पीएम के नजरिये से सीमांत गांवों के विकास की आस

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सीमांत गांवों के विकास को प्राथमिकता देने और उनकी पीड़ा को समझने के बयान ने उत्तराखंड के सीमांत गांवों में भी आशा की किरण जगाई है। कारगिल विजय दिवस पर प्रधानमंत्री के इस उद्बोधन के बाद सीमा के अघोषित प्रहरी के रूप में बसे गांव और द्वितीय पंक्ति की सुरक्षा के रूप में तैनात रहने वाले ग्रामीण अब विकास कार्यों के तेजी पकडऩे और आधारभूत सुविधाओं को मिलने की उम्मीद कर रहे हैं। माना यह भी जा रहा है कि प्रधानमंत्री के इस बयान के बाद मसूरी में रविवार को हो रहे हिमालयन कॉन्क्लेव में सीमांत गांवों पर गंभीरता से मंथन होगा। 
 उत्तराखंड राज्य की सीमाएं चीन और नेपाल की अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं से मिलती है। उत्तराखंड से चीन की 350 किमी लंबी और नेपाल की 275 किमी लंबी सीमा सटी हुई है। अंतर्राष्ट्रीय सीमा से सटे गांव सामरिक दृष्टि से बेहद अहम माने जाते हैं। वहां के ग्रामीण द्वितीय रक्षा पंक्ति के अघोषित सैनिक के रूप में देखे भी जाते हैं। कई मौकों पर सीमांत गांवों में रहने वाले ग्रामीण इस बात को साबित कर चुके हैं। यहां तक कि कारगिल में पाकिस्तानी सेना के घुसने की खबर भी ग्रामीणों ने भारतीय सेना को दी थी। 

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