स्पीकर ओम बिड़ला ने स्पीड ब्रेकर हटाकर इस बार चलाई नहीं दौड़ाई है लोकसभा

17वीं लोकसभा के पहले सत्र में खूब सरकारी कामकाज हुआ और 36 विधेयकों पर मुहर लगाई गई. इस सत्र में लोकसभा को ओम बिड़ला के रूप में नया स्पीकर मिला जिन्होंने कुछ संसदीय परंपराओं को सदन की बेहतरी के लिए बदल दिया. साथ ही गतिरोध खत्म करने की दिशा में बड़े कदम उठाए और प्रचंड सत्तापक्ष के मुकाबले कमजोर विपक्ष को बराबरी से अपनी आवाज उठाने का मौका दिया. इसी का नतीजा है कि लोकसभा रिकॉर्ड विधेयकों को पारित कर सकी और इस बार एक भी बार सदन की कार्यवाही व्यवधान की वजह से स्थगित नहीं की गई.
हिन्दी को दिया बढ़ावा
लोकसभा में स्पीकर के पद में बैठने वाले ज्यादा सदस्य अंग्रेजी में ही सदन को संबोधित करते थे. इसकी एक वजह थी कि पूर्व में कई स्पीकर गैर हिन्दी भाषी थे लेकिन जो हिन्दी भाषी क्षेत्रों से आए उन्होंने भी प्रचलित मान्यताओं को लागू करते हुए सदन अंग्रेजी में ही चलाया. ओम बिड़ला ने इसे बदला है और वह कार्यवाही के वक्त ज्यादा से ज्यादा हिन्दी शब्दों को इस्तेमाल करते हैं. यहां तक कि सांसदों को 'माननीय सदस्यगण, लोकसभा गण' कहना, माहौल शांत करने के लिए 'आसन पैरों पर है' कहना और वोटिंग के दौरान हां या ना के जरिए उन्होंने हिन्दी जुबान दी है.
विपक्ष को बराबरी का दर्जा
सदन सभी के सहयोग से ही चलता है और इस फॉर्मूला को ओम बिड़ला ने पूरी तरह अपनाया. मजबूत विपक्ष के सामने बंटे हुए विपक्ष को भी स्पीकर ने आवाज देने का काम किया है. शून्य काल हो या प्रश्न काल सदन में हर मौके पर कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी बोलते तो कभी उन्हें चेयर की ओर से रोका नहीं गया. यहां तक कि स्थगन प्रस्ताव के नोटिस को खारिज करते हुए भी वह विपक्षी सांसदों को अपनी बात रखने का मौका देते, जिसकी तारीफ विपक्षी के तमाम नेता आज कर भी रहे हैं. पिछली लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन में विपक्ष के कई नेताओं ने पक्षपात के आरोप लगाए थे और कुछ को तो सदन में उनकी कड़ी फटकार भी झेलनी पड़ी थी.
बहुमत नहीं अनुशासन को माना
सत्ता पक्ष की ओर से जब कई बार विपक्षी सांसदों पर कोई टिप्पणी की गई तो ओम बिड़ला ने उन्हें याद दिला दिया कि आप संख्याबल में कितनी भी क्यों न हो लेकिन सदन अनुशासन और स्पीकर अनुमति से चलेगा. उन्होंने सदन में साफ कह रखा है कि किसी पार्टी का भले ही एक सांसद क्यों न हो, उसे भी अपनी बात कहने का हक है और किसी को भी उस पर बगैर इजाजत के टिप्पणी का अधिकार नहीं है. यहां तक कि कई मौकों पर उन्होंने नियमों का हवाला देकर मंत्रियों तक को फटकार लगा दी.
नए सांसदों को मौका
इस बार पहली बार चुनकर आए 265 नए लोकसभा सांसदों में से 229 को पहले ही सत्र में बोलने का मौका मिला. साथ ही 46 महिला सांसदों में से 42 सांसदों को शून्य काल में अपनी बात कहने का मौका स्पीकर की ओर से दिया गया है. खुद ओम बिड़ला जब 2014 में पहली बार चुनकर लोकसभा पहुंचे थे तब उन्हें भी पहले सत्र में बोलने का मौका नहीं मिल पाया था. स्पीकर सत्र भर नए सांसदों का उत्साह बढ़ाते रहे और उन्हें अपनी बात सदन में रखने के लिए प्रेरित भी किया.
विवादों का नरमी से निपटारा
पिछली लोकसभा में AAP सांसद भगवंत मान को पूरे शीतकालीन सत्र से सस्पेंड कर दिया गया था क्योंकि तब उन्होंने संसद परिसर का एक वीडियो लाइव कर दिया था. इस बार भी बीजेपी सांसद रमा देवी पर टिप्पणी के बाद सपा सांसद आजम खान को सस्पेंड करने की मांग सत्तापक्ष ने खूब जोर से उठाई और तब ओम बिड़ला ने बीच का रास्ता अपनाया. उन्होंने सदन में आजम से माफी मंगवाई और विवाद को किनारे किया. इस दौरान उन्होंने आजम से यहां तक कहा कि माफी मांगने से कोई छोटा नहीं हो जाता. अगर ऐसा न होता तो सत्तापक्ष आजम खान के खिलाफ मोर्चाबंद करने को पूरी तरह तैयार था.
स्पीकर ओम बिड़ला को सदन चलाने में सत्तापक्ष के प्रचंड बहुमत का सहयोग जरूर मिला लेकिन उन्होंने विपक्ष को भी समानता के पैमान पर आंकने का काम किया. सही अर्थों में स्पीकर को भूमिका को निभाते हुए वह किसी ओर बंटे नजर नहीं आए जो चेयर की सबसे बड़ी शर्त है. स्वभाव से शांत ओम बिड़ला को सदन में नाराज होते भी देखा गया लेकिन उनका मकसद सदन को सुचारू ढंग से चलाना और गतिरोध को खत्म करना ही रहा.
कितना हुआ कामकाज
पहले सत्र में लोकसभा की उत्पादकता 125 फीसदी रही जिस पर स्पीकर ओम बिड़ला ने कहा कि 1952 से लेकर अब तक यह सबसे स्वर्णिम सत्र रहा है. इस सत्र में बिल्कुल भी गतिरोध नहीं हुआ. उन्होंने कहा कि 17 जून से शुरू हुए इस सत्र में कुल 37 बैठकें हुईं जिस दौरान 280 घंटे तक सदन में चर्चा की गई. सदन में औसत से ऊपर करीब 70 घंटे ज्यादा बैठकर विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की गई. बता दें कि 11वीं, 14वीं, 15वीं, और 16वीं लोकसभा के पहले सत्र में कोई भी बिल पास नहीं हो सका था.

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