क्यों जी7 शिखर सम्मेलन का अंत भारत सहित सभी के लिए उम्मीद से ज्यादा सुखद रहा है

बियारित्स फ्रांस के धुर दक्षिण-पश्चिमी एटलांटिक महासागरीय तट पर बसा एक छोटा-सा सुरम्य शहर है. जनसंख्या है क़रीब 25 हज़ार. वैसे तो प्राकृतिक सौंदर्य के रसिया और समुद्री जलवायु से स्वास्थ्यलाभ पाने के अभिलाषी ही वहां जाते हैं. लेकिन 24 से 26 अगस्त के बीच विश्व के सात सर्वप्रमुख औद्योगिक देशों के शिखर सम्मेलन के कारण वहां की जनसंख्या लगभग दोगुनी हो गयी थी. ऐसा दुनिया भर से आए सम्मेलन के विरोधी प्रदर्शनकारियों और सम्मेलन की सुरक्षा व सुचारुता के लिए तैनात 13 हज़ार सुरक्षा बलों के कारण हुआ.
फ्रांस के युवा राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों ने यह सोच कर बियारित्स को सम्मेलन-स्थल चुना था कि प्रदर्शनकारी वहां आसानी से पहुंच कर दंगे-फ़साद नहीं कर पायेंगे. यही हुआ भी. प्रदर्शनों के शौकीन ग़ैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) और उनसे जुड़े लोगों को सम्मेलन-स्थल से डेढ़ किलोमीटर दूर रह कर ही संतोष करना पड़ा. पिछले कई वर्षों में कोई जी7 शिखर सम्मेलन इतने शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न नहीं हो पाया था.
डोनाल्ड ट्रंप का सबको डर था
सबको डर था कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप बिगड़ैल बैल की तरह इस बार भी कोई न कोई बखेड़ा खड़ा कर सकते हैं. सौभाग्य से ऐसा नहीं हुआ. सम्मेलन के अंत में किसी साझी समापन घोषणा का इरादा नहीं था. लेकिन आखिर में मात्र एक पृष्ठ की एक संयुक्त विज्ञप्ति भी जारी की गयी. इस बात की भी सराहना हुई कि फ्रांसीसी राष्ट्रपति ने भारत सहित कुछेक अफ्रीकी और लैटिन अमेरिकी देशों के शीर्ष नेताओं को आमंत्रित कर केवल सात अमीर देशों के इस विशिष्ट क्लब को एक नैतिक वैधता प्रदान करने का भी प्रयास किया.
पहले भारत की ही बात करते हैं. भारत जी7 का सदस्य नहीं है. तब भी, फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों के विशेष निमंत्रण पर, पहली बार, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी किसी जी7 शिखर सम्मेलन के अतिथि थे. वे रविवार 25 अगस्त की शाम बहरीन से बियारित्स पहुंचे थे. सम्मेलन के अंतिम दिन यानी सोमवार 26 अगस्त को उन्होंने और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बैठक की. दोनों ओर के कई प्रमुख अधिकारी भी बैठक में उपस्थित थे.
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कश्मीर के बारे में चर्चा हुई
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बंद दरवाज़ों के पीछे हुई औपचारिक वार्ता से पहले कहा, ‘हमने पिछली रात कश्मीर के बारे में चर्चा की थी. प्रधानमंत्रीजी सचमुच यह महसूस करते हैं कि स्थिति नियंत्रण में है. वे पाकिस्तान से बात कर रहे हैं और मुझे पूरा भरोसा है कि वे ज़रूर ऐसा कुछ कर पायेंगे जो बहुत अच्छा होगा... भारत और पाकिस्तान अपने मतभेदों को जल्द ही दूर कर लेंगे.’ डोनाल्ड ट्रंप ने अपने फ़क्कड़ अंदाज़ में यह भी कहा कि अमेरिका भारत और पाकिस्तान का बहुत अच्छा मित्र है.
उस समय वहां उपस्थित अमेरिकी पत्रकारों को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने हिंदी में इतना ही कहा कि ‘भारत और पाकिस्तान के बीच के सारे मुद्दे द्विपक्षीय हैं, (उनके कारण) हम किसी तीसरे देश को कष्ट नहीं देना चाहते.’ दुभाषिये द्वारा इसका अंग्रेज़ी अनुवाद सुनने के बाद राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मज़ाक करते हुए कहा, ‘ये (मोदी) वास्तव में बहुत अच्छी अंग्रेज़ी बोलते हैं, (लेकिन इस समय) बस, बोलना नहीं चाहते.’
बंद दरवाज़ों के पीछे बातचीत
दोनों के बीच सीधी बातचीत से पहले राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने क़रीब 15 मिनट तक अमेरिकी पत्रकारों के प्रश्नों के उत्तर दिये. अधिकतर प्रश्न चीन के साथ विवादों के बारे में थे. उन्होंने चीन को काफ़ी खरी-खोटी सुनाई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस दौरान कुछ असहज महसूस कर रहे थे और चुप रहे. अमेरिकी पत्रकारों के चले जाने के बाद बंद दरवाज़ों के पीछे जो बातचीत हुई, उसके बार में बताया गया कि डोनाल्ड ट्रंप ने कश्मीर समस्या को लेकर तनावों को कम करने के लिए भारत और पाकिस्तान के बीच संवाद पर फिर जोर दिया और अफ़ग़ानिस्तान में भारत की भूमिका को बहुत ही महत्वपूर्ण बताया.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति से कहा कि भारत और पाकिस्तान 1947 से पहले एक ही देश थे और वे अपनी समस्याएं आप हल कर सकते हैं. उनका यह भी कहना था कि जम्मू-कश्मीर विवाद दोनों का आपसी मामला है और वे उसके हल के लिए किसी दूसरे देश को कष्ट नहीं देना चाहते. यानी, अमेरिका और दूसरे देशों को चाहिये कि वे इस पचड़े में न पड़ें.
जनता के भले को प्राथमिकता मिले
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति से यह भी कहा कि ‘भारत और पाकिस्तान को अपनी जनता के भले के लिए मिल कर काम करना चाहिये. ज़रूरत है निरक्षरता, ग़रीबी और बीमारियों जैसी चीज़ों से साथ मिल कर लड़ने को प्राथमिकता देने की.’ ऐसा कह कर उन्होंने बिना कहे यही कहा कि पाकिस्तान के नेता अपनी जनता की मूलभूत समस्याओं को हल करने के बदले सिर्फ कश्मीर की रट लगा कर जनता का ध्यान भटकाते हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ इस बातचीत के तुरंत बाद डोनाल्ड ट्रंप ने ट्वीट किया, ‘फ़्रांस के बियारित्स जी7 शिखर सम्मेलन में अपने मित्र और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ (मैंने) अभी-अभी एक बहुत बढ़िया बैठक की है.’ वैसे डोनाल्ड ट्रंप अपने हर काम को बढ़िया ही बताते हैं. उनकी निंदा और प्रशंसा, दोनों को गंभीरता से नहीं लिया जा सकता. कोई नहीं जानता कि वे अपनी किस बात से कब मुकर जायेंगे. कुछ ही दिन पहले तक वे कश्मीर को एक बहुत ही ‘विस्फोटक समस्या’ बता रहे थे. अपनी मध्यस्थता पेश कर रहे थे, मानो दुनिया को सिर पर खड़ी किसी प्रलय से बचा लेंगे, भारत-पाकिस्तान पर बहुत बड़ा उपकार कर देंगे.
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‘बहुत अच्छी बैठक हुई’
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ट्वीट किया, ‘जी7 शिखर सम्मेलन के दौरान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ हमारी बहुत अच्छी बैठक हुई. हम पारस्परिक हित में जल्द ही व्यापार संबंधी मुद्दों की ओर ध्यान देने पर सहमत हुए. बड़े लोकतंत्रों के तौर पर अपने नागरिकों, वैश्विक शांति व समृद्धि के हित में (हम) अपने बीच सहयोग बढ़ाने की ओर देख रहे हैं.’
अमेरिकी राष्ट्रपति और भारतीय प्रधानमंत्री के बीच बैठक के समय दोनों की बातों और मुद्राओं से यही आभास मिल रहा था कि कुछ ही समय पहले, राष्ट्रपति ट्रंप, पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान ख़ान की कश्मीर संबंधी जिन चिकनी-चुपड़ी बातों में आ गये थे, उनका असर अब उतर गया है.
नरेंद्र मोदी कई राजनेताओं से मिले
इस बदलाव का श्रेय फ़्रांसीसी राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों को भी दिया जाना चाहिये. उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को बियारित्स आने का विशेष निमंत्रण देकर एक ही महीने के भीतर, उन्हें (मोदी को) इमरान ख़ान के उस सारे किये-धरे पर पानी फेर देने का सुअवसर प्रदान कर दिया, जो पाकिस्तानी प्रधानमंत्री, 23 जुलाई को, वॉशिंगटन में डोनाल्ड ट्रंप से मिल कर हासिल कर पाये थे. बियारित्स में प्रधानमंत्री मोदी को फ्रांसीसी राष्ट्रपति माक्रों और ब्रिटेन के नये प्रधानमंत्री बोरिस जॉन्सन से भी अलग से मिलने का अवसर मिला. वे लगे हाथ जर्मन चांसलर अंगेला मेर्कल, अफ़्रीकी देश सेनेगल के राष्ट्रपति माकी साल और लैटिन अमेरिकी देश चिली के राष्ट्रपति सेबास्तियान पिनेरा से भी मिले.
बियारित्स में जी7 शिखर सम्मेलन शुरू होने से पहले फ्रांस, ब्रिटेन, जर्मनी, जापान, इटली और कनाडा के नेताओं की सबसे बड़ी चिंता यही थी कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का मूड कैसा रहेगा. सम्मेलन की सफलता-विफलता उनके चंचल मूड पर ही टिकी हुई थी. अमेरिका के साथ व्यापार के ममलों में वे चीन को ही नहीं, फ्रांस, जर्मनी और यूरोपीय संघ को भी धौंस-धमकियां दे चुके थे.
 
जब डोनाल्ड ट्रंप की बात नहीं चली
लेकिन लगता है कि बियारित्स की मनमोहक सुंदरता ने उनका पारा काफ़ी उतार दिया. वे अन्य देशों द्वारा अपने इस सुझाव को ठुकरा देने से भी नाराज़ नहीं नज़र आये कि जी7 को एक बार फिर जी8 बनाते हुए रूस को भी उसकी सदस्यता प्रदान की जानी चाहिये. उनके सुझाव के विरोधी यूरोपीय संघ के देशों ने कहा कि रूस जब तक यूक्रेन का हिस्सा रहे क्रीमिया को खा़ली नहीं कर देता, तब तक वह औद्योगिक देशों की इस विशिष्ट बिरादरी का सदस्य नहीं बन सकता. डोनाल्ड ट्रंप के पूर्ववर्ती बराक ओबामा के कहने पर रूस को 2014 में इस बिरादरी से निष्कासित कर दिया गया था.
पूर्वी यूक्रेन के रूसी भाषाभाषी बहुसंख्यकों के विद्रोह की गहमागहमी में रूस ने 2014 में क्रीमिया को हथियाकर उसका रूसी संघ में विलय कर लिया था. क्रीमिया की 23 लाख 50 हज़ार की जनसंख्या में 60 प्रतिशत से अधिक रूसी हैं. रूस का कहना है कि 16 मार्च 2014 को वहां हुए जनमतसंग्रह में 96.77 प्रतिशत वोट रूसी संघ के साथ विलय के पक्ष में पड़े थे. अमेरिका और यूरोपीय देश इसे नहीं मानते. वे तभी से रूस का आर्थिक-व्यापारिक बहिष्कार कर रहे हैं. डोनाल्ड ट्रंप इस बहिष्कार का अंत चाहते हैं, पर यूरोपीय देश इसके लिए राज़ी नहीं हैं. यूरोपीय देश रूस से अधिक रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पूतिन से घृणा करते हैं और उन्हें यथासंभव हर आयोजन से दूर रखते हैं.
ईरान को लेकर मतभेद
इसका ठीक उल्टा ईरान के प्रसंग में देखने में आता है. बराक ओबामा के प्रयासों से, 14 जुलाई 2015 को, ऑस्ट्रिया की राजधानी वियेना में ईरान के साथ एक परमाणु समझौता हुआ था. समझौते में ईरान एक पक्ष है और जर्मनी के साथ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सभी स्थायी सदस्य दूसरा पक्ष. ईरान को कम से कम 13 वर्षों तक एक परमाणु शक्ति बनने से रोकने के इस समझौते की शर्तें ऐसी हैं कि उनका पालन करने पर ईरान के विरुद्ध लगे वे प्रतिबंध उठा लिये जाते, जो उसे परमणु अस्त्रों से दूर रखने के लिए लगाये गये हैं.
आठ मई 2018 को डोनाल्ड ट्रंप ने एकतरफा ढंग से घोषित किया कि अमेरिका इस समझौते से पीछे हट रहा है और ईरान के विरुद्ध लगे प्रतिबंध जारी रहेंगे. यूरोपीय संघ और उसके सदस्य देश अमेरिका के इस निर्णय से कतई सहमत नहीं हैं और चाहते हैं कि अमेरिका ईरान से सीधे बातचीत करे. डोनाल्ड ट्रंप अब तक इससे कतराते रहे हैं. बियारित्स शिखर सम्मेलन के दूसरे दिन, 25 अगस्त की शाम एक ऐसी ख़बर आई, जिससे सनसनी फैल गयी. ख़बर यह थी कि ईरान के विदेश मंत्री मोहम्मद जवाद ज़रीफ़ अभी-अभी बियारित्स पहुंचे हैं.
अटकलों का बाज़ार गर्म
अटकलों का बाज़ार गर्म होने लगा. क्या अमेरिकी राष्ट्रपति अचानक ईरानी विदेशमंत्री से मिलने वाले हैं? यह कहीं फ्रांसीसी राष्ट्रपति का कोई बचकना दांव तो नहीं है, जिससे ट्रंप आगबबूला होने लगेंगे? ईरानी विदेश मंत्री के अचानक आने का मतलब क्या है? अटकलों को ठंडा करने के लिए कहा गया कि ईरानी विदेश मंत्री फ्रांसीसी विदेश मंत्री से मिलने आये हैं और शिखर सम्मेलन से इसका कोई संबंध नहीं है.
अगले दिन सुबह राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ही रहस्योद्घाटन किया कि फ्रांसीसी ऱाष्ट्रपति ने उन्हें सब कुछ पहले से ही बता रखा था. उनका कहना था, ‘मुझे सब कुछ पहले से ही मालूम था कि वे (माक्रों) क्या कर रहे हैं. मैं उनसे पूरी तरह सहमत था. सोच रहा था, सब ठीक ही तो है. मेरा समझना है कि (ईरानी राष्ट्रपति से) अभी ही मिलना जल्दबाज़ी होगी. अभी मैं ऐसा नहीं चाहता. लेकिन, वह क्षण भी आायेगा, जब ईरान से मिलना होगा. उस देश के पास बहुत सारी क्षमताएं हैं.’
डोनाल्ड ट्रंप ईरानी राष्ट्रपति से मिलेंगे
अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि ऐसे बहुत से विषय हैं, जिन पर किसी नये समझौते से पहले बातें करनी होंगी. उदाहरण के लिए, ईरान की बैलिस्टिक मिसाइलें और यह कि समझौता कितनी अवधि के लिए होगा. राष्ट्रपति ट्रंप ने ईरानी राष्ट्रपति हसन रूहानी से मिलने के बारे में कहा, ‘मैं समझता हूं, संभावनाएं बहुत अच्छी हैं कि हम मिलेंगे.’ यदि ऐसा होता है यानी अगर अमेरिका तथा ईरान एक-दूसरे के निकट आते हैं, तो इसका श्रेय भी फ्रांस के युवा राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों की सूझबूझ को ही देना होगा.
माक्रों एक और श्रेय के पात्र बने हैं. उनके सद्प्रयासों से तय हुआ है कि पृथ्वी का फेफड़े कहलाने वाले ब्राज़ील के एमेजॉन वनों में इस समय जो असाधारण आग लगी हुई है, उसे बुझाने के साधन जुटाने के लिए ब्राज़ील को दो करोड़ डॉलर की सहायता दी जायेगी. ब्राज़ील के मुंहफट राष्ट्रपति जाइर बोल्सोनारो ने पहले इससे इनकार कर दिया था. एक ट्वीट में उन्होंने लिखा, ‘हम इसे स्वीकार नहीं कर सकते कि राष्ट्रपति माक्रों अमेज़न क्षेत्र पर अवांछित हमले करें और अपने इरादों को छिपाने हेतु अमेज़न क्षेत्र के उद्धार के लिए जी7 देशों के गठबंधन की आड़ लें, मानो हम कोई उपनिवेश या कोई स्वामीहीन देश हैं... ब्राज़ील के आंतरिक मामलों में दखल देने के बदले माक्रों अपने फ्रांसीसी उपनिवेशों की चिंता करे.’ हालांकि चौतरफा आलोचना के बाद अब ब्राजील ने यह आर्थिक मदद स्वीकार कर ली है.
वैसे इस तरह की भड़काऊ बातों और बेढब निर्णयों के लिए अब तक अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जाने जाते थे. पर लगता है, इस बीच उन्होंने अपने आप पर कुछ लगाम लगाना भी सीखा है. जर्मन चांसलर (प्रधानमंत्री) अंगेला मेर्कल से मिलने पर उन्होंने कहा कि वे आशा करते हैं कि उन्हें जर्मन कारों के आयात पर कोई सीमाशुल्क नहीं लगाना पड़ेगा और यूरोपीय संघ के साथ कोई सम्मानजनक समझौता भी हो जायेगा. उन्होंने यह भी कहा कि उनके खून में जर्मन अंश भी है और वे जल्द ही जर्मनी की यात्रा करना चाहते हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति ने अभी तक एक बार भी जर्मनी की यात्रा नहीं की है.
जी7 शिखर सम्मेलन जब तक शुरू नहीं हुआ था, तब तक उसके अंत को लेकर अनेक प्रकार की आशंकाएं थीं. लेकिन अंत भारत सहित सबके लिए उससे कहीं अधिक संतोषजनक रहा, जितनी आशा की जा सकती थी. अब देखना यह है कि दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपनी किन बातों पर टिके रहते हैं और किन से मुकर जाते हैं. अगला जी7 शिखर सम्मेलन उन्हीं की मेज़बानी में 2020 में अमेरिका में होगा. भावी जी7 सम्मेलनों को यदि वास्तव में विश्व के सबसे प्रमुख औद्योगिक देशों का प्रतिनिधि सम्मेलन कहलाना है, तो उन्हें अपने द्वार रूस,चीन और भारत के लिए भी खोलने होंगे. फ्रांस ने इस बार इसका हल्का-सा संकेत दे दिया है.

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