खूब हुआ काम लेकिन इस मामले में पिछड़ा 17वीं लोकसभा का पहला सत्र

17वीं लोकसभा ने विधायी कार्यों के मामलों में पुराने रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं. इस बार 36 विधेयकों को लोकसभा से मंजूरी दी गई है. लेकिन अब तक इतने लंबे सत्र के बावजूद भी लोकसभा को नया डिप्टी स्पीकर नहीं मिल पाया है. सदन ने सर्व-सम्मति से 19 जून को ओम बिड़ला को नया लोकसभा स्पीकर नियुक्त किया था लेकिन डिप्टी स्पीकर चुनने के मामले में यह लोकसभा पिछड़ती नजर आ रही है. आमतौर पर पहले ही सत्र में डिप्टी स्पीकर का चुनाव हो जाता है लेकिन इस बार शायद सरकार का फोकस विधेयकों को मंजूरी दिलाने की ओर रहा है.
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लोकसभा में इससे पहले सिर्फ 2 ही मौके ऐसे आए हैं, जब डिप्टी स्पीकर के चुनाव में एक महीने से ज्यादा का वक्त लगा है. पहली बार साल 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में सत्र के 58वें दिन कांग्रेस सांसद पीएम सईद को डिप्टी स्पीकर नियुक्त किया गया था. इसके बाद, दूसरी बार 2014 में एनडीए सरकार के गठन के बाद सत्र के 34वें दिन AIADMK के एम थंबीदुरई को डिप्टी स्पीकर चुना गया था. यूपीए के पहले कार्यकाल में सत्र के पहले ही हफ्ते में अकाली दल के चरणजीत सिंह अटवाल को इस पद की जिम्मेदारी दी गई थी, जबकि यूपीए-2 में सत्र की शुरूआत के छठे दिन करिया मुंडा को डिप्टी स्पीकर बनाया गया था.
देर रात तक बैठे ओम बिड़ला
लोकसभा के नियमों के मुताबिक सत्र की शुरूआत के बाद जल्द से जल्द स्पीकर और डिप्टी स्पीकर के चुनाव की बात कही गई है. लोकसभा स्पीकर की गैर-मौजूदगी में डिप्टी स्पीकर और स्पीकर का पैनल ही सदन की कार्यवाही को चलाने के लिए जिम्मेदार है. ऐसे में डिप्टी स्पीकर के चुनाव में देरी की वजह से स्पीकर ओम बिड़ला को देर रात तक बैठकर सदन की कार्यवाही चलानी पड़ी है. हालांकि, स्पीकर के पैनल में शामिल रमा देवी, राजेंद्र अग्रवाल, एनके प्रेमचंद्रन, मीनाक्षी लेखी, के सुरेश, बी महताब समेत 10 सदस्यों ने पहले सत्र में सदन की कार्यवाही को आगे बढ़ाने का काम किया है.
क्या है सदन का गणित
गौर करने की बात यह है कि शिवसेना जैसे दल इस पद के लिए अपनी दावेदारी पेश कर चुके हैं. शिवसेना सांसद संजय राउत खुले तौर पर सरकार से डिप्टी स्पीकर का पद उनकी पार्टी को देने की मांग कर चुके हैं. लेकिन सरकार इस पद को कांग्रेस से बाहर के नेता को देना चाहती है. आम तौर पर यह पद विपक्षी दल के किसी सांसद को देने की परंपरा रही है लेकिन शायद पिछली बार की तरह इस बार भी यह पद गैर-यूपीए और गैर-एनडीए के किसी दल को दिया जा सकता है.   
संसद में संख्याबल के मुताबिक बीजेपी के बाद मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस इस पद की सबसे बड़ी दावेदार है. इसके बाद डीएमके का नंबर आता है. दो अन्य बड़े दल बीजेडी और YSR कांग्रेस पहले ही इस पद को लेने से इनकार कर चुके हैं. ऐसे में जेडीयू और शिवसेना के किसी सांसद को भी यह पद दिया जा सकता है.

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