प्रियंका गांधी का प्रमोशन हुआ, यानी राहुल गांधी का बलिदान बेकार गया!

प्रियंका गांधी वाड्रा कभी भी राहुल गांधी के इस्तीफे के पक्ष में नहीं थीं, फिर तो उनसे किसी ऐसे कदम की अपेक्षा भी बेकार ही थी. प्रियंका वाड्रा का मानना रहा कि राहुल गांधी के इस्तीफे को बीजेपी अपनी जीत बना कर प्रचारित करेगी. राहुल गांधी अपने स्टैंड पर कायम रहे और कांग्रेस के दूसरे नेताओं से भी अपेक्षा की कि वे इस्तीफा दें ताकि कांग्रेस को फिर से दुरूस्त करने की कोशिश संभव हो सके.
राहुल गांधी के इस्तीफे के कई दिन बीत जाने पर भी कांग्रेस नेताओं ने इस्तीफे नहीं दिये तो वो काफी दुखी भी नजर आये. अपने दुख का खुलकर इजहार भी किया. फिर सौ से ज्यादा नेताओं के इस्तीफे की खबरें आयी. वैसे जिन नेताओं ने शुरू में इस्तीफे दिये वे छुटभैये ही थे - बाद में जरूर कुछ बड़े नेताओं के भी इस्तीफे हुए.
ज्योतिरादित्य सिंधिया और मिलिंद देवड़ा इस्तीफा देने वाले बड़े नेताओं में शुमार हैं. अब तक राहुल गांधी की तरह मिलिंद देवड़ा ही ऐसे कांग्रेस नेता हैं जिनके इस्तीफे को वापस लेने की मांग हुई है. ज्योतिरादित्य सिंधिया भी प्रियंका वाड्रा की तरह आधे उत्तर प्रदेश के प्रभारी बनाये गये थे. ज्योतिरादित्य सिंधिया पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रभारी थे तो प्रियंका वाड्रा पूर्वी उत्तर प्रदेश की. ज्योतिरादित्य सिंधिया के इस्तीफे के बाद सबकी नजर इस पर टिकी थी कि प्रियंका वाड्रा क्या कदम उठाती हैं - इस्तीफा देती हैं या नहीं?
प्रियंका वाड्रा के इस्तीफे की कौन कहे, अब तो कांग्रेस ने उन्हें पूरे उत्तर प्रदेश का प्रभारी बना दिया है. मीडिया में इस तरह की रिपोर्ट तो आई है लेकिन कांग्रेस की ओर से अभी कोई औपचारिक जानकारी नहीं दी गयी है. वैसे प्रियंका वाड्रा के साथ इस स्पेशल ट्रीटमेंट से तो यही लग रहा है कि राहुल गांधी के मिशन के कामयाब होने में संदेह है.
राहुल गांधी का इस्तीफा तो सभी को फॉलो करने के लिए था
साल दर साल लगातार प्रियंका वाड्रा के कांग्रेस में सक्रिय भूमिका निभाले को लेकर जब भी सोनिया गांधी या राहुल गांधी से सवाल पूछे जाते एक ही जवाब मिलता - 'ये फैसला वो खुद करेंगी.' आम चुनाव से पहले जब प्रियंका वाड्रा को कांग्रेस महासचिव और पूर्वी यूपी का प्रभारी बनाया गया तो खुद राहुल गांधी ने ही बताया कि फैसला काफी पहले हो चुका था, अमल के लिए सही वक्त का इंतजार होता रहा. प्रियंका वाड्रा के बच्चों के बड़े होने का. बच्चे बड़े हो गये कॉलेज जाने लगे, इसलिए वो सक्रिय हो गयीं.
वैसे कांग्रेस का कामकाज शुरू करने से पहले प्रियंका वाड्रा ने एक और भी काम किया था - वो अपनी गाड़ी से पति रॉबर्ट वाड्रा को ED दफ्तर तक पूछताछ के लिए छोड़ने भी गयी थीं. लौटते ही वो कांग्रेस दफ्तर में काम संभाल चुकी थीं. फिर मालूम हुआ प्रियंका की सक्रिय होने का सही वक्त रॉबर्ट वाड्रा की लड़ाई लड़ने का इंतजार कर रहा था.
प्रियंका वाड्रा ने लड़ाई शुरू की और कांग्रेस को बुरी तरह शिकस्त मिली, रॉबर्ट वाड्रा के खिलाफ मामले भी जहां के तहां बने हुए हैं. वो कानूनी लड़ाई है, भले ही राजनीति से प्रेरित है, चलती रहेगी. राहुल गांधी के फैसले की तारीफ रॉबर्ट वाड्रा ने भी की है. राहुल गांधी को लेकर अपने फेसबुक पोस्ट में रॉबर्ट वाड्रा ने लिखा है - 'आप देश के यूथ आइकन हैं. वो आपको मार्गदर्शक के रूप में देखता है. आपके इस कदम में मैं आपके साथ हूं. जनसेवा किसी पदवी की मोहताज नहीं होती.'
रॉबर्ट वाड्रा आगे लिखते हैं, 'राहुल, मुझे आपसे बहुत कुछ सीखने को मिला है... आपने अपने बेहद साहसिक और दृढ़ संकल्पित व्यक्तित्व का परिचय दिया है. आपका जमीनी स्तर पर काम करने और देश की जनता से और करीब से जुड़ने का निश्चय बहुत ही सराहनीय है.' फर्ज कीजिए प्रियंका वाड्रा ने भी इस्तीफा दिया होता तो रॉबर्ट वाड्रा उनके बारे में भी ऐसा ही कुछ लिखते. मगर, प्रियंका वाड्रा ने ये मौका नहीं मुहैया कराया.
ऐसा कैसे हो सकता है कि राहुल गांधी, प्रियंका वाड्रा को कांग्रेस अध्यक्ष बनाये जाने की सलाह पर कांग्रेस नेताओं को डपट दें और बहन को इस्तीफा देने से मना भी कर दें - ये तो संभव नहीं लगता. ज्यादा संभावना तो यही है कि राहुल गांधी ने प्रियंका वाड्रा के इस्तीफे का फैसला भी उन्हीं पर छोड़ दिया हो.
राहुल गांधी के बयानों से अब तक जो भी समझ में आया वो तो यही रहा कि बाकी नेता भी कांग्रेस की हार के लिए उनके जैसी ही जिम्मेदारी महसूस करें - और फॉलो करें. क्या प्रियंका वाड्रा का राहुल गांधी को इस्तीफे के मामले में फॉलो न करना उनके मिशन की राह में रोड़ा नहीं है?
ऐसे तो राहुल गांधी का मिशन अधूरा ही रह जाएगा
ये तो माना जा रहा था कि 2017 के आखिर में राहुल गांधी की ताजपोशी के समय से ही प्रियंका वाड्रा पर्दे के पीछे बड़े रोल में हैं. सोनिया गांधी से राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष का पदभार लेने वाले बड़े कार्यक्रम की पूरी रूपरेखा प्रियंका वाड्रा ने ही तैयार किया था. कब क्या होगा? किसके बाद कौन बोलेगा? कौन कहां बैठेगा? ऐसी छोटी छोटी बातें भी प्रियंका वाड्रा ने ही तय किया था.
फिर 2018 में इंडिया गेट पर आधी रात को कैंडल मार्च हुआ तो उसे भी प्रियंका वाड्रा का ही आइडिया माना गया. साल के आखिर में जब कांग्रेस तीन राज्यों में विधानसभा चुनाव जीत गयी और मुख्यमंत्रियों के नाम तय करना मुश्किल हो रहा था तो मोर्चा प्रियंका वाड्रा ने ही संभाला और फैसला हो पाया. अब फैसला गलत हो या सही ये बात अलग है, लेकिन कोई फैसला हुआ तो. राहुल गांधी के बारे में कांग्रेस नेताओं की राय तो यही है कि जल्दी फैसले नहीं लेते. जब तक फैसला सुनाते हैं तब उसकी मियाद ही खत्म हो चुकी होती है.
2017 के यूपी विधानसभा चुनावों के वक्त भी समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन भी प्रियंका वाड्रा के ही दखल देने के बाद हकीकत बन पाया. वो भी फैसला गलत रहा, लेकिन मुद्दा ये नहीं है. यही क्या कम है कि बात किसी नतीजे तक पहुंची.
2019 के शुरू में ही प्रियंका वाड्रा को कांग्रेस में औपचारिक एंट्री दी गयी. कांग्रेस महासचिव बनाने के साथ ही उन्हें पूर्वी उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी दी गयी. बाकी यूपी के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया तैनात हुए. कांग्रेस नेताओं की ओर से अब कहा जा रहा है कि वो व्यवस्था वर्कलोड को देखते हुए की गयी थी. जब प्रियंका वाड्रा को जिम्मेदारी मिली तब वक्त बहुत कम था और अकेले पूरा यूपी देखना संभव न था.
बतौर महासचिव जब प्रियंका वाड्रा कांग्रेस की मीटिंग में पहली बार शामिल हुईं तो उनकी सीट को लेकर खूब चर्चा हुई. संदेश ये था कि कांग्रेस में प्रियंका वाड्रा को भी दूसरे महासचिवों की तरह ट्रीट किया जा रहा है. बाद में भी महासचिवों की मीटिंग होती तो प्रियंका वाड्रा कांग्रेस के दूसरे नेताओं के बीच बैठी देखी जाती रहीं, न कि राहुल गांधी, सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह के आस पास.
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प्रियंका वाड्रा को भी कांग्रेस अध्यक्ष न बनाये जाने के पीछे राहुल गांधी की दलील पार्टी को परिवार के साये से उबारना है. कांग्रेस का नया अध्यक्ष चुने जाने की प्रक्रिया से राहुल गांधी अपने हिसाब से खुद ही नहीं, सोनिया गांधी और प्रियंका वाड्रा को भी दूर रखे जाने का मैसेज देते रहे हैं. ये सारी कवायद राहुल गांधी इसीलिए कर रहे हैं ताकि उनके विरोधी डायनेस्टी पॉलिटिक्स बोल कर कांग्रेस की खिल्ली उड़ाने से बाज आयें. है कि नहीं?

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