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पूर्वांचल में BJP की नई रणनीति: राजभर के सामने राजभर, पटेल के सामने पटेल

उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा को पस्त करने के बाद अब बीजेपी की नजर पूर्वांचल में खास जातियों के वोटों पर है. इसके लिए पूर्वांचल में प्रभावी छोटी दलों की जमीन खींचने में बीजेपी जुट गई है. पूर्वांचल के दो चेहरों के जरिए बीजेपी राजभर और कुर्मी वोटों को अपने पाले में करने के मिशन में जुट गई है.
बीजेपी ने एक रणनीति के तहत सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के मुखिया ओम प्रकाश राजभर के मुकाबले अनिल राजभर और अपना दल की अनुप्रिया पटेल के सामने रमाशंकर पटेल को मजबूत कर अपने इरादे जाहिर कर दिए हैं. बीजेपी इन छोटे दलों के कोर वोटर्स को एकमुश्त अपनी तरफ लाने की कोशिशों में जुटी है. कहा जा रहा है कि बीजेपी का मानना है कि सहयोगी पार्टी- अपना दल के प्रति नरम होकर कुर्मी वोटों को अपने पाले में नहीं लाया जा सकता. इसके लिए योजनाबद्ध तरीके से काम करना होगा. यही वजह है कि पहले मोदी सरकार में अनुप्रिया पटेल का पत्ता साफ हुआ और अब योगी सरकार के मंत्रिपरिषद विस्तार में उनके पति आशीष पटेल को जगह नहीं मिली.
माना जा रहा है कि 2017 के विधानसभा और 2019 के लोकसभा चुनाव में सभी जातियों से मिले व्यापक जनाधार से उत्साहित बीजेपी अब दूसरे दलों के लिए गुंजाइश छोड़ने के मूड में नहीं हैं. यही वजह है कि सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के बाद अब अपना दल के कोर वोटर्स को भी पाले में करने के लिए बीजेपी ने दांव चल दिया है. हालांकि बीजेपी के नेता छोटे दलों की जमीन खींचने की किसी योजना से इनकार करते हैं. उनका कहना है कि यह तो पार्टी विस्तार की स्वाभाविक प्रक्रिया है. जहां गुंजाइश दिखेगी वहीं पार्टी खुद को और अपने नेता को मजबूत करेगी. हालांकि यूपी के बीजेपी नेता अपना दल से पहले की तरह ही सहज रिश्ते होने की बात भी कहते हैं.
अनुप्रिया के जिले में बीजेपी ने पटेल नेता को किया मजबूत
कहां तो अनुप्रिया पटेल अपने पति और अपना दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष आशीष पटेल को योगी सरकार में मंत्री के रूप में देखना चाहतीं थीं. मंत्रिपरिषद के विस्तार से पहले अपना दल कार्यकर्ता आशीष पटेल के मंत्री बनने को लेकर बहुत आत्मविश्वास से दावे कर रहे थे, मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ.
बीजेपी ने आशीष पटेल की जगह मिर्जापुर के मड़िहान से अपने विधायक रमाशंकर पटेल को  मंत्री बनाकर और मजबूत करने का काम किया. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सहयोगी दल के 'घर' में ही किसी पटेल नेता को मंत्रिपद देकर मजबूत करने के पीछे बीजेपी की बड़ी योजना है. यह एक प्रकार से अनुप्रिया पटेल परिवार के समानांतर दूसरे पटेल नेता को उभारने की बीजेपी की कोशिश है. संदेश साफ है कि बीजेपी अपना दल और अनुप्रिया को भाव नहीं दे रही. बीजेपी पटेल वोटों के लिए अब अनुप्रिया पटेल के भरोसे नहीं रहने वाली.
दरअसल, मोदी सरकार की पहली पारी में अनुप्रिया पटेल को स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री बनाया गया था. मगर, मोदी सरकार की दूसरी पारी में अनुप्रिया पटेल को मंत्रिपरिषद में जगह नहीं दी गई. इसके बाद बाद माना जा रहा था कि इसके बदले बीजेपी उनके पति और अपना दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष आशीष पटेल को योगी सरकार में जगह देगी. आशीष पटेल चूंकि एमएलसी हैं, तो माना जा रहा था कि उन्हें राज्य में मंत्री बनाने के लिए ही बीजेपी ने एमएलसी बनाया है. मगर बुधवार को मंत्रिपरिषद के विस्तार के दौरान आशीष का नाम मंत्रियों की सूची से गायब रहा.
 
अपना दल से बेरुखी की वजह
आखिर अनुप्रिया पटेल परिवार से बीजेपी की बेरुखी की वजह क्या है? सांसद होने पर न अनुप्रिया पटेल को मोदी सरकार में जगह मिली और न ही एमएलसी होने पर पति आशीष को योगी सरकार में मंत्री बनने का मौका मिला. इसके पीछे अनुप्रिया पटेल के लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी के साथ किए बर्ताव को कारण बताया जा रहा. बीजेपी सूत्र बताते हैं कि 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान अनुप्रिया पटेल सीटों के मोल-भाव पर उतर आई थीं. यहां तक कि उनके प्रियंका गांधी के भी संपर्क में होने की खबरें आईं थीं.  चूंकि उस वक्त चुनाव का मौका था तो बीजेपी खामोश थी.
पार्टी को लग रहा था कि अभी किसी तरह की प्रतिक्रिया जाहिर होने से कुर्मी वोटों का नुकसान उठाना पड़ सकता है. मगर लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन के बाद भी  यूपी में बीजेपी 65 सीटें जीतने में सफल रही और लगभग सभी जातियों में पार्टी सेंधमारी करने में सफल रही तो फिर पार्टी ने अनुप्रिया पटेल को भाव देना बंद कर दिया.
चूंकि 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी 2014 से भी ज्यादा मजबूत होकर उभरी तो अनुप्रिया पटेल को भी लगा कि बीजेपी के साथ ही रहने में भलाई है, बागी बनने में नुकसान. वजह कि बीजेपी से मुठभेड़ लेने पर अनुप्रिया पटेल को पार्टी में टूट का भी खतरा मंडराने लगा. अपना दल के पास नौ विधायक और दो सांसद हैं. जिसमें एक सांसद खुद अनुप्रिया पटेल भी हैं. बीजेपी अतीत में कई छोटे दलों को तोड़ चुकी है. ऐसे में सूत्र बता रहे हैं कि केंद्र और राज्य दोनों सरकारों में प्रतिनिधित्व न मिलने पर भी अनुप्रिया पटेल की बीजेपी के साथ रहने की मजबूरी है.
राजभर को पहले ही कमजोर कर चुकी बीजेपी
बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में राजभर वोटों के लिए 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के साथ गठबंधन किया था. पूर्वांचल में कई सीटों पर राजभर मतदाता निर्णायक साबित होते हैं. गठबंधन का लाभ  बीजेपी को मिला था. नतीजा रहा कि योगी सरकार में ओम प्रकाश राजभर कैबिनेट मंत्री बने. मगर बीजेपी ने धीरे-धीरे बनारस की शिवपुरी सीट से विधायक अनिल राजभर को मजबूत करना शुरू किया. इसे ओम प्रकाश राजभर ने चुनौती के रूप में लिया.
2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान ओम प्रकाश राजभर भी सीटों का मोलभाव करने लगे. वहीं बीजेपी के खिलाफ बयानबाजी भी करने लगे. पार्टी मतदान तक शांत रही. मगर मतदान होने के बाद और नतीजे आने से एक हफ्ते पहले ओम प्रकाश राजभर को योगी ने बर्खास्त कर दिया. जिसके बाद उनके पिछड़ा वर्ग विभाग को अनिल राजभर को सीएम योगी ने सौंप दिया. अब जाकर बीजेपी ने अनिल राजभर को कैबिनेट मंत्री के तौर पर प्रमोट किया है. माना जा रहा है कि अनिल राजभर को मजबूत कर बीजेपी राजभरों को संदेश देना  चाहती है कि उनकी जाति में ओम प्रकाश राजभर से ज्यादा एक शक्तिशाली नेता है.
कुर्मी वोटों के लिए और भी दांव
बीजेपी ने कुर्मी वोटों के लिए कई दांव चले हैं. मसलन, रमाशंकर पटेल को जहां मंत्री बनाया. वहीं इससे पहले कुर्मी जाति से ही नाता रखने वाले स्वतंत्रदेव को पार्टी ने प्रदेश अध्यक्ष बनाया है. वहीं हाल में आनंदीबेन पटेल को राज्यपाल बनाया गया है. सूत्र बताते हैं कि इससे राज्य में कुर्मी मतदाताओं में संदेश गया है कि उनकी जाति के लोगों को बीजेपी अच्छा प्रतिनिधित्व दे रही है.

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