कठघरे में योग्‍यता: कम अंक वालों को रोजगार, अधिक वाले बेरोजगार; जानें JSSC का कारनामा

मेधावी छात्रों के साथ अन्याय की कहानी झारखंड के लिए कोई नई बात नहीं रही। झारखंड लोक सेवा आयोग के पूर्व के कारनामे किसी से छिपे नहीं हैं, जिसमें दर्जनों मेधावी अभ्यर्थियों की योग्यता को नजरअंदाज कर पैसे और पहुंच को कहीं अधिक तरजीह दी जाती रही है। लिहाजा दर्जनों नाकाबिल अभ्यर्थी राज्य प्रशासन के शीर्ष पदों पर काबिज हो गए और योग्यताधारी भटकते रहे। कुछ ऐसी ही कहानी इस बार राज्य कर्मचारी आयोग दोहरा रहा है।
यहां पहुंच और पैसे की बात अबतक तो उजागर नहीं हुई है। इससे इतर सरकार की नीतियों ने भी कई मामलों में युवकों की योग्यता को कठघरे में लाकर खड़ा कर दिया है। नतीजतन कम अंक लाने वाले युवक रोजगार पा रहे हैं और अधिक अंक लाकर भी सैकड़ों युवक सड़क पर भटकने को विवश हैं। बताते चलें कि राज्य में हाई स्कूल शिक्षकों के 17 हजार पदों के विरुद्ध बहाली की प्रक्रिया पिछले कई महीनों से चल रही है। झारखंड राज्य कर्मचारी चयन आयोग के स्तर से हो रही बहाली में शिक्षकों का पद राज्यस्तरीय न कर जिलास्तरीय कर दिया गया है।
सरकार की इस नीति के कारण किसी जिले में अधिक अंक लाने के बावजूद जहां कई अभ्यर्थियों का चयन नहीं हो पा रहा है, वहीं कई जिलों में कम अंक लाकर भी युवक शिक्षक बन जा रहे हैं। कई जिलों के लिए निर्धारित कट ऑफ मार्क्‍स के अनुरूप शिक्षक ही नहीं मिल पा रहे हैं। अगर यही बहाली राज्य स्तर पर होती तो यह समस्या सामने नहीं आती। आयोग द्वारा चयनित शिक्षकों की जारी सूची इन गड़बडिय़ों की बानगी है।
अगर हम शारीरिक शिक्षा के लिए बहाल हुए शिक्षकों की बात करें तो आयोग ने पलामू जिले के लिए कट ऑफ मार्क्‍स सामान्य के लिए 184 तथा अनुसूचित जाति के लिए 140 तय किया है। इससे इतर दुमका में 150 और कोडरमा में 152 अंक निर्धारित किए गए। अर्थशास्त्र की बात करें तो जहां कोडरमा में 150 अंक लाने वाले अभ्यर्थी शिक्षक बन गए, वहीं गिरिडीह में 165 अंक लाने वालों को शिक्षक बनने का मौका नहीं मिल सका।
इसी तरह जीव विज्ञान और रसायन शास्त्र की बात करें तो पलामू में 194 अंक लाने वाले सामान्य श्रेणी के युवकों को शिक्षक बनने का मौका मिला, वहीं सिमडेगा में 144 अंक लाने वाले ही शिक्षक बन गए। गणित और भौतिकी की बात करें तो गिरिडीह में सामान्य अभ्यर्थियों के लिए कट ऑफ मार्क्‍स 186 निर्धारित था, जबकि कोडरमा के लिए 154 तय था। अगर यही व्यवस्था राज्य स्तर पर होती तो योग्यताधारी अभ्यर्थियों को मौका मिलता, क्योंकि सवाल सिर्फ बहाली का नहीं, बच्चों के भविष्य गढऩे का है।

More videos

See All