प्रियंका गांधी की सोनभद्र में सक्रियता, राहुल का इस्तीफा और कांग्रेस का भविष्य?

सोनभद्र हत्याकांड में आदिवासी समुदाय के 10 लोगों की निमर्म हत्या के बाद कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी शुक्रवार को उनके परिवार से मिलने के लिए रवाना हुईं. लेकिन वाराणसी में ही उन्हें रोक लिया गया. प्रियंका गांधी ने भी ज़िद ठान ली कि जब तक वो उनसे मिलेंगी नहीं वापस नहीं जाएंगी और वहीं सड़क पर बैठ गईं. जिसके बाद वहां मौजूद अधिकारियों ने उन्हें हिरासत में लेकर एक अतिथि गृह में भिजवा दिया. प्रियंका गांधी वाड्रा ने जमानत लेने से मना करते हुए कहा कि उन्होंने कोई अनैतिक कार्य नहीं किया है. इसलिए ज़मानत लेने का कोई सवाल ही नहीं उठता.
उन्होंने यह भी कहा कि वह पीड़ित परिवारों से मिलकर ही जाएंगी भले ही उन्हें जेल में डाल दिया जाए. प्रियंका ने ट्वीट कर कहा, ”मैं नरसंहार का दंश झेल रहे गरीब आदिवासियों से मिलने, उनकी व्यथा-कथा जानने आयी हूं. जनता का सेवक होने के नाते यह मेरा धर्म है और नैतिक अधिकार भी. उनसे मिलने का मेरा निर्णय अडिग है.” बता दें कि प्रियंका गांधी को लोकसभा से पहले पूर्वी यूपी की कमान दी गई थी, फ़िलहाल पूरे यूपी की कमान उनके कंधे पर है क्योंकि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रभारी पद से इस्तीफ़ा दे दिया है.
सोनभद्र हत्याकांड मामले को लेकर प्रियंका गांधी जिस तरीके से सरकार से टकराने को तैयार है उससे एक बार फिर से चर्चा ने ज़ोर पकड़ लिया है कि क्या प्रियंका ही कांग्रेस का भविष्य होंगी?
प्रियंका होंगी कांग्रेस का भविष्य
प्रियंका गांधी ने पहली बार साल 1999 में अपनी मां सोनिया गांधी के लिए अमेठी में चुनाव-प्रचार किया था. कहा जा सकता है कि यह प्रियंका गांधी का पहला राजनीतिक क़दम था. सोनिया गांधी तबभी एक साल पहले ही यानी कि 1998 में कांग्रेस अध्यक्ष बनीं थी. उसके बाद साल 2004 में प्रियंका गांधी ने एक बार फिर से अमेठी सीट पर चुनाव-प्रचार की ज़िम्मेदारी संभाली लेकिन इस बार इस सीट पर उनके भाई राहुल गांधी चुनाव मैदान में थे.
वहीं रायबरेली में अपनी मां सोनिया गांधी के लिए भी प्रचार किया. यानि तब से मां और भाई के चुनाव-प्रचार की ज़िम्मेदारी प्रियंका ही संभालती आई है. लोग प्रियंका गांधी में उनकी दादी इंदिरा गांधी की छवि देखती हैं. उनका मानना है कि प्रियंका की सहजता, लोगों से मिलने-जुलने का ढंग और साफगोई सब उनकी तरह ही है.
प्रियंका बड़ी रैलियों से ज़्यादा छोटी-छोटी सभाएं करने में यकीन करती हैं. इसके अलावा पैदल रोड शो करने की वजह से वह लोगों से काफी नज़दीक से मिल पाती हैं, कई बार वो किसी महिला समूह से बैठकर बातें बी करने लग जाती हैं. प्रियंका के इसी गुण की वजह से लोगों के बीच में उनकी सकारात्मक छवि बन रही है.
यही कारण है कि उत्तर प्रदेश से लगातार ऐसी आवाजें आती रहती हैं कि प्रियंका को पार्टी की कमान सौंपी जाए या उन्हें प्रमुख भूमिका में सामने लाया जाए. इसी कारण राहुल के इस्तीफे के बाद ऐसी संभावनाएं जताई जाने लगी हैं कि प्रियंका गांधी कांग्रेस का भविष्य हो सकती हैं. कांग्रेस बीट संभालने वाले कई पत्रकारों का भी मानना है कि अगर प्रियंका अपनी शैली में काम करेंगी तो अभी भी उनमें दमखम हैं. वो कांग्रेस की हालत में सुधार कर सकती हैं.
हालांकि आलोचकों का मानना है कि 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान प्रियंका गांधी यूपी में काफी सक्रिय रहीं और खूब सारा प्रचार-प्रसार भी किया, इसके बावजूद वो अपने भाई राहुल गांधी की पारंपरिक सीट तक नहीं बचा पाईं. वहीं मां सोनियां गांधी भी मामूली अंतर से ही अपनी सीट बचा पाई. इसलिए प्रियंका का जादू पूरी तरह से फुस्स रहा.
इसके जवाब में कई पत्रकार मानते हैं कि प्रियंका अभी तक खुल कर या यूं कहें कि बड़े चेहरे के रूप में लोगों के सामने नहीं आई हैं. इतना ही नहीं 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान भी वो अपने भाई राहुल गांधी के रास्ते में आने से बचती रहीं.
बस्ती में कांग्रेस के जिलाध्यक्ष वीरेंद्र प्रताप पांडेय कहते हैं, ‘प्रियंका गांधी के अंदर गुण है. उन्हें राजनीति की समझ है. उन्हें पता है कि कार्यकर्ताओं के साथ किस तरह से व्यवहार किया जाना चाहिए.’ मौजूदा हालात में अस्थिरता दिख रही है लेकिन जैसे ही पार्टी के पक्ष में परिस्थितियां बनी, प्रियंका गांधी महत्वपूर्ण भूमिका में सामने आ सकती हैं.
कांग्रेस कवर करने वाले कई पत्रकार मानते हैं कि राहुल सभी पत्रकारों से बात नहीं करते हैं जबकि प्रियंका गांधी छोटे-छोटे पत्रकारों से भी खुलकर बात करती हैं और कई बार उन्हें रोकने के लिए उनके कंधे पर हाथ रख देती हैं या हाथ जोड़ लेती हैं. इससे पत्रकारों के बीच भी प्रियंका गांधी के लिए अच्छी छवि बन रही है.
लोकसभा चुनाव में राहुल का विफल होना प्रियंका गांधी के लिए वरदान साबित हो सकता है. फ़िलहाल कांग्रेस में इस फॉर्मूले पर विचार हो रहा है कि दो साल तक किसी वरिष्ठ नेता को कमान सौंप दी जाए और बाद में प्रियंका गांधी के हाथ में कमान सौंप दी जाएगी.
राहुल का इस्तीफ़ा
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने चुनावी हार की जिम्मेदारी लेते हुए 25 मई को वर्किंग कमिटी में इस्तीफे की पेशकश की थी. हालांकि तब कई नेताओं ने उन्हें मनाने की कोशिश की. इतना ही नहीं कई वरिष्ठ नेताओं ने भी राहुल के इस्तीफ़े के बाद हार की ज़िम्मेदारी लेते हुए अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया. कांग्रेस के लिए गांधी परिवार के बिना अपने अस्तित्व की कल्पना करना मुश्किल हो रहा है. यही वजह है कि राहुल के विकल्प की तलाश परवान नहीं चढ़ पा रही है.
माना जा रहा है कि अगर किसी एक नाम पर सहमति नहीं बन पाई तो सीडब्ल्यूसी की बैठक में राहुल के इस्तीफे को मंजूर करके सभी महासचिवों और प्रभारियों को अपने राज्यों के फैसले लेने के अधिकार दे दिए जाएंगे. इससे जिन राज्यों में चुनाव होने हैं, वहां फैसले लिए जा सकेंगे. साथ ही संगठन में चुनाव की प्रक्रिया शुरू कर दी जाए.
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इसके अलावा एक धरा ऐसा भी है जो जारी गतिरोध को दूर करने के लिए प्रियंका गांधी को पार्टी की बागडोर सौंपने की मांग कर रही है. सूत्रों ने बताया कि पहले सोनिया गांधी को पार्टी की कमान संभालने के लिए मनाने की कवायद चल रही थी लेकिन प्रयास सफल नहीं रहा. अब पुराने कांग्रेसी प्रियंका गांधी को नेतृत्व देने की मांग कर रहे हैं. हालांकि राहुल गांधी इस जिद पर अड़े हैं कि नया अध्यक्ष गांधी परिवार से नहीं होगा.
कांग्रेस का भविष्य
134 साल पुरानी पार्टी कांग्रेस मोदी सरकार से पहले भी कई बार नेतृत्व संकट से गुजर चुकी है लेकिन क्या इस बार पार्टी खुद को संकट से निकालने में सफल हो पाएगी? साल 2004 में सबको उम्मीद थी कि बीजेपी इंडिया शाइनिंग के सहारे दोबारा सत्ता में वापसी करेगी लेकिन सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने केंद्र में सरकार बनाई. 2009 के लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार लालकृष्ण आडवाणी को भरोसा था कि एक ‘कठपुतली’ प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की बजाय जनता उन्हें चुनना पसंद करेगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
कांग्रेस को साल 2009 में 205 लोकसभा सीट मिली थी और जबकि यूपीए गठबंधन को कुल 262 सीटें मिली. यूपीए-2 भी अपने पांच साल का कार्यकाल पूरा करने में कामयाब रही. साल 2003 में कांग्रेस पार्टी के साथ अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत करने वाले राहुल गांधी पार्टी के अंदर विभिन्न पदों और जिम्मेदारियों को निभाते हुए आगे बढ़े. पार्टी में आते ही उनके प्रधानमंत्री और पार्टी अध्यक्ष बनने की बातें लगातार चलती रहीं.
आखिरकार, लंबे इंतजार के बाद साल 2017 में उन्हें पार्टी अध्यक्ष बनाया गया, लेकिन दो साल से भी कम समय में उन्होंने पद छोड़ने का ऐलान कर दिया है. अगला कांग्रेस अध्यक्ष कौन होगा, इसको लेकर कई फॉर्मूले पर विचार किया जा रहा है. राहुल गांधी परिवार से अलग किसी युवा नेतृत्व को ज़िम्मेदारी देने की सोच रहे हैं. बताया जा रहा है कि वो ज्योतिरादित्य सिंधिया या सचिन पायलट को कमान सौंपने पर विचार कर रहे हैं. वहीं वरिष्ठ नेता प्रियंका गांधी को कमान सौंपना चाहता है.

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