अनुच्छेद 370: संघ के सपने को पूरा करने के लिए संविधान को तार-तार कर दिया गया

भारत में दक्षिणपंथी राजनीति पुराना मिथक रहा है कि जम्मू-कश्मीर को गैर-जरूरी किस्म का संवैधानिक दर्जा मिला हुआ है और वहां की समस्याओं की जड़ संविधान के अनुच्छेद 370 के कारण कश्मीरियों के साथ किया जाने वाला विशेष व्यवहार है. और अब जबकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और भारतीय जनता पार्टी ने अपने ही गढ़े गए झूठ को सही साबित करने के लिए इस समस्याप्रद अनुच्छेद को समाप्त कर दिया है, कम से कम अब किसी को यह शिकायत करने का मौका नहीं मिलेगा.
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने न सिर्फ अनुच्छेद 370 की आत्मा को नष्ट कर दिया है, उन्होंने एक कदम और आगे बढ़ते हुए पूरे राज्य के अस्तित्व को ही समाप्त कर दिया है और इसे दो बांटुस्तानों (दक्षिण अफ्रीका और दक्षिण पश्चिम अफ्रीका में रंगभेद नीति के तहत अश्वेतों के लिए अलग किए गए प्रदेश) -जिन्हें भव्य तरीके से केंद्र शासित प्रदेश कहा गया- में बांट दिया गया, जिसमें कानून-व्यवस्था और जमीन जैसे अहम मसलों पर वहां के लोगों और उनके प्रतिनिधियों की जगह नई दिल्ली में बैठे नौकरशाहों द्वारा फैसला लिया जाएगा.
सिर चढ़ा दिए जाने और तुष्टीकरण के दौर के बाद गरीब कश्मीरियों को- जिनके विशेष दर्जे ने उन्हें ‘ह्यूमन शील्ड’ (मानव ढाल), हाफ-विडो (वैसी कश्मीरी औरतें, जिनके पति एक दिन अचानक लापता हो गए और फिर उनके बारे में कोई सुराग नहीं मिला), पैलेट गन से मिली दृष्टिहीनता, पथरीबल और माछिल जैसे फर्जी मुठभेड़, प्रताड़ना और गुमशुदगी जैसी नेमतें बख्शीं- कड़े प्रेम के दौर के लिए तैयार रहने की जरूरत है.
शाह के इन धमाकों के साथ जिस तरह के कदम उठाए गए, उन्हें सामान्य तौर पर सैन्यवादी राजसत्ता के साथ ही जोड़ा जाता है. बेहद अहम संवैधानिक बदलावों को चोरी-छिपे पेश करना, बहस के लिए पर्याप्त समय न देना, देर रात कश्मीर में मुख्यधारा के नेताओं की गिरफ्तारी, लोगों के एक जगह जमा होने पर प्रतिबंध, इंटरनेट सेवाएं ही नहीं, लैंडलाइन सेवाओं तक को बंद करना- ये किसी तख्तापलट जैसा एहसास कराने वाले थे.
संदेश साफ है: कश्मीर में वैसी खुली राजनीति के लिए कोई जगह नहीं रहेगी, जिसे भारत के दूसरे सभी अभिन्न हिस्से अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं. लेकिन जैसा मैंने पहले कहा, आरएसएस का पुराना सपना पूरा हो गया है. धारा 370 को समाप्त करने की तरह राज्य को दो हिस्सों में या तीन हिस्सों में बांटना उनकी पुरानी मांग रही है- और भारत के बाकी हिस्से के लोग, जो अब वहां जमीन खरीदने का सपना देख रहे हैं, काफी जल्दी वे अब देखेंगे कि यह कदम कश्मीर की समस्याओं का कितना जादुई समाधान साबित होने वाला है.
पिछले 45 सालों में राज्य ने दस साल केंद्र के कठोर शासन का लुत्फ उठाया है और उसकी स्थिति में इससे कोई सुधार नहीं हुआ है. पिछले 12 महीने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद राष्ट्रपति और राज्यपाल के मार्फत वहां का शासन चला रहे हैं, लेकिन वहां के हालात भाजपा-पीडीपी गठबंधन वाली सरकार के दिनों से भी ज्यादा खराब हैं, जब भाजपा राज्य सरकार को चलाने में मदद कर रही थी. मोदी के पांच साल का शासन कश्मीर में बढ़ी हुई हिंसा का गवाह रहा है क्योंकि उनकी नीतियों ने स्थानीय लोगों को ज्यादा अलग-थलग करने का काम किया है, जिसके नतीजे के तौर पर यहां चल रहे उग्रवाद को ज्यादा स्थानीय समर्थन मिला है. नीचे आतंकी घटनाओं और शहीद हुए सैनिकों की संख्या के बारे में दिया गया ग्राफ, जो फरवरी, 2019 में सरकार द्वारा संसद में उपलब्ध कराए गए आंकड़ों पर आधारित है, अपनी कहानी खुद कहता हैः

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