NRC: 40 लाख लोगों में से कितनों को थमाया जाएगा बांग्लादेश का टिकट, 22 दिन बाद फैसला!

सुप्रीम कोर्ट ने 31 अगस्त तक असम में नेशनल सिटिजन रजिस्टर (एनआरसी) का काम पूरा करने का आदेश दिया है. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की पीठ ने असम एनआरसी के समन्वयक प्रतीक हजेला से दो टूक कहा कि वह आलोचनाओं की परवाह किए बगैर यह काम पूरा करें. क्योंकि एनआरसी पर तो लोग बोलते ही रहेंगे. पिछले साल जारी एनआरसी ड्राफ्ट में 40 लाख लोग बाहर हुए थे. ये वे लोग थे, जो उस वक्त अपनी नागरिकता से जुड़े सबूत नहीं पेश कर सके थे. उन्हें बाद में एनआरसी लिस्ट में नाम शामिल करने के लिए दस्तावेज पेश करने का मौका मिल चुका है. सभी की निगाहें अब अंतिम रूप से प्रकाशित होने जा रहे नेशनल सिटिजन रजिस्टर के आंकड़ों पर टिकी हैं.
सवाल है कि क्या सभी 40 लाख लोग बाहर होंगे या फिर दस्तावेजों के परीक्षण के बाद तमाम लोगों को भारतीय नागरिक माना जाएगा. बांग्लादेशी घुसपैठियों के सवाल पर गृह मंत्री चुनावी रैलियों में कह चुके हैं कि जो नागरिकता साबित नहीं कर पाएंगे, उन्हें वापस भेजा जाएगा. बताया जा रहा है कि धारा 370 के बाद अब एनआरसी की अंतिम सूची के प्रकाशन के बाद हंगामा मचना तय है. क्योंकि बड़ी संख्या में लोग दस्तावेजों के अभाव में बाहर होने वाले हैं. सूत्र बता रहे हैं कि अगर घुसपैठियों को तुरंत बाहर नहीं किया गया तो तब तक यहां मिलने वाले उनके सभी अधिकारी छीन लिए जाएंगे.
जुलाई 2018 को नेशनल सिटिजन रजिस्टर( एनआरसी) का ड्राफ्ट प्रकाशित हुआ था. इसमें कुल 3.29 करोड़ में से 2.9 करोड़ लोगों का नाम शामिल था. जबकि 40 लाख लोगों को छोड़ दिया गया था. बाद में सुप्रीम कोर्ट ने ड्राफ्ट से बाहर रहे 10 प्रतिशत लोगों का दोबारा सत्यापन करने का आदेश दिया था. दरअसल, कोर्ट ने उन मीडिया रिपोर्ट्स को संज्ञान में लिया था, जिसमें  एक पूर्व सैनिक को भी लिस्ट से बाहर कर दिया गया था. सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में असम में एनआरसी तैयार करने का काम चल रहा है. पहले 31 जुलाई 2019 तक प्रकाशन होना था.
मगर काम पूरा न होने पर अंतिम समय-सीमा बढ़ाकर 31 अगस्त कर दिया गया है. गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान जब सुप्रीम कोर्ट ने एनआरसी के संयोजक प्रतीक हजेला से प्रगति रिपोर्ट तलब की तो उन्होंने बताया कि ड्राफ्ट में कुछ गड़बड़ियां थीं, जिसे दूर कर रहे हैं. इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि हम 31 अगस्त तक एनआरसी का प्रकाशन चाहते हैं.
दस्तावेजों की कमी से छूटे नाम
असम सरकार से जुड़े सूत्रों का कहना है कि जब ड्राफ्ट तैयार हुआ था तो उसकी भारी संख्या में गड़बड़ियां सामने आईं. बड़ी संख्या में असम के मूल निवासियों के नाम इसलिए छूट गए थे कि उनके पास सबूत के तौर पर पेश करने के लिए जरूरी दस्तावेज नहीं थे. वहीं, कई बांग्लादेशी एनआरसी तैयार करने वाले कर्मियों से सांठगांठ कर अपना नाम दर्ज कराने में सफल हो गए. बांग्लादेश की सीमा से सटे जिलों में ऐसी शिकायतें ज्यादा सामने आईं. जिसके बाद से सुप्रीम कोर्ट और राज्य सरकार ने ड्राफ्ट की नमूना जांच कराने का फैसला किया. जब 40 लाख लोग ड्राफ्ट से बाहर किए गए तो बाद में आपत्तियां ली गईं. एनआरसी में शामिल होने के लिए कोऑर्डिनेटर ऑफिस को 36.2 लाख आवेदन मिले.
क्यों एनआरसी की पड़ी जरूरत?
असम में बांग्लादेशियों की घुसपैठ की समस्या को लेकर पांच दशक पहले विद्रोह हुआ. छह साल लंबा जनांदोलन चला. जिसके बाद एक समझौता हुआ, जिसे असम समझौता 1985 कहते हैं. इसके तहत तय हुआ कि 25 मार्च 1971 तक असम में निवास करने वाले लोगों को ही मूल निवासी माना जाएगा. इसके बाद जो भी दाखिल हुआ होगा, उसे अवैध मानकर वापस भेजा जाएगा. असम में विधानसभा चुनाव के दौरान एनआरसी को बीजेपी ने मुद्दा बनाया था. राज्य में बीजेपी की सरकार बनने के बाद इस पर केंद्र के स्तर से काम शुरू  हुआ.
हालांकि, एनआरसी में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए मॉनिटरिंग सुप्रीम कोर्ट कर रहा है. ड्राफ्ट से बाहर हुए लोगों ने दस्तावेजों के साथ दावा किया है. अब आखिरी लिस्ट आने पर पता चलेगा कि ड्राफ्ट से बाहर हुए 40 लाख में से कितने लोगों के नाम शामिल होंगे. कितनों को निकाला जाएगा. केंद्र सरकार ने स्पष्ट कह रखा है कि अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों को वापस भेजा जाएगा. इस रजिस्टर में उन लोगों के नाम शामिल किए जाएंगे, जो इस बात का सुबूत दे पाएंगे कि उनका जन्म 21 मार्च, 1971 से पहले असम में हुआ था.

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