महागठबंधन में अदावत: न बात-न मुलाकात, यह कैसी एकता; फिर डगमगा रहे मांझी

बिहार में महागठबंधन के प्रमुख घटक दलों की अदावत अपने सियासी प्रतिद्वंद्वियों से कम और दोस्तों से ज्यादा है। नेतृत्व की कमी, अवसरवादिता और संवादहीनता ने सबकी राहें तकरीबन जुदा कर दी हैं। तीन तलाक और जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर केंद्र सरकार के फैसले के बाद घटक दलों के अलग-अलग स्टैंड ने फासले को और बढ़ा दिया है। महागठबंधन के एक प्रमुख सहयोगी और पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने तो नाता-रिश्ता भी खत्म करने का ऐलान कर दिया है। स्पष्ट है कि लालू प्रसाद ने राजद के नेतृत्व में जिस मकसद से बिहार में भाजपा और जदयू विरोधी दलों का एक मंच बनाया था, वह मंजिल पर पहुंचने के पहले ही बिखरता नजर आ रहा है। 
सबके अपने-अपने स्‍टैंड
राजद का शीर्ष नेतृत्व अपने घरेलू मोर्चे पर ही उलझा हुआ है। कांग्रेस को महागठबंधन कहीं नजर नहीं आ रहा है। हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) ने अन्य साथी दलों से दूरी बना ली है। जीतनराम मांझी ने दोस्ती का बंधन तोड़कर राजद और कांग्रेस पर सियासी ठगी का आरोप लगा दिया है। रालोसपा अपनी ही दुनिया में मस्त-व्यस्त है। लोकसभा चुनाव से महज कुछ महीने पहले बनी विकासशील इंसान पार्टी (वीआइपी) के प्रमुख का वास्ता राजनीति से कम और व्यवसाय से ज्यादा है। जाहिर है, भाजपा-जदयू के विरोध में पांच सियासी दल बिहार की सत्ता पर कब्जे का जो ख्वाब देख रहे थे, वह पूरा नहीं हो सका तो सबकी गांठें लगभग खुल चुकी हैं। 

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