5 वजहें, जिसके चलते कश्‍मीर में उतारी गई अतिरिक्त 38,000 फोर्स!

पहले 10 हजार और फिर 28 हजार. मोदी सरकार पिछले कुछ दिनों में कश्मीर घाटी में 38 हजार अतिरिक्त सुरक्षा बल की तैनाती कर चुकी है. जब पहली बार मोदी सरकार ने 10 हजार अतिरिक्त सैनिक भेजे थे, तभी ये बातें होने लगी थीं कि भाजपा 35ए हटाने की तैयारी में जुटी है. हालांकि, मोदी सरकार ने इस आशंका को सिरे से खारिज कर दिया था. अब 28 हजार जवान फिर से कश्मीर भेजे जाने पर भी सवाल उठने लगते हैं. इस तरह लगातार घाटी में सेना की तैनाती बढ़ाने पर ये भी सवाल उठ रहा है कि क्या घाटी में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है? वैसे मोदी सरकार की ओर से तो कहा गया है कि मौजूदा हालात पहले से काफी बेहतर हुए हैं. तो फिर इतने सारे सुरक्षा बलों की तैनाती किस लिए?
24 जुलाई को गृह राज्य मंत्री जी कृष्णन रेड्डी ने राज्य सभा में एक लिखित जवाब में कहा था कि 2018 की तुलना में जम्मू-कश्मीर में स्थिति बेहतर हुई है. उनके अनुसार घुसपैठ 43 फीसदी कम हुई है और स्थानीय लोगों को विरोधी गतिविधियों के लिए रिक्रूट करने में करीब 40 फीसदी की कमी आई है. आतंकी गतिविधियों को 28 फीसदी कम कर दिया गया है. सुरक्षा बलों की ओर से जवाबी कार्रवाई में 59 फीसदी की बढ़त देखने को मिली है. इन सब की वजह से आतंकियों को खत्म करने में 22 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है. जनवरी 2019 से 14 जुलाई 2019 तक कश्मीर में 126 आतंकियों का सफाया किया गया है.
अब सवाल ये है कि अगर सब कुछ बेहतर होता जा रहा है तो सेना की तैनाती को कम करना चाहिए, लेकिन मोदी सरकार इसे लगातार बढ़ा क्यों रही है? एक नजर में भले ही मोदी सरकार की तरफ से अधिक सैन्य बल का घाटी में भेजना संदेह पैदा करता हो, लेकिन थोड़ा गहराई से देखें तो पता चलेगा कि इसकी जरूरत है. बल्कि अगर आने वाले दिनों में कुछ और जवानों की कंपनियां घाटी में भेजी जाएं तो हैरानी नहीं होनी चाहिए. सेना की तैनाती बढ़ाने की कई वजहें हैं.
1- अमरनाथ यात्रा
10 जुलाई 2017 का वो दिन कौन भूल सकता है, जब अमरनाथ यात्रियों से भरी बस पर अनंतनाग में आतंकियों ने हमला किया था. इस हमले में 7 यात्रियों की मौत हो गई थी, जबकि 32 लोग घायल हो गए थे. 2006 के बाद करीब 11 साल सब ठीक था, लेकिन 2017 में हुए इस हमले ने अमरनाथ यात्रियों की सुरक्षा पर सवाल उठा दिए. पिछले 26 सालों में अमरनाथ यात्रियों पर कुल 14 हमले हो चुके हैं, जिसमें 68 लोगों की मौत हो चुकी है. खुद जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने एक एडवाइजरी जारी करते हुए अमरनाथ यात्रियों और पर्यटकों से कहा है कि वह कश्मीर छोड़ दें. अमरनाथ यात्रा को बीच में ही रोक दिया गया है. प्रशासन को सूचना मिली है कि घाटी में आतंकी हमला हो सकता है. ऐसे में अमरनाथ यात्रियों की सुरक्षा एक बड़ी चुनौती है.
इसी साल पुलवामा में सेना के जवानों पर आतंकी हमला हुआ, जिससे भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध तक की नौबत पैदा हो गई थी. अब फिर से खुफिया एजेंसियों ने भारत सरकार को अलर्ट किया है कि कश्मीर में फिर से कोई आतंकी घटना हो सकती है. सरकार नहीं चाहती कि इससे अमरनाथ यात्रियों को कोई दिक्कत हो. वैसे भी, पहले के मुकाबले अमरनाथ यात्रियों की संख्या काफी कम हो गई थी. इस बार ये तेजी से बढ़ी है, जिसकी वजह सुरक्षा व्यवस्था पर लोगों का बढ़ा हुआ भरोसा ही है.
1 जुलाई से अमरनाथ यात्रा की शुरुआत हुई है, जिसे सुरक्षा कारणों से स्‍थगित किया जा रहा है. करीब महीने भर में ही लगभग 3.42 लाख लोग अमरनाथ यात्रा कर चुके हैं. आपको बता दें कि 2013 में 3.53 लाख, 2014 में 3.72 लाख और 2015 में 3.52 लाख लोग अमरनाथ यात्रा पर गए थे. 2016 में ये संख्या एक झटके में गिरकर 2.20 लाख पर आ गई. इसकी सबसे बड़ी वजह थी जुलाई में हुई आतंकी बुरहान वानी की मौत, जिसके बाद कश्मीर उबलने लगा था. ऐसे में बहुत से लोगों ने अपनी सुरक्षा के लिए अमरनाथ यात्रा नहीं करने का फैसला किया था. 2017 में आंकड़ा थोड़ा बढ़ा जरूर, लेकिन 2.60 लाख पर ही रुक गया. 2018 में भी अमरनाथ यात्रियों की संख्या में थोड़ा इजाफा हुआ और आंकड़ा 2.85 लाख पहुंच गया. इस बार सरकार ये सुनिश्चित करना चाहती है कि हर अमरनाथ यात्री की सुरक्षा की जिम्मेदारी सरकार की है, ताकि लोगों का भरोसा जीता जा सके. इससे ना सिर्फ घाटी में माहौल सुधरेगा, बल्कि अमरनाथ यात्रा करने वालों की संख्या भी बढ़ेगी.
2- तिरंगा फहराना है
इस बार 15 अगस्त को भाजपा कश्मीर घाटी में बड़े स्तर पर स्वतंत्रता दिवस मनाने की तैयारी में है. इसके तहत पंचायत प्रमुखों को अपने-अपने क्षेत्रों में तिरंगा फहराने को कहा जाएगा. जिस राज्य का अपना अलग झंडा है, वहां पर तिरंगा फहराने पर विरोध होना तो लाजमी है, जिसे मोदी सरकार अच्छे से समझती है. ऐसे में सुरक्षा बलों की जरूरत तो पड़ेगी ही. हालांकि, ये तय है कि कश्मीर के हर कोने में तिरंगा फहरा देने के बाद मोदी सरकार की वाहवाही और अधिक बढ़ जाएगी.
3- चुनाव की तैयारी
लोकसभा के साथ जम्मू-कश्मीर विधानसभा का चुनाव न कराने को लेकर विपक्षी राजनीति के निशाने पर भाजपा युद्ध स्तर पर तैयारियों में जुटी हुई है. वैसे तो इस समय जम्मू कश्मीर में ना कांग्रेस या नेशनल कॉन्फ्रेंस चुनाव लड़ने की हालत में है ना ही पीडीपी, लेकिन भाजपा अपनी तैयारी में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है. जम्मू में तो भाजपा का दबदबा है, लेकिन कश्मीर में लोगों का भरोसा जीतने में अभी भी भाजपा नाकाम रही है, ऐसे में अलगाववादियों से निपटने के लिए सरकार को पहले से ही चाक-चौबंद रहना जरूरी है. वैसे भी, जम्मू-कश्मीर जैसी जगह, जहां पर अक्सर ही हिंसा और उपद्रव होता रहता है, वहां शांति और सुरक्षा के साथ चुनाव कराना किसी चुनौती से कम नहीं है.
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4- घुसपैठ की खुफिया रिपोर्ट
पुलवामा हमले से पहले ही चेतावनी मिली थी, लेकिन सरकार की चूक के चलते वह हमला हो गया, जिसके बाद मोदी सरकार को काफी कुछ सुनना भी पड़ा था. अब आने वाले कुछ महीनों में जम्मू-कश्मीर में चुनाव होने हैं और एक बार फिर आतंकी हमले की आशंका की सूचना सरकार को मिली है. खबर है कि जैश-ए-मोहम्मद के 5 आतंकी पाकिस्तान से भारत में घुसपैठ कर चुके हैं और किसी घटना को अंजाम दे सकते हैं. इतना ही नहीं, ये भी खबर है कि करीब 110 आतंकी इसी फिराक में हैं कि सेना की गश्त कमजोर पड़े या उनका ध्यान किसी तरह दूसरी ओर कर के घुसपैठ की जाए. सेना की चिनार कोर के कमांडर केजेएस ढिल्लन ने कहा है कि हाल ही में सेना ने अमरनाथ यात्रा के रूट पर एक आतंकी ठिकाने को ध्वस्त किया था, जहां से सेना को अमेरिका में बनी एक एम-24 राइफल मिली है. वहां से एक एंटी पर्सनल माइन भी बरामद हुई है. सेना को अंदेशा है कि पाकिस्तान की आईएसआई कश्मीर में आतंक फैलाने की कोशिश में जुटी है. अब मोदी सरकार कोई चांस नहीं लेना चाहती है. यही वजह है कि पहले तो 10 हजार सुरक्षा बल घाटी पहुंचा और अब 28 हजार और जवान तैनात कर दिए गए हैं.
5- IED ब्‍लास्‍ट का अंदेशा
आज ही सुबह तड़के आतंकियों ने दक्षिण कश्मीर के शोपियां में 55 राष्ट्रीय राइफल की एक गाड़ी पर आईईडी हमला किया. शुक्र ये है कि किसी भी जवान को कोई चोट नहीं आई है. हालांकि, गाड़ी को जरूर नुकसान पहुंचा है. वहीं दूसरी ओर, जम्मू कश्मीर प्रशासन को आतंकी हमला होने को लेकर पहले ही अलर्ट किया गया है, जिसके चलते भी सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद होना जरूरी है. वैसे भी, पुलवामा हमले में सुरक्षा में चूक सामने आई थी, अब सरकार कोई रिस्क नहीं लेना चाहती है.
कुछ दिन पहले ही अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इमरान खान से मुलाकात के बाद ये ऑफर दे दिया है कि अगर भारत-पाकिस्तान चाहें तो वह कश्मीर मामले में मध्यस्थता कर सकते हैं. भारत ने तो उनका ये ऑफर ठुकराते हुए साफ कर दिया है कि ये मामला भारत और पाकिस्तान के बीच का है, लेकिन पाकिस्तान मानो अमेरिका की मध्यस्थता के लिए तैयार हो गया है. ट्रंप के इस बयान की वजह से अलगाववादियों को भी ताकत मिली है. ट्रंप ने ये भी कहा है कि कश्मीर में तो बम फटते ही रहते हैं. ऐसे में अलगाववादी भी ये कोशिश करेंगे कि कश्मीर में हिंसा और धमाकों का माहौल बना रहे, ताकि भारत पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी एक दबाव बने कि वह कश्मीर मामले में मध्यस्थता के लिए तैयार हो जाए. अलगाववादियों के हौंसले पस्त करने के लिए भी सेना के जवानों की तैनाती जरूरी है और मोदी सरकार ने वही किया है.
 

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