ऐसे में देखना होगा कि बीजेपी स्नातक एवं शिक्षक क्षेत्र के विधान परिषद के चुनाव में किस तरह का प्रदर्शन करती है.

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