प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी खाली, कार्यकारी अध्यक्षों में तालमेल की कमी

कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व ने सभी प्रदेशों में अध्यक्ष के साथ तीन-तीन कार्यकारी अध्यक्षों की भी नियुक्ति की। यह एक रणनीति के तहत किया गया थौ ताकि कामों का बंटवारा हो सके। लेकिन दिल्ली कांग्रेस में यह रणनीति कारगर साबित नहीं हो रही है। नेतृत्व के अभाव में प्रदेश कांग्रेस रामभरोसे ही चल रही है। यह स्थिति तब है जब दिल्ली में विधानसभा चुनाव की बिसात बिछ चुकी है और राजनीतिक पार्टियों ने तैयारियां भी शुरू कर दी है। 

आगामी विधानसभा चुनाव को लेकिन कांग्रेस में बेचैनी तो दिखाई पड़ रही है, लेकिन इससे ज्यादा बेचैनी कौन बनेगा प्रदेश अध्यक्ष को लेकर है। पार्टी में तीन कार्यकारी अध्यक्ष तो बने हुए है लेकिन इनमें तालमेल का अभाव नजर आ रहा है। 

आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारियों के लिए तालमेल बैठा कर सियासी रणनीति तैयार नहीं हो पा रही है। इस वजह से प्रदेश नेता ही नहीं कार्यकर्ता तक परेशान दिख रहे हैं। कांग्रेस में भारी बेचैनी व असमंजस का दौर चल रहा है। 

अध्यक्ष की कुर्सी खाली होने की वजह से पार्टी का कामकाज भी तेज नहीं हो पा रहा है। बेचैनी भरी चुप्पी का दौर चल रहा है। हालांकि कहा जा रहा है कि जल्द ही आलाकमान दिल्ली कांग्रेस को लेकर बैठक करने वाले है। इस सप्ताह कमान भी सौंप दी जाएगी। 

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कांग्रेस रणनीतिकारों की माने तो जिस तरह से भाजपा व आम आदमी पार्टी ने चुनाव की तैयारी शुरू की है इस लिहाज से ऐसा लग रहा है कि आगामी विधानसभा चुनाव अगले साल फरवरी के पहले या इस साल के अंत में भी हो सकता है। क्योंकि इस चुनाव को लेकर आम आदमी पार्टी व भाजपा में काफी गहमागहमी है। 

आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार भी लगातार नए-नए फैसले लेकर मतदाताओं को आकर्षित कर रही है। लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री व पूर्व प्रदेश अध्यक्ष शीला दीक्षित के निधन के बाद पूरी पार्टी में सदमे जैसे हालात बने हुए हैं। विधानसभा चुनाव को लेकर ना ही प्रचार की रणनीति बन रही है और न ही कोई निर्णय लिया जा रहा है। 

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