महात्मा गांधी की यात्राओं ने दी उत्तराखंड में स्वतंत्रता आंदोलन को गति

आजादी के आंदोलन में उत्तराखंड की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस के कार्यक्रमों में उत्तराखंड के लोगों की हिस्सेदारी से यहां भी स्वतंत्रता आंदोलन की लहर तेजी से फैली। जिसे और गति देने का कार्य गांधीजी की यात्राओं ने किया। गांधीजी ने पहली बार अप्रैल 1915 में उत्तराखंड की यात्रा की थी। तब वे कुंभ के मौके पर हरिद्वार आए थे। इस दौरान वे ऋषिकेश और स्वर्गाश्रम भी गए। वर्ष 1916 में उनका दोबारा हरिद्वार आना हुआ। तब स्वामी श्रद्धानंद के विशेष आग्रह पर उन्होंने गुरुकुल कांगड़ी में व्याख्यान दिया था। इसी दौरान गांधीजी से मिलने के लिए देहरादून से डीएवी स्कूल के छात्रों का एक समूह भी हरिद्वार पहुंचा था। जून 1929 में जब गांधीजी का स्वास्थ्य कुछ खराब चल रहा था, तब वे पंडित जवाहर लाल नेहरू के आग्रह पर स्वास्थ्य लाभ करने के लिए अहमदाबाद से कुमाऊं आए थे। 
गांधीजी की उत्तराखंड यात्राओं पर शोध करने वाले दून लाइब्रेरी एंड रिसर्च सेंटर के रिसर्च एसोसिएट चंद्रशेखर तिवारी लिखते हैं कि सितंबर 1929 में गांधीजी ने फिर उत्तराखंड की यात्रा की। इस दौरान वे मसूरी के अलावा कुछ दिन देहरादून में भी रुके। देहरादून में उन्होंने कन्या गुरुकुल का भ्रमण किया और राजपुर रोड में शहंशाही आश्रम के सामने तत्कालीन मानव भारती विद्यालय परिसर में पीपल का एक पौधा रोपा। आज भी यह बूढ़ा दरख्त गांधीजी की स्मृतियों को जिंदा रखे हुए है। तब इस विद्यालय के संचालक शिक्षाविद् डॉ. डीपी पांडे हुआ करते थे। वे गांधी के पक्के भक्त थे।  

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