संविधान सभा में बहस के दौरान मौलाना हसरत ने भी किया था आर्टिकल 370 का विरोध

आर्टिकल 370 में संशोधन के प्रस्ताव पास होने के बाद जम्मू-कश्मीर को मिला विशेष दर्ज़ा तो ख़त्म होगा ही, इसके साथ ही पूर्ण राज्य का दर्ज़ा भी ख़त्म हो जाएगा. यानी नए फ़ैसले के बाद अब जम्मू-कश्मीर और लद्दाख दोनों अलग केंद्र शासित प्रदेश होगा. हालांकि लद्दाख पर पूरी तरह से केंद्र का शासन होगा, जबकि कश्मीर में दिल्ली जैसी सरकार बनेगी. 17 अक्टूबर 1949 में नेहरू सरकार के मंत्री गोपालस्वामी आयंगर ने भारत की संविधान सभा में अनुच्छेद 306(ए) (वर्तमान अनुच्छेद 370) पेश किया था.
उस दौरान संयुक्त प्रदेश (वर्तमान में यूपी) का प्रतिनिधित्व करने वाले मशहूर शायर, दार्शनिक, इस्लामी विद्वान और आज़ादी की लड़ाई के मज़बूत सिपाही मौलाना हसरत मोहानी ने इसका पुरज़ोर विरोध किया था. उन्होंने इस बारे में कश्मीर मामले देख रहे गोपालस्वामी आयंगर के सामने अपना पक्ष रखा.
संविधान के कई अनुच्छेदों पर आज़ादी की लड़ाई के दौरान ‘इंक़लाब जिंदाबाद’ का मशहूर नारा देने वाले हसरत मोहानी की राय को बहुत गंभीरता से लिया गया था. लेकिन जब कश्मीर को विशेष दर्जा देने के लिए अनुच्छेद 370 पर संविधान सभा में विचार-विमर्श शुरू हुआ तो विरोध करने वाले मौलाना हसरत मोहानी अकेले थे.
यहां तक कि जम्मू कश्मीर से चुने गए 4 सदस्य वहां मौजूद होते हुए भी खामोश रहे थे. संयुक्त प्रांत यानी मौजूदा उत्तर प्रदेश की तरफ से एक और सदस्य महावीर त्यागी ने तीन संशोधन ज़रूर प्रस्तावित किए थे. लेकिन बाद में उन्हें वापस ले लिया था. मौलाना हसरत मोहानी ने खड़े होकर आयंगर को टोकते हुए पूछा, ‘यह भेदभाव वाला अनुच्छेद संविधान में क्यों जोड़ा जा रहा है?’ जिसके बाद आयंगर साहब ने मौलाना को समझाते हुए कहा था कि 370 तोड़ने वाली नहीं जोड़ने वाली धारा है.
संविधान सभा में बहस के दौरान डॉक्टर भीम राव अंबेडकर ने भी इस अनुच्छेद के बारे में एक शब्द नहीं बोला. लेकिन जब पंडित नेहरू ने शेख अब्दुल्ला को इस विषय पर बात करने के लिए डॉक्टर अंबेडकर के पास भेजा तो डॉक्टर अंबेडकर ने साफ तौर पर शेख अब्दुल्ला से कहा, ‘आप यह चाहते हैं कि भारत कश्मीर की रक्षा करे, कश्मीरियों को पूरे भारत में समान अधिकार हो, पर भारत और भारतीयों को आप कश्मीर में कोई अधिकार नहीं देना चाहते. मैं भारत के कानून मंत्री की हैसियत से अपने देश के साथ इस प्रकार की धोखाधड़ी और विश्वासघात में शामिल नहीं हो सकता.’
बता दें कि शायरी का शौक रखने वाले हसरत मोहानी ने अपने वक़्त के मशहूर शायर तसलीम लखनवी और नसीम देहलवी जैसे शायरों को अपना उस्ताद माना और उनसे शायरी करना सिखा. बॉलीवुड की सुपरहिट फिल्म निकाह में मशहूर ग़ज़ल- ‘चुपके चुपके रात दिन आंसू बहाना याद है’ (जिसे गायक ग़ुलाम अली ने आवाज़ दी थी) हसरत मोहानी ने ही लिखा था.
जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने संबंधित प्रावधानों एवं विधेयक को राज्यसभा की मंजूरी
राज्यसभा ने सोमवार को अनुच्छेद 370 की अधिकतर धाराओं को खत्म कर जम्मू कश्मीर एवं लद्दाख को दो केन्द्र शासित क्षेत्र बनाने संबंधी सरकार के दो संकल्पों को मंजूरी दे दी. गृह मंत्री अमित शाह ने इस अनुच्छेद के कारण राज्य में विकास नहीं होने और आतंकवाद पनपने का दावा करते हुए आश्वासन दिया कि जम्मू कश्मीर को केन्द्र शासित क्षेत्र बनाने का कदम स्थायी नहीं है तथा स्थिति समान्य होने पर राज्य का दर्जा बहाल कर दिया जाएगा.
उच्च सदन में कांग्रेस सहित कई विपक्षी दलों के भारी हंगामे के बीच गृह मंत्री अमित शाह द्वारा पेश किए गये दो संकल्पों एवं जम्मू कश्मीर पुनर्गठन विधेयक को चर्चा के बाद मंजूरी दी गयी. साथ ही सदन ने जम्मू कश्मीर आरक्षण (द्वितीय संशोधन) विधेयक, 2019 को भी मंजूरी दी. इनको पारित किये जाने के समय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी सदन में मौजूद थे. प्रधानमंत्री मोदी ने शाह की पीठ थपथपाते हुए उन्हें बधाई दी और गृह मंत्री शाह ने हाथ जोड़कर उनका आभार जताया.
सरकार के दोनों संकल्पों के एवं पुनर्गठन विधेयक के प्रावधानों के तहत जम्मू कश्मीर विधायिका वाला केन्द्र शासित क्षेत्र बनेगा जबकि लद्दाख बिना विधायिका वाला केन्द्र शासित क्षेत्र होगा. इन दोनों संकल्पों को साहसिक और जोखिमभरा माना जा रहा है. शाह ने जम्मू कश्मीर से राज्य का दर्जा लिये जाने पर नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद द्वारा जतायी गयी चिंता का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘जैसे ही स्थिति सामान्य होगी और उचित समय आयेगा, हम जम्मू कश्मीर को राज्य का दर्जा दे देंगे।’’ उन्होंने कहा कि जम्मू कश्मीर ‘‘देश का मुकुट मणि’’ है और बना रहेगा.
गृह मंत्री ने जम्मू कश्मीर में आतंकवाद और सभी प्रकार के सामाजिक अन्याय के लिये सिर्फ अनुच्छेद 370 को जिम्मेदार ठहराते हुये कहा कि इसके हटने पर राज्य में विकास, अन्याय और आतंकवादी हिंसा सहित सभी प्रकार की बाधायें दूर हो जायेंगी. शाह ने कहा कि जम्मू कश्मीर में पिछले कुछ सालों में 41,849 स्थानीय लोग आतंकवाद के रक्तपात की भेंट चढ़े.
उन्होंने कहा कि इस प्रावधान से सिर्फ तीन ‘‘सियासतदान’’ परिवारों का भला हुआ. इतना ही नहीं राज्य में पर्यटन सहित अन्य क्षेत्र में कारोबार भी इन्हीं तीन परिवारों के इर्दगिर्द ही सीमित रहा. इसके कारण न तो युवाओं को रोजगार मिला, न ही उद्यमशील बनने के अवसर मिल सके. नतीजतन राज्य की जनता को मंहगाई का भी दंश झेलना पड़ रहा है. इन सभी समस्याओं के मुख्य कारण अनुच्छेद 370 और 35 ए हैं.

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