76 पार येदियुरप्पा मुख्यमंत्री बन आडवाणी से मारेंगे बाज़ी ?


राजनीतिक पंडित इसे दक्षिण के इस राज्य में अमित शाह की बीजेपी के 'ऑपरेशन कमल' की कामयाबी के तौर पर देख रहे हैं.
लेकिन इस कामयाबी के सूत्रधारों में जिन लोगों का नाम लिया जा सकता है. उनमें पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा का नाम पहली कतार में लिया जाए.
कर्नाटक दक्षिण भारत का पहला राज्य है, जहां भारतीय जनता पार्टी का कमल खिला और इसका सेहरा भी काफ़ी हद तक येदियुरप्पा के सिर ही बांधा गया.
हालांकि कर्नाटक में भाजपा किसे मुख्यमंत्री बनाएगी इसकी औपचारिक घोषणा होनी अभी बाक़ी है लेकिन येदियुरप्पा के नाम पर संदेह करने वाले लोग कम ही होंगे.
 
येदियुरप्पा चौथी बार मुख्यमंत्री बनेंगे. लेकिन इसके लिए 76 साल की उनकी उम्र भी आड़े नहीं आने वाली.
इस मामले में येदियुरप्पा ने पूर्व उपप्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी को भी पीछे छोड़ दिया है. वो काम जो आडवाणी भी ना कर सके, येदियुरप्पा करने वाले हैं.
जब आडवाणी ने 75 साल की दहलीज़ पार की तो मोदी और शाह की जोड़ी ने उन्हें मार्गदर्शक मंडल का रास्ता दिखा दिया. लेकिन 76 साल के होने के बावजूद येदियुरप्पा ने अपनी राह बना ली है.

पार्टी का क्षेत्रीय चेहरा
2013 में भारतीय जनता पार्टी को लगा था कि संगठन से बड़ा कोई नहीं है और बीएस येदियुरप्पा को हटाकर जगदीश शेट्टर को मुख्यमंत्री बनाया गया था.
येदियुरप्पा भारतीय जनता पार्टी का वो क्षेत्रीय चेहरा थे जिसकी वजह से पार्टी ने 2008 में दक्षिण भारत में अपनी पहली सरकार बनाई थी.
हालांकि यह सरकार जेडीएस के समर्थन से चल रही थी, लेकिन भाजपा के पास जहाँ 1985 में मात्र दो विधानसभा की सीटें थीं वो 2008 में बढ़कर 110 हो गईं.
उसी तरह मतों का प्रतिशत भी 3.88 से बढ़कर वर्ष 2008 में 33.86 हो गया.
ये सब कुछ भारतीय जनता पार्टी के चुनिंदा प्रयास से संभव हो पाया जिसमें सबसे ऊपर येदियुरप्पा का नाम रहा.
येदियुरप्पा की बग़ावत
लिंगायत समुदाय से आने वाले येदियुरप्पा की सबसे बड़ी ताक़त थी लिंगायतों का समर्थन.
लेकिन खनन घोटालों के आरोप में जब येदियुरप्पा घिरे, तो भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाने का फ़ैसला किया.
नाराज़ येदियुरप्पा ने 'कर्नाटक जन पक्ष' नाम से एक अलग संगठन खड़ा कर लिया और 2013 में हुए विधानसभा के चुनावों में उन्होंने भाजपा के लिए ऐसा रोड़ा खड़ा कर दिया जिसका फ़ायदा कांग्रेस को मिला और कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार बनी.
भारतीय जनता पार्टी के नेताओं और येदियुरप्पा और उनके साथ संगठन से जुड़े हुए नेताओं के बीच कड़वी बयानबाज़ी भी हुई.
कई भारतीय जनता पार्टी के नेता जैसे, एस. ईश्वरप्पा और जगदीश शेट्टर खुलकर येदियुरप्पा के ख़िलाफ़ मोर्चा संभाल रहे थे.
येदियुरप्पा की बग़ावत भारतीय जनता पार्टी को काफ़ी महंगी पड़ी.
हालांकि येदियुरप्पा की पार्टी को सिर्फ़ 6 सीटें मिली थीं, लेकिन उनकी वजह से दूसरी सीटों पर भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवारों को हार का सामना करना पड़ा था. 
पिछले विधानसभा के चुनावों में येदियुरप्पा की कर्नाटक जन पक्ष पार्टी कहीं दूसरे तो कहीं तीसरे स्थान पर रही थी.
224 में 30 ऐसी सीटें थीं जहाँ कर्नाटक जन पक्ष और भारतीय जनता पार्टी के कुल वोट कांग्रेस के जीतने वाले उम्मीदवार से कहीं ज़्यादा थे. भारतीय जनता पार्टी 40 सीटों पर सिमट गई.
इसी बीच, वर्ष 2014 में भारतीय जनता पार्टी ने आम चुनाव में जीत हासिल की और अमित शाह ने अध्यक्ष का पद संभाला.
पुरानी टीम हटी और अमित शाह की पहल पर येदियुरप्पा की 'घर वापसी' हुई. उन्हें पहले संगठन की केंद्रीय कमेटी में रखा गया. बाद में उन्हें प्रदेश अध्यक्ष का पदभार सौंप दिया गया.
इस फ़ैसले का विरोध भाजपा के वो नेता करने लगे जिन्होंने येदियुरप्पा की बग़ावत के ख़िलाफ़ मोर्चाबंदी की थी.
कर्नाटक में पार्टी के वरिष्ठ नेता एस. प्रकाश के अनुसार भाजपा और दूसरे दलों को कांग्रेस से ज़्यादा वोट मिले थे. लेकिन येदियुरप्पा के अलग होने की वजह से पार्टी को काफ़ी नुक़सान का सामना करना पड़ा.
बने भाजपा के हनुमान
प्रदेश में पार्टी के प्रवक्ता बामन आचार्य इतिहास के पन्नों को पलटकर नहीं देखना चाहते थे. उनका कहना था कि 'जो बीत गई सो बात गई' और येदियुरप्पा ही संगठन के लिए हनुमान साबित होंगे.
बामन आचार्य का दावा था कि पूरे दक्षिण भारत में बीएस येदियुरप्पा ही भारतीय जनता पार्टी के ऐसे नेता हैं, जिन्होंने अपने दम पर संगठन को खड़ा किया था.
विधानसभा के चुनावों की घोषणा के साथ ही येदियुरप्पा ने पूरे प्रदेश में प्रचार की कमान संभाल ली थी.
टिकटों के आवंटन को लेकर पार्टी के भीतर कुछ विरोध के स्वर भी उभरे, लेकिन येदियुरप्पा को पार्टी आलाकमान का पूरा समर्थन हासिल था.

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