UNSC: कश्मीर पर बैठक शुरू, बेफिक्र भारत

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) के सदस्यों के बीच कश्मीर मुद्दे पर न्यू यॉर्क में चर्चा शुरू हो गई है। बंद दरवाजे में हो रही चर्चा को लेकर पाकिस्तान बेहद उत्साहित और आशान्वित है तो भारत इसे बहुत तवज्जो देता नहीं दिख रहा है। भारत की बेफिक्री का कारण यह है कि हाल के वर्षों में इस तरह की अनौपचारिक चर्चा का चलन बढ़ गया है जिनमें सुरक्षा परिषद के सदस्य बंद कमरे में बातचीत करते हैं और इनकी कोई जानकारी बाहर नहीं आती है। भारत के बेफिक्री के अन्य प्रमुख कारण रूस का चीन-पाकिस्तान के विरोध में मजबूती के साथ खड़ा होना और अमेरिका के साथ-साथ खुद संयुक्त राष्ट्र की इस मामले के प्रति खास दिलचस्पी का नहीं होना है। 
हालांकि, पाकिस्तान यूएन सिक्यॉरिटी काउंसिल द्वारा इस मुद्दे को चर्चा के लिए सूचीबद्ध करने के बाद से ही बेहद उत्साहित है। पाक विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने तो इसे पाकिस्तान की ऐतिहासिक उपलब्धि तक बता दिया है। उनका कहना है कि यूएनएससी कश्मीर मुद्दे पर 40 साल बाद चर्चा करने को राजी हुआ है जो पाकिस्तान की ऐतिहासिक राजनयिक उपलब्धि है। जबकि सचाई यह है कि सिक्यॉरिटी काउंसिल के प्रेजिडेंट जोना रॉनेका मीटिंग में पाकिस्तानी प्रतिनिधि की मौजूदगी तक की इजाजत नहीं दी। पाकिस्तान की गुहार पर चीन ने सिक्यॉरिटी काउंसिल के मौजूदा अध्यक्ष पोलैंड से पाकिस्तानी प्रतिनिधि की मौजूदगी में काउंसिल की औपचारिक मीटिंग की मांग की थी, लेकिन वह सदस्य देशों की सहमति नहीं जुटा पाया। इसलिए, चीन की पहल पर अब बंद कमरे में एक अनौपचारिक मीटिंग भर होगी। 
इसलिए बेफिक्र है भारत 
यही वजह है कि भारत इस मीटिंग को कुछ खास तवज्जो नहीं दे रहा है। भारतीय सूत्रों ने कहा कि सिक्यॉरिटी काउंसिल का कोई भी सदस्य देश कश्मीर पर औपचारिक या पूर्ण बैठक बुलाने पर राजी नहीं हुआ, जिसके बाद चीन को अनौपचारिक चर्चा की ही मांग करनी पड़ी। वह अपने मित्र देश पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय आबरू बचाने के लिए बंद कमरे में बातचीत पर ही राजी हो गया जिसका कोई औपचारिक नतीजा नहीं निकलना है। 

पाकिस्तान की खुशी का राज क्या है? 
उधर, पाकिस्तान को लग रहा है कि यूएन सिक्यॉरिटी काउंसिल में चर्चा मात्र से उसे कश्मीर पर बढ़त मिल जाएगी। दरअसल, पाकिस्तान की खुशी का राज यह है कि यूएन हमेशा कश्मीर के मसले को नजरअंदाज करता रहा है। इस पर आखिरी अनौपचारिक मीटिंग 1971 में और आखिरी औपचारिक या फुल मीटिंग 1965 में हुई थी। पाकिस्तानी विदेश मंत्री ने गुरुवार को ट्वीट किया था,' यूएनएससी ने हमारा आग्रह मानकर कल (शुक्रवार) भारत के एकतरफा फैसले और कश्मीर में मानवीय संकट पर चर्चा करने जा रहा है। हम हर प्लैटफॉर्म पर कश्मीर की आवाज उठाते रहेंगे।' 
अमेरिका की ओर से भी भारत निश्चिंत 
हालांकि, राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप कश्मीर मसले पर मध्यस्थता को लेकर दिलचस्पी दिखाने के बाद भारत की कठोर प्रतिक्रिया पाकर अपना हाथ खींच चुके हैं। ऐसे में अमेरिकी प्रशासन और वहां की ससंद, दोनों इस मामले में कोई दिलचस्पी लेंगे, इसके आसार नहीं के बराबर हैं। अमेरिका से नाउम्मीदी के कारण ही पाकिस्तान ने अफगानिस्तान की चाल चली और कहा कि उसे अपनी फौज अफगानिस्तान से हटाकर भारतीय सीमा पर तैनात करनी पड़ेगी जिससे अमेरिका के अफगानिस्तान से निकलने की योजना खटाई में पड़ सकती है। ब्लैकमेलिंग पाकिस्तान की पुरानी रणनीति रही है। अमेरिका किसी भी तरह अफगानिस्तान से ससम्मान वापस होना चाहता है और पाकिस्तानी इसी का फायदा उठाने की कोशिश कर रहा है। 
पाकिस्तान के पुराने हथकंडे से परिचित है दुनिया 
भारतीय राजनयिक इस चाल को पाकिस्तान का पुराना हथंकडा बताते हैं। भारत का मानना है कि पाकिस्तान अतीत में परमाणु युद्ध, नरसंहार, जिहाद आदि की भभकी देता रहा है। एक अधिकारी ने कहा, 'हमें नहीं लगता कि इसमें (कश्मीर में) किसी को कोई खास दिलचस्पी है। अगर ऐसा होता तो यूएनएससी आपातकालीन बैठक बुलाती। तथ्य यह है कि सिर्फ एक देश (चीन) ने इसकी मांग की। इसका मतलब है कि किसी कोई को फर्क नहीं पड़ रहा है कि पाकिस्तान क्या चाहता है।' 
बहुत कुछ बोलता है UNSC प्रेजिडेंट का बॉडी लैंग्वेज 
कश्मीर के ताजा मामले पर ध्यान देने की संयुक्त राष्ट्र की अनिच्छा यूएनएससी प्रेजिडेंट जोना रॉनेका के बॉडी लैंग्वेज में भी प्रकट होती है। उन्होंने एक प्रेस ब्रीफिंग के दौरान कश्मीर से जुड़े सवाल को बिल्कुल तवज्जो नहीं दी थी। वॉशिंगटन में अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने भी कश्मीर पर ध्यान आकृष्ट करने के पाकिस्तानी पत्रकार के तमाम प्रयासों को नकार दिया था। 
रूस, फ्रांस समेत कई देश देंगे पाक-चीन को झटका 
भारत को रूस से मिले साथ के कारण भी यूएन सिक्यॉरिटी काउंसिल की मीटिंग को लेकर कुछ सोचने की जरूरत नहीं है। रूस ने स्पष्ट कर दिया है कि कश्मीर भारत-पाकिस्तान का द्विपक्षीय मुद्दा है जिस पर यूएन के हस्तक्षेप की गुंजाइश ही नहीं बनती है। वहीं, भारत को सिक्यॉरिटी काउंसिल के एक और स्थायी सदस्य फ्रांस एवं इसकी अस्थाई सदस्यता वाले यूरोपियन यूनियन के कुछ देशों का भी साथ मिलने की भी उम्मीद है। 

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