सीएम बोले- रोडवेज की किमी स्कीम में घोटाला, जांच में विभाग की कमेटी जिम्मेदार, 510 बसों के टेंडर रद्द

परिवहन विभाग की जिस किलोमीटर स्कीम को महकमे के मंत्री व सीनियर अफसर पारदर्शी बताते हुए लागू करने का दबाव बना रहे थे, उसमें बड़ा घोटाला उजागर हुआ है। खुद सीएम मनोहर लाल ने कर्मचारी संगठनों के साथ बैठक के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह स्वीकार किया है। उन्होंने कहा कि 510 बसों के टेंडर रद्द कर दिए हैं। विजिलेंस की जांच रिपोर्ट के आधार पर यह फैसला लिया गया है। जांच में खुलासा हुआ है कि परिवहन विभाग की जिस 4 सदस्यीय निगोशिएट कमेटी को बस ऑपरेटरों से बात कर रेट कम करने की जिम्मेदारी दी थी, वही गड़बड़ी के लिए बड़ी जिम्मेदार है।
हाउसिंग बोर्ड व पीडब्ल्यूडी के एक-एक कर्मचारी के कंप्यूटरों का भी इसके लिए इस्तेमाल हुआ। सूत्रों के अनुसार, चूंकि सरकार को सोमवार को कार्रवाई की रिपोर्ट हाईकोर्ट में दी जानी है, इसलिए इससे पहले परिवहन विभाग और सरकार दोषी कर्मचारियों पर कार्रवाई कर सकती है। हरियाणा रोडवेज कर्मचारी यूनियन के प्रदेशाध्यक्ष वीरेंद्र सिंह धनखड़ ने कहा कि स्कीम के विरोध में पिछले साल अक्टूबर-नवंबर में 18 दिन तक हड़ताल की गई थी। यह रोडवेज की अब तक की सबसे बड़ी हड़ताल थी। हड़ताल के दौरान दर्ज केस खत्म करने की मांग पर सरकार ने सहानुभूतिपूर्वक विचार करने का आश्वासन दिया है।
किलोमीटर स्कीम में अनियमितता सामने आई है। इसलिए 510 बसों के टेंडर रद्द कर दिए गए हैं, लेकिन 190 बसों के हुए टेंडर मान्य रहेंगे। उसमें रेट सही आया है। गड़बड़ी करने वाले कर्मचारी-अधिकारी के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
विजिलेंस जांच में खुलासा- टेंडर के आवेदन में दूसरे विभागों के कर्मचारियों के कंप्यूटर हुए इस्तेमाल 
  • प्राइवेट ऑपरेटरों ने पूल सिस्टम अपनाया। यानी ज्यादातर ने आपस में बात कर रेट दर्ज किए। सबसे निचले रेट पर विभाग को टेंडर जारी करना था। ऑपरेटरों ने पहले ही रेट ज्यादा भर दिए।
  • जांच में टेंडर के आवेदन करने वाले कंप्यूटर का आईपी एड्रेस खंगाला तो सामने आया कि हाउसिंग बोर्ड और पीडब्ल्यूडी कर्मचारियों के कंप्यूटर से भी यह आवेदन किए गए थे।
  • विभाग की वेबसाइट में आवेदन का समय भी कुछ समय तक ही खुलना सामने आया है। यानी ऑपरेटरों की सुविधा के अनुसार यह रहा। ताकि दूसरा कोई बसों के लिए आवेदन न कर सके।
     
ऐसे शक गहराया: 510 बसों के रेट 37 से 41 रु. और बाद में 190 बसों के टेंडर में 21-22 रु. प्रति किमी रेट आए
परिवहन विभाग की ओर से 510 बसों के टेंडर 37 से 41 रुपए प्रति किमी के रेट से किए। बाद में 190 बसों के टेंडर हुए तो 21-22 रु. प्रति किमी रेट सामने आए। सीएम ने जांच विजिलेंस को सौंपी। मामला हाईकोर्ट भी पहुंचा। इस पर सोमवार को भी सुनवाई है। बताया जा रहा है कि यदि स्कीम सिरे चढ़ जाती तो सरकार को एक साल में करीब 90 करोड़ रु. से ज्यादा नुकसान होता। जबकि 10 साल का एग्रीमेंट किया गया था। ऐसे में सरकार को करीब 900 करोड़ रु. की चपत लगना तय थी। यह नुकसान 190 बसों के कम आए रेट और 510 बसों के रेट में आए अंतर के हिसाब से है।

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