जनता से 1400 गुना तक ज्यादा अमीर हैं हमारे देश के नेता

हर चुनाव के साथ गरीबी हटाने का नारा सुनाई देता है. चुनावी मौसम में नेता गरीबों के घरों में खाना खाते नजर आते हैं. फोटो खिंचवाने और उन्हें गले लगाने में भी वो पीछे नहीं हटते. हमारे नेता गरीबों को लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ते लेकिन क्या वे वाकई में गरीबों का प्रतिनिधित्व करते हैं? इंडिया टुडे की डाटा इंटेलिजेंस यूनिट ने अपनी पड़ताल में पाया कि 2019 में चुने गए सांसदों की आय आम जनता की आय से करीब 1400 गुना ज्यादा है.
2014 से बढ़े करोड़पति
अपनी पड़ताल में (DIU) ने 2004 से 2019 तक चुने गए सांसदों की नेट संपत्ति (कुल संपत्ति और देनदारियों के बीच का अंतर) को आंका और पाया कि नेताओं की संपत्ति काफी हद तक बढ़ गई. 14वीं लोक सभा (2004-2009) के सांसदों की औसत संपत्ति मात्र 1.9 करोड़ रूपए थी जो 15वीं लोक सभा में बढ़कर 5.06 करोड़ हो गई. यह संख्या 16वीं लोक सभा (2014-19) में बढ़कर 13 करोड़ पहुंच गई और 17वीं लोक सभा (2019-2024) में यह संख्या 16 करोड़ से कुछ ऊपर है.
किस राज्य के नेता सबसे अमीर?
राज्यों के स्तर पर असमानताओं को नापने के लिए DIU ने हर राज्य के नेताओं की औसत आय की उस राज्य की प्रति व्यक्ति आय (NDP Factor Cost - 2016-17 स्तर) के साथ तुलना की. जनता और शासक की आय में सबसे ज्यादा अंतर आंध्र प्रदेश में पाया गया. जहां आंध्र प्रदेश की प्रति व्यक्ति आय 96,374 थी वहीं नेताओं की प्रति व्यक्ति आय 50 करोड़ रूपए से भी ज्यादा थी. इस तरह आंध्र प्रदेश के सांसद वहां की जनता से 5200 गुना ज्यादा अमीर हैं.
आकाश छूती इन असमानताओं में दूसरे नंबर पर मध्य प्रदेश है जहां नेताओं की आय राज्य की प्रति व्यक्ति आय से 4964 गुना ज्यादा थी. मध्य प्रदेश के पीछे आते हैं - मेघालय (4918 गुना), उत्तर प्रदेश (3996 गुना) और तेलंगाना (2944 गुना). बिहार, पंजाब, कर्नाटक, झारखण्ड, असम और तमिलनाडु भी टॉप 10 में शामिल हैं.
जुगल किशोर, जम्मू के सांसद के ऊपर बहुत बड़ा कर्जा था जिससे पूरे राज्य के नेताओं की औसत आय की सही तस्वीर सामने नहीं आ रही थी. हमने किशोर के आंकड़ों को अपने विश्लेषण में शामिल नहीं किया.
सिक्किम ऐसा राज्य है जहां पर नेता-जनता की आय के बीच का अंतर सबसे कम था. सिक्किम के इकलौते सांसद की आय, राज्य की पति व्यक्ति आय से बमुश्किल 0.32 गुना ज्यादा थी. सिक्किम के बाद त्रिपुरा में सबसे कम असमानताएं देखने को मिलीं. त्रिपुरा के सांसद की आय राज्य की प्रति व्यक्ति आय से 12 गुना ज्यादा है.
कुल मिला कर ऐसे 13 राज्य थे जहां नेताओं की संपत्ति राज्य की प्रति व्यक्ति आय से 100-1000 गुना के बीच थी. 15 राज्य ऐसे थे जहां नेताओं की आय राज्य की प्रति व्यक्ति आय से 1000 गुना से भी ज्यादा थी .
इतनी असमानताएं क्यों?
2019 लोकसभा चुनावों में व्यापारियों और कारोबारियों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था. अशोका विश्वविद्यालय के त्रिवेदी सेंटर फॉर पोलिटिकल रिसर्च के सह निदेशक, प्रोफेसर जिल वर्नियर का मानना है कि राजनीति में बढ़ते व्यापारियों की संख्या का इन असमानताओं के साथ कुछ लेना-देना है.
वर्नियर कहते हैं कि राजनीतिक फंडिंग के प्रेशर के कारण पार्टियां अब खुद का व्यय उठाने वाले उम्मीदवारों को  उतार रही हैं. ऐसे राज्य जहां अर्थव्यवस्था फल-फूल रही है, जहां व्यापर, रियल एस्टेट और हॉस्पिटैलिटी सेक्टर में लोग तरक्की कर रहे हैं, वहां पर ऐसे लोगों का नेता बनना लाजमी है जो अमीर हैं.' वर्नियर ने यह भी समझाया कि क्यों व्यापारी भी अब राजनीति में अपने पैर डालते नजर आ रहे हैं.
सरकार और पार्टी के नेतृत्व के साथ सम्बन्ध बढ़ाना उनको (व्यापारियों को) राजनीति में उतरने के लिए प्रोत्साहित करता है. नेता बनने से उनको अपने व्यापर को विस्तृत करने में मदद मिलती है, नेटवर्क बढ़ाने का मौका मिलता है, संसाधनों को लेकर नीतियां ऐसे प्रभावित होती हैं जिससे उनको और उनके बिज़नेस बंधुओं को फायदा पहुंचता है. राजनीति में घुसने से उनको अपने प्रतिद्वंद्वी से दो कदम आगे रहने की छूट भी मिल जाती है.
भारत में भूमि की पहुंच मुख्य रूप से सरकार से होकर गुजरती है. उदारीकरण के बावजूद, भारतीय अर्थव्यवस्था के मुख्य सेक्टर आज भी सरकारी कॉन्ट्रैक्ट और लाइसेंसों पर निर्भर हैं. इस वजह से अर्थव्यवस्था ही ऐसी हो जाती है जिससे व्यापारियों को राजनीति ज्वाइन करने में फायदा पहुंचता है.' कानूनी तरीके से संपत्ति अर्जित करने पर भारत में कोई रोक नहीं है लेकिन साल दर साल संपत्ति बढ़ाने का नेताओं के पास जो फॉर्मूला है वो आजतक आम जनता को हासिल नहीं हो पाया है.
 

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