उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू बोले : ...तब मुझे मालूम हुआ कि मैंने अपने चेहरे पर कालिख पोती थी
‘एक बार मैंने हिंदी के विरोध में आंदोलन किया था. हमने हिंदी भाषा का विरोध किया था. हमसे पूछा गया कि हमारे आसपास में हिंदी कहां है. काफी खोजने के बाद हमने पाया कि हमारे राज्य में दो जगह हिंदी है. रेलवे स्टेशन और पोस्ट ऑफिस. हम सब रेलवे स्टेशन पहुंचे और वहां हिंदी में लिखे शब्दों पर काली स्याही पोत दी. चुनाव जीतकर जब मैं पहली बार संसद पहुंचा, तो मुझे एहसास हुआ कि मैंने तब हिंदी पर कालिख नहीं पोती थी, मैंने अपने चेहरे पर कालिख पोत ली थी.’
ये बातें भारत के उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने शनिवार को रांची में कहीं. झारखंड से प्रकाशित सबसे लोकप्रिय समाचार पत्र ‘प्रभात खबर’ के 35वें स्थापना दिवस समारोह को संबोधित करते हुए लोगों के साथ श्री नायडू ने यह संस्मरण साझा किया. उन्होंने बताया कि अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी बनाने के लिए हुई बहस और मतदान के बाद उनकी पोती ने व्हाट्सएप के जरिये उन्हें यह कहानी याद दिलायी. श्री नायडू ने कहा कि दिल्ली में उन्हें एहसास हुआ कि हिंदी कितनी जरूरी है और उन्होंने कितनी बड़ी गलती की थी.
उपराष्ट्रपति श्री नायडू ने क्षेत्रीय पत्रकारिता के महत्व पर प्रकाश डालते हुए ये बातें कहीं. उन्होंने कहा कि स्थानीय लोगों पर क्षेत्रीय भाषाओं का प्रभाव होता है. कहा कि आपकी अपनी मातृभाषा आपकी आंखें हैं, जबकि अन्य भाषाएं चश्मा. यदि आपकी आंखें ठीक हैं, तो सब कुछ दिखता है. यदि आंखें ही नहीं होंगी, तो चश्मा आपकी कोई मदद नहीं कर सकता. उन्होंने यह भी कहा कि अपने बच्चों को अपनी भाषा जरूर सिखायें. उन्होंने शुरुआती शिक्षा बच्चों की मातृभाषा में दिये जाने पर जोर दिया.