'फ़जीहत के बाद डैमेज कंट्रोल में जुटी योगी सरकार'

सोनभद्र में हुए नरसंहार के बाद उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार विपक्षी दलों के निशाने पर है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी ने जिस तरह नरसंहार के बाद सड़क पर धरना दिया और प्रशासन को पीड़ित परिवारों के सदस्यों से उनको मिलवाना ही पड़ा, उससे योगी सरकार बैकफ़ुट पर आ गई है। डैमेज कंट्रोल के लिए ख़ुद योगी आदित्यनाथ सोनभद्र की घोरावल तहसील स्थित उम्भा गाँव पहुँचे हैं। 
योगी सरकार ने प्रियंका गाँधी को सोनभद्र नहीं पहुँचने दिया था। जिसके बाद प्रियंका ने सड़क पर धरना दिया था। सरकार ने उन्हें मिर्ज़ापुर में हिरासत में लेकर चुनार किले के गेस्ट हाउस में क़ैद कर दिया था। प्रियंका ने प्रशासन की ओर से माँगी गयी 50000 की जमानत भरने से भी इनकार कर दिया था। प्रशासन ने क़ानून व्यवस्था का हवाला देते हुए विपक्ष के नेताओं को सोनभद्र नहीं जाने दिया था। 
विधानसभा में हुआ था बवाल
बता दें कि इस नरसंहार के बाद उत्तर प्रदेश की विधानसभा में शुक्रवार को जमकर हंगामा हुआ था। नाराज़ विपक्ष ने सदन में जमकर नारेबाज़ी की थी। विपक्ष के हंगामे के चलते मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपनी बात तक नहीं कह सके थे लेकिन सदन के बाहर उन्होंने घटना के लिए कांग्रेस को दोषी बताया था और कहा था कि लापरवाही बरतने वाले पुलिस व ज़िला प्रशासन के अधिकारियों पर कार्रवाई की गयी है। मुख्यमंत्री ने कहा था कि प्रदेश सरकार इस मामले में बड़े स्तर से जाँच करा रही है और जो भी ज़िम्मेदार होगा उन सबकी जवाबदेही तय की जाएगी। 
आईएएस अधिकारी का आया था नाम
बता दें कि इस नरसंहार में बिहार के रहने वाले बंगाल कैडर के पूर्व आईएएस अधिकारी प्रभात कुमार मिश्रा का नाम सामने आ रहा है। आईएएस अधिकारी ने आदिवासियों के कब्ज़े में रही 90 बीघा ज़मीन को को-ऑपरेटिव सोसाइटी के नाम करा लिया था। उस समय तहसीलदार के पास नामांतरण का अधिकार नहीं था, लिहाज़ा नाम नहीं चढ़ सका। 
इसके बाद सात सितंबर 1989 में आईएएस ने अपनी पत्नी व बेटी के नाम ज़मीन करवा ली थी। आईएएस की बेटी इस ज़मीन पर हर्बल खेती करवाना चाहती थी। लेकिन ज़मीन पर कब्ज़ा न मिलने की वजह से उसका प्लान फ़ेल हो गया था। नियम यह है कि सोसाइटी की ज़मीन किसी व्यक्ति के नाम पर नहीं हो सकती। इसके बाद आईएएस ने विवादित ज़मीन में से काफ़ी बीघा ज़मीन मूर्तिया गाँव के प्रधान यज्ञदत्त सिंह भूरिया को औने-पौने दाम पर बेच दी थी। हालाँकि ज़मीन पर आदिवासियों का कब्ज़ा बरकरार रहा। लेकिन पटना से आईएएस का एक आदमी जिसका नाम धीरज बताया जा रहा है, वह हर साल प्रति बीघा लगान वसूलने आता था।

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