कश्मीर को लेकर मोदी सरकार के मन में क्या चल रहा है?

बीते 24 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार में सबसे ताकतवर नौकरशाह माने जाने वाले देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल दो दिवसीय जम्मू कश्मीर यात्रा गए थे. ऐसा कहा गया कि राज्य में उनका यह दौरा अमरनाथ यात्रा को लेकर है और वे वहां दर्शन करने जा रहे हैं. हालांकि इस दौरान उन्होंने कश्मीर घाटी की ताजा स्थिति जानने के लिए राज्य के शीर्ष अधिकारियों से मुलाकात भी की. डोभाल की दो दिवसीय यात्रा समाप्त होने से पहले 25 जुलाई को गृह मंत्रालय द्वारा राज्य में देश के अर्धसैनिक बलों की 100 कंपनियों (10 हजार जवान) की तैनाती का आदेश जारी किया गया.
गृह मंत्रालय के इस आदेश में कहा गया कि अतिरिक्त बलों की तैनाती राज्य में आतंकरोधी कार्रवाई को बढ़ाने और कश्मीर में कानून-व्यवस्था की स्थिति को बनाए रखने के लिए की गई है. इसके बाद 1 अगस्त को 28 हजार अतिरिक्त जवानों की तैनाती किए जाने की भी सूचना आई. बता दें कि, इससे पहले अमरनाथ यात्रा के सिलसिले में राज्य में 40 हजार अतिरिक्त जवानों की तैनाती की गई थी. हाल ही में आईएएस की नौकरी छोड़कर जम्मू कश्मीर की राजनीति में उतरने वाले और जम्मू कश्मीर पीपुल्स मूवमेंट (जेकेपीएम) पार्टी प्रमुख शाह फैसल ने कहा, ‘सेना की नई टुकड़ियों की तैनाती को लेकर सरकार को रुख स्पष्ट करना चाहिए.’
पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने ट्वीट कर कहा था, ‘घाटी में 10 हजार अतिरिक्त अर्धसैनिक जवानों की तैनाती के केंद्र के फैसले लोगों के बीच भय का माहौल बन गया है. कश्मीर में सुरक्षा बलों की कोई कमी नहीं है. जम्मू कश्मीर एक राजनीतिक समस्या है जिसे सेना के सहारे नहीं सुलझाया जा सकता है.’ वहीं अतिरिक्त सुरक्षा बलों की तैनाती को लेकर नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने कहा था, ‘15 अगस्त के बाद राज्य में माहौल बिगड़ने को लेकर प्रशासन द्वारा अनुचित अफवाहें फैलाई जा रही हैं. केंद्रीय मंत्रियों से आ रहे बयान अनुच्छेद 35 ए को खत्म करने की ओर इशारा कर रहे हैं, जिससे अफवाहों को बल मिल रहा है.’
हालांकि, जम्मू कश्मीर विधान परिषद में भाजपा के सदस्य अजय भारती कहते हैं, ‘राज्य में जो अर्धसैनिक बलों की नई टुकड़ियां तैनात की गई हैं वे रूटीन प्रक्रिया का हिस्सा है. लेकिन सत्ता से बाहर हो चुकी पार्टियां इसे असामान्य बनाने की कोशिश कर रही हैं.’ हालांकि, यह मामला सिर्फ अतिरिक्त सुरक्षाबलों को जम्मू कश्मीर में तैनात करने से नहीं जुड़ा हुआ था. केंद्रीय सशस्त्र अर्द्धसैनिक बलों की अतिरिक्त कंपनियां भेजे जाने के केंद्र सरकार के आदेश के बाद से राज्य में तमाम तरह की चर्चाएं शुरू हो गई हैं. इस बीच बीते दो जुलाई को अमरनाथ यात्रा पर रोक और फिर सैलानियों को जल्द से जल्द कश्मीर घाटी छोड़कर चले जाने का आदेश जारी होने के बाद यहां डर का माहौल पैदा हो गया है.
ऐसी चर्चा है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा नीत केंद्र सरकार संविधान के अनुच्छेद 35-ए को वापस ले सकती है जो राज्य के लोगों के विशेष निवास और नौकरी के अधिकारों से जुड़ा हुआ है. पिछले तीन दिनों से राज्य सरकार के अधिकारियों और केंद्र सरकार के कुछ विभागों की तरफ से जारी कई आदेशों से आशंकाएं जताई जा रही हैं कि जम्मू कश्मीर को लेकर कोई बड़ा निर्णय होने वाला है. एक आरपीएफ अधिकारी द्वारा कश्मीर के बिगड़ते हालात को लेकर लिख गए पत्र की वजह से भी इन चर्चाओं को और बल मिला. पत्र में आरपीएफ के सहायक सुरक्षा आयुक्त (बड़गाम) सुदेश नुग्याल ने कश्मीर में हालात बिगड़ने की आशंका के मद्देनजर कानून-व्यवस्था से निपटने के लिए कर्मचारियों को कम से कम चार महीने के लिए रसद जमा कर लेने, सात दिन के लिए पानी एकत्र कर लेने और गाड़ियों में ईंधन भरकर रखने को कहा था.

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