शत्रुघ्न सिन्हा को पटना साहिब सीट से हटाने के लिए हुई साजिशें, यशवंत सिन्हा का खुलासा

बीजेपी के बागी हुए यशवंत सिन्हा आजकल पार्टी के राज खोलने पर आमादा हैं. उनकी आत्मकथा ‘Relentless’ बाज़ार में है जिसे ब्लूम्सबरी ने छापा है. इस किताब में सिन्हा ने एक दूसरे सिन्हा के बारे में भी कुछ बातें बताई हैं. ये सिन्हा उनके अनन्य मित्र और लंबे वक्त तक बीजेपी के सांसद रहे शत्रुघ्न सिन्हा हैं.
यशवंत सिन्हा बताते हैं कि कैसे 2014 आते-आते उन्होंने तय कर लिया था कि वो चुनाव नहीं लड़ेंगे. उनकी जगह बेटे जयंत सिन्हा हजारीबाग से चुनाव लड़कर राजनीतिक पारी की शुरूआत करना चाहते थे. ये बात यशवंत सिन्हा ने तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह, पीएम पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी और अरुण जेटली से साझा की. तब सिन्हा को उम्मीद नहीं थी कि जयंत की दावेदारी को पार्टी में गंभीरता से लिया जाएगा. फिर बीजेपी की केंद्रीय चुनाव समिति ने जब 2014 लोकसभा चुनाव में झारखंड के प्रत्याशियों के नाम फाइनल करने शुरू किए तो एक फोन उन्हें भी आया. फोन के दूसरी तरफ राजनाथ सिंह थे जो सिन्हा का मन आखिरी बार टटोलना चाहते थे. सिन्हा ने अपना इरादा दोहराते हुए इच्छा जताई कि टिकट उनके बेटे को दिया जाए तो वो खुश होंगे.
बहुत ज़्यादा वक्त नहीं बीता जब राजनाथ के निजी सचिव ने दोबारा सिन्हा के घर फोन किया और इस बार वो जयंत के नाम की स्पेलिंग पूछ रहे थे ताकि उसे उम्मीदवारों की फाइनल लिस्ट में लिखा जा सके.
अब आपको बताएं कि जब राजनाथ सिंह ने यशवंत सिन्हा को फोन करके आखिरी बार पूछा कि वो चुनाव लड़ना चाहेंगे या नहीं तब उन्होंने एक गुज़ारिश और भी की थी. राजनाथ चाहते थे कि यशवंत सिन्हा अपने करीबी संबंधों का इस्तेमाल करते हुए शत्रुघ्न सिन्हा को इस बात पर मना लें कि 2014 में वो पटना साहिब से चुनाव ना लड़ें.
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शत्रुघ्न सिन्हा ने लालकृष्ण आडवाणी के आदेश पर 1992 में बीजेपी के लिए नई दिल्ली से चुनाव लड़कर राजनीतिक करियर का श्रीगणेश किया था. वो कांग्रेस प्रत्याशी राजेश खन्ना के हाथों 25 हजार वोटों से चुनाव और दोस्ती दोनों हार गए क्योंकि इसके बाद राजेश खन्ना ने कभी उनसे बात नहीं की. साल 2009 में बीजेपी ने शत्रुघ्न को पटना साहिब की सीट पर उतारा था जहां उन्होंने आरजेडी के विजय कुमार और कांग्रेस के शेखर सुमन को हरा दिया था. अब 2014 में पार्टी के अंदर अंदरूनी समीकरण बदल रहे थे. साथ ही पार्टी नेतृत्व की पसंद-नापसंद भी बदल रही थी. यशवंत सिन्हा अपनी किताब में लिखते थे कि शायद शत्रुघ्न की सीट बदली जा रही थी या फिर वो राज्यसभा से संसद में भेजे जानेवाले थे. ये खेल कुछ वक्त तक चलता रहा क्योंकि रविशंकर प्रसाद और आरके सिन्हा इस सीट को अपने लिए चाहते थे. पिछले कुछ सालों में दोनों ही दिग्गजों के प्रभाव में खासी बढ़ोत्तरी हुई थी और ऐसे में अब पार्टी की चाहती थी कि इनमें से कोई एक पटना साहिब के रास्ते लोकसभा पहुंचे. अब तक दोनों ही राज्यसभा सदस्य थे.
यशवंत सिन्हा किताब में मानते हैं कि शत्रुघ्न के करीबी दोस्त जिनमें वो खुद भी एक थे उन्हें पटना साहिब ना छोड़ने की सलाह दे रहे थे. इस बीच एक अफवाह उड़ी कि शत्रुघ्न अपने संसदीय क्षेत्र को नज़रअंदाज़ कर रहे हैं लिहाज़ा चुनाव में हार सकते हैं. पार्टी के अंदरूनी सर्वे जिन्हें मैनेज किया गया वो भी इसी अफवाह को पुष्ट कर रहे थे. जैसे ही हजारीबाग से जयंत सिन्हा का टिकट फाइनल हुआ यशवंत सिन्हा की कार शत्रुघ्न सिन्हा के घर की ओर दौड़ी. दोनों मिले. यशवंत सिन्हा ने राजनाथ सिंह से हुई सारी बातें शत्रुघ्न सिन्हा को बताईं और साथ ही पटना साहिब ना छोड़ने की सलाह भी दोहरा दी. शत्रुघ्न भी सहमत थे.
लिहाज़ा वो अड़े रहे और आखिरकार बीजेपी को उन्हें ही पटना साहिब से अपना उम्मीदवार बनाना पड़ा. नतीजे आए तो शत्रुघ्न सिन्हा 55% से ज़्यादा वोट पाकर फिर से सांसद बन गए. उनके मुकाबले खड़े कांग्रेस प्रत्याशी कुणाल सिंह को 25% से भी कम वोट मिले.
आपको बता दें कि 2014 तो नहीं लेकिन 2019 में शत्रुघ्न सिन्हा की जगह बीजेपी ने रविशंकर प्रसाद को पटना साहिब से टिकट दिया जो कांग्रेस से टिकट पाए शत्रुघ्न को हराकर लोकसभा में पहुंचे. फिलहाल शत्रुघ्न कांग्रेस में हैं और यशवंत सिन्हा ने भी 21 अप्रैल 2018 को बीजेपी से इस्तीफा दे दिया.

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