यहीं तक सीमित रहेगा नए कांग्रेस अध्यक्ष का रोल?

लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के खराब प्रदर्शन की जिम्मेदारी लेते हुए राहुल गांधी ने इस्तीफा दे दिया था। इस्तीफे के ऐलान के बाद इस बहस पर विराम लग जाना चाहिए था कि क्या वह अब भी पार्टी की अगुआई करते रहेंगे। हालांकि, ऐसा हुआ नहीं और पार्टी अभी तक नए अध्यक्ष का चुनाव भी नहीं कर पाई है। उधर, कर्नाटक और गोवा में कांग्रेस के अपने विधायकों ने ही पार्टी को ऐसा झटका दिया जो चुनाव में मिले हार के गम से भी ज्यादा कष्टदायी है। 
सवाल अब भी यही है कि क्या कांग्रेस वाकई गांधी परिवार के नियंत्रण से मुक्त हो रही है या फिर राहुल के रिप्लेसमेंट की गहन खोज की कवायद सिर्फ चेहरा बदलने भर की है जो आखिरकार गांधी परिवार के हाथों में ही कांग्रेस की चाबी छोड़कर खत्म हो जाएगी? इसका जवाब तीन महत्वपूर्ण घटनाओं में छिपा हो सकता है। 
पहली, जिस दिन राहुल गांधी ने इस्तीफा वापस लेने की गुंजाइश खत्म करते हुए चार पन्ने का विदाई पत्र जारी किया, उसी दिन उनके सहयोगियों ने बताया कि राहुल मानहानि के उन 20 से ज्यादा मुकदमों में खुद पेश होंगे जो आरएसएस-बीजेपी नेताओं ने उनके खिलाफ देशभर में दर्ज कराए हैं। अगले ही दिन राहुल मुंबई कोर्ट पहुंच गए। फिर इसी सिलसिले में उनके पटना और अहमदाबाद के दौरे भी हुए। 

दूसरी, राहुल ने 23 मई को लोकसभा चुनाव परिणाम आने के बाद कांग्रेस कार्य समिति में पहली बार अध्यक्ष पद छोड़ने का ऐलान किया। राहुल ने कहा कि उन्होंने संघ परिवार के साथ अकेला मोर्चा संभाला। उन्होंने कांग्रेस में नई जान फूंकने के लिए प्रशासनिक जिम्मेदारियों से मुक्त होने की इच्छा जताई। 
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तीसरी, उन्होंने 26 जून को पार्टी सांसदों की मीटिंग में कहा कि वह पार्टी के लिए पहले से '10 गुना कठोर' मेहनत करेंगे। उस वक्त तक नए पार्टी प्रेजिडेंट की खोज शुरू हो चुकी थी। 

इनके अलावा, इस्तीफे के बाद कांग्रेस आलाकमान की जिम्मेदारी बुजुर्गों के हाथों में देने का भी एक खास संकेत है। इसके पीछे राहुल की राजनीतिक मंशा पर गौर करेंगे तो समझ में आ जाएगा कि सिर्फ पार्टी के सांगठनिक कार्यों की जिम्मेदारी के लिए नए अध्यक्ष की तलाश हो रही है, लोगों के बीच कांग्रेस का चेहरा वह खुद रहेंगे। 

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