'हिंदी का अपमान संसद से ही शुरू होता है'

शुक्रवार 19 जुलाई को संसद में भाजपा के राज्यसभा सदस्य हरनाथ सिंह यादव ने कौशल मंत्रालय से सवाल पूछने से पहले एक गंभीर मसला उठाया है. उन्होंने आरोप लगाया है कि हिंदी को जानबूझकर खराब किया जा रहा है. ये प्रचार किया जा रहा है कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही हिंदी का वर्चस्व देशभर में बढ़ा है. वहीं विभिन्न मंत्रालयों में हिंदी भाषा के प्रचार प्रसार को भी बढ़ावा दिया जा रहा है इस बीच भाजपा सांसद का हिंदी के खराब अनुवाद किए जाने का आरोप भी गंभीर है. ऐसा पहली बार हो रहा है जब मोदी सरकार के हिंदी प्रसार की बात पर भाजपा के ही एक सांसद ने सवाल उठाया है.
गौरतलब है कि कौशल मंत्रालय के ट्विटर हैंडल से पिछले दिनों लगातार खराब हिंदी लिखे जाने से ट्रोलिंग हुई थीं. लोगों ने लिखा था कि सबसे पहले मंत्रालय की ‘हिंदी की स्किल’ ठीक की जाए. कौशल विकास मंत्रालय के केंद्रीय मंत्री महेंद्रनाथ पांडे खुद हिंदी में पीएचडी हैं.बता दें कि राज्य की भाजपा की सरकार संस्कृत को बढ़ावा देने की ओर कदम बढ़ा रही है तब हिंदी के गलत अनुवाद को लेकर यह बहस चौंकाती है. कौशल विकास के अलावा दूसरे मंंत्रालयों के अधिकारी भी हिंदी में नोटिंग्स भेजने को लेकर परेशान दिखे थे. कुछ महकमों ने गूगल ट्रांसलेट की मदद लेनी शुरू कर दी थी.
गूगल से कराए गए हिंदी अनुवादों को लेकर हरनाथ सिंह यादव ने बताया, ‘हमें जो नोटिस भेजे जाते हैं वो पहले अंग्रेजी में आते हैं और फिर उन्हीं का हिंदी अनुवाद. गूगल ट्रांसलेट का ये अनुवाद हिंदी को खराब करता है. अगर उदाहरण दूं तो एक बार ‘इंडिविजुअल’ का अनुवाद ‘व्यष्टि’ लिखा हुआ था. ‘व्यष्टि’ आम बोलचाल का शब्द नहीं है. इस तरह के अनुवाद हिंदी में अरुचि पैदा करते हैं.’
वो आगे कहते हैं, ‘मैं आने वाले दिनों में भारतीय भाषाओं के साथ हो रहे दुर्व्यवहार को लेकर सवाल उठाउंगा. कल भी संसद में समय के अभाव में मैं अपनी बात पूरी नहीं कह पाया. शपथ ग्रहण के दिन केरल के कुछ सांसदों ने हिंदी में शपथ ली लेकिन कुछ भाजपा के ही हिंदी भाषी राज्यों के सांसद अंग्रेजी में शपथ ले रहे थे.
हरनाथ सिंह यादव का मानना है, ‘भारतीय भाषओं के साथ ये दुर्व्यवहार ही संसद से शुरू होता है. डेढ़ प्रतिशत लोग हैं जो भारत में नहीं इंडिया में रहते हैं. खराब हिंदी के जरिए हिंदी का अपमान ही हो रहा है.’
वहीं, मानव संसाधन मंत्रालय के अधिकारी ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया, ‘हमारे पास अनुवादक सिर्फ यूपी और बिहार से नहीं हैं. तमिलनाडू से भी हैं और अरुणाचल प्रदेश से भी. सबकी हिंदी अलग-अलग है. जैसे अगर यूपी बिहार से आने वाला कोई व्यक्ति ‘मेरी जिंदगी में आए’ लिखेगा तो तमिलानाडू का व्यक्ति इसी वाक्य को ‘मेरी जिंदगी पे आए’ लिख देगा. भारत में कई तरह की हिंदी बोली जाती है.’
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कौशल मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं, ‘हिंदी का प्रचार-प्रसार तो किया ही जा रहा है. लेकिन कई बार अंग्रेजी के शब्दों के लिए उपयुक्त हिंदी शब्द नहीं होते. ऐसे में गूगल की मदद ही लेनी पड़ती है. कई सारे मंत्रालयों को हिंदी में प्रेस रिलीज करने में दिक्कत आ रही है क्योंकि हिंदी अनुवाद करने वाले लोग ही नहीं है. कई बार हिंदी बेल्ट के लिए जरूरी बात हिंदी के लोगों तक नहीं पहुंच पाती.’
एक और अधिकारी ने भी इस समस्या पर कहा, ‘हिंदी में अनुवाद करने वाले नहीं हैं तो हम इंग्लिश में ही प्रेस विज्ञप्ती जारी कर देते हैं. गूगल ट्रांसलेट करवाएंगे तो फिर वही दिक्कत. गलत भाषा लिखने से बेहतर है ना लिखा जाए.’ जिस तरह से प्रधानमंत्री से लेकर गृहमंत्री तक हिंदी को बढ़ावा दे रहे हैं उससे लगता है जनता के अच्छे दिन आए हों या नहीं, मगर हिंदी के सुनहरे दिन आ गए हैं.

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