बेनामी संपत्ति पर शिकंजा: पिछले 10 महीने से कुंडली बांच रही एजेंसियां

पिछले कुछ महीने निकाय चुनाव और फिर लोकसभा चुनाव की व्यस्तता के बाद अब एक बार फिर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भ्रष्टाचार पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। बेनामी संपत्ति के लिए कानून बनाने का ऐलान तो मुख्यमंत्री ने रविवार को किया, लेकिन इसके लिए तैयारी लगभग दस महीने पहले ही शुरू कर दी गई थी। पिछले साल सितंबर में मुख्यमंत्री ने विजिलेंस समेत अन्य एजेंसियों को बेनामी संपत्ति रखने वाले लोगों के चिह्नीकरण के निर्देश दे दिए थे। उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक सरकारी एजेंसियों से मिले इनपुट के बाद मुख्यमंत्री ने बेनामी संपत्ति से संबंधित कानून में जरूरी प्रावधान शामिल करने को कहा है। सूत्रों के मुताबिक प्रस्तावित कानून बिहार की तर्ज पर तैयार किया जा रहा है ताकि जब्त बेनामी संपत्ति का इस्तेमाल सामाजिक कार्यों के लिए किया जा सके।
मुख्यमंत्री ने रविवार को देहरादून में एक कार्यक्रम में बेनामी संपत्तियों पर शिकंजा कसने के उद्देश्य से कानून लाने की बात कही। दरअसल, इसके लिए जरूरी प्रक्रिया लगभग दस महीने पहले ही आरंभ कर दी गई थी। भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस नीति को आगे बढ़ाते हुए तब मुख्यमंत्री ने बेनामी संपत्ति बटोरने वालों को टारगेट करने का निर्णय लिया था। उस वक्त मुख्यमंत्री कार्यालय को इस आशय की शिकायतें मिली थीं, जिनमें उत्तराखंड और उत्तराखंड से बाहर बेहिसाब बेनामी संपत्तियों का जिक्र किया गया था। इस पर तब मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को बेनामी संपत्ति के मामलों की जांच के निर्देश दे दिए थे। सूत्रों के मुताबिक जिन लोगों पर बेनामी संपत्ति एकत्र करने का अंदेशा सरकार को है, उनमें सियासत में सक्रिय कुछ लोगों के अलावा ठेकेदार और अधिकारियों तक के नाम शामिल हैं। मुख्यमंत्री के निर्देशों के बाद विजिलेंस व अन्य एजेंसियां पिछले दस महीने से ऐसे लोगों की कुंडली बांचने में जुटी हुई हैं।

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