जम्मू-कश्मीर नहीं रहा अब स्पेशल, विधान परिषद इतिहास के पन्नों में दर्ज

नरेंद्र मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को असरहीन और राज्य को 2 केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया है. जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बनने के साथ ही सूबे की विधान परिषद खत्म हो गई है. जम्मू-कश्मीर की 70 साल पुरानी विधान परिषद अब इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गई है, क्योंकि देश के किसी भी केंद्र शासित प्रदेश में विधान परिषद नहीं है.
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बता दें कि जम्मू-कश्मीर के पुर्नगठन विधेयक पास होने से पहले देश के साथ राज्यों में विधान परिषद की व्यवस्था थी. इनमें आंध्र प्रदेश, बिहार, जम्मू-कश्मीर, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश शामिल है. मोदी सरकार द्वारा हाल ही में जम्मू-कश्मीर को दो हिस्सों में बांटते हुए जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को केंद्र शासित राज्य बना दिया है. इसी के साथ जम्मू-कश्मीर में विधान परिषद की व्यवस्था खत्म हो गई है.
जम्मू-कश्मीर में विधान परिषद
जम्मू-कश्मीर में विधान परिषद के कुल 36 सदस्य होते थे. इन सदस्यों को एमएलसी कहा जाता है. इनके पास विधायकों के बराबर सारे अधिकार होते है. गाड़ियां, सुरक्षा दस्ते और विधायकों के बराबर निर्वाचन क्षेत्र फंड का इस्तेमाल करने के अधिकार प्राप्त होते थे.
जम्मू कश्मीर के पुनर्गठन का आदेश लागू होते ही विधान परिषद अतीत बन गई है. विधान परिषद के चेयरमैन खुमैनी बेग ने aajtak.in से बातचीत करते हुए कहा कि जम्मू-कश्मीर में विधान परिषद को खत्म कर दिया गया है. राज्य के पुर्नगठन के साथ ही केंद्र सरकार इसे जारी रखेगी या नहीं इसका कुछ पता नहीं है.
हालांकि, गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि जम्मू-कश्मीर को बाद में केंद्र शासित प्रदेश से पूर्ण राज्य बना दिया जाएगा. वहीं, वरिष्ठ पत्रकार अरविंद सिंह ने कहा कि देश के किसी भी केंद्र शासित प्रदेश में विधान परिषद नहीं है. ऐसे में सरकार जम्मू-कश्मीर के पुर्नगठन के बाद वहां विधान परिषद की व्यवस्था रखे, यह बहुत मुश्किल है. अगर सरकार जम्मू-कश्मीर में विधान परिषद को बरकरार रखती है तो देश के इतिहास में पहला केंद्र शासित राज्य होगा, जहां इस प्रकार की व्यवस्था होगी.
बता दें कि जम्मू-कश्मीर के 36 विधान परिषद से मौजूदा समय में 30 सदस्य थे. जबकि 6 सीटें खाली है. इनमें चार सीटों को पंचायत सदस्यों के साथ भरा जाता है. दो सीटें निकाय निर्धारित करता था. पुर्नगठन से पहले पीडीपी के 11, बीजेपी के 11, नेशनल कॉन्फ्रेंस के 4 और कांग्रेस के चार विधान परिषद सदस्य थे.
पंचायत और निकाय रहेंगी बरकरार
जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बन जाने के बाद भी पंचायतें बरकरार रहेंगी. जम्मू-कश्मीर में दो नगर निगम जम्मू व श्रीनगर और नगर परिषद एवं म्यूनिसिपल कमेटियां भी बनी रहेंगी. इसके अलावा लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेश बन जाने के बाद भी लेह और कारगिल की पहाड़ी विकास स्वायत्त काउंसिल बनी रहेगी.
बता दें कि पिछले साल जम्मू कश्मीर में पंचायतों के चुनाव हुए थे. निकायों के चुनाव भी करवाए गए थे. ऐसे में मोदी सरकार इन चुनी हुई निकायों को भंग नहीं करेगी. पंचायतों का कार्यकाल पांच वर्ष के लिए होता है. निकाय भी पांच साल के लिए बने हैं. सबसे अहम यह होगा कि जम्मू कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बन जाने के बाद देश के संविधान का 73वां और 74वां संशोधन लागू हो जाएगा. इससे पंचायतें मजबूत हो जाएंगी.
जम्मू-कश्मीर में पिछले साल नवंबर-दिसंबर में ग्रामीणों ने जमीनी सतह पर लोकतंत्र की बुनियाद पक्की करने के लिए 35096 पंच और 4490 सरपंच चुने थे. पंचायत चुनाव के बाद कभी ब्लॉक डेवलपमेंट काउंसिल के लिए चुनाव नहीं हुए. इस समय राज्य में कुल 343 ब्लॉक हैं. इनमें जम्मू संभाग में 177 और कश्मीर में 168 ब्लॉक हैं. लद्दाख में लेह और कारगिल में पहाड़ी विकास काउंसिल का अस्तित्व बना रहेगा

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