कर्नाटक: सरकार जाएगी या बचेगी? जानिए क्या है चांस

कांग्रेस और जेडीएस के 16 बागी विधायकों में से 10 ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद गुरुवार शाम को स्पीकर से मिले। सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक विधानसभा के स्पीकर से गुरुवार को ही रात तक विधायकों के इस्तीफे पर फैसला लेने और शुक्रवार को अदालत को फैसले के बारे में जानकारी देने को कहा था। दरअसल बागी विधायकों में से 10 स्पीकर पर इस्तीफे पर फैसले में देरी का आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट गए थे। बाद में स्पीकर केआर रमेश कुमार ने भी सुप्रीम कोर्ट का रुख किया और इस्तीफों पर किसी फैसले पर पहुंचने के लिए और वक्त देने की मांग की, जिस पर गुरुवार को तो कोई फौरी सुनवाई नहीं हुई लेकिन शुक्रवार को बागी विधायकों की याचिका के साथ ही इस पर सुनवाई होगी। 
इस्तीफे स्वीकार हुए तो गिर जाएगी सरकार 
कर्नाटक विधानसभा में कुल 224 सीटें हैं। जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन सरकार को बागी विधायकों को मिलाकर कुल 116 का समर्थन हासिल था। 2 निर्दलीय विधायकों ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया है और वे बीजेपी के पाले में चले गए हैं। अगर 16 बागी विधायकों का इस्तीफा स्वीकार हुआ तो विधानसभा की स्ट्रेंथ 208 रह जाएगी और ऐसे में बहुमत का आंकड़ा 105 का हो जाएगा। ऐसे में कुमारस्वामी सरकार को सिर्फ 100 विधायकों का समर्थन ही रह जाएगा और वह अल्पमत में आ जाएगी। इस्तीफे स्वीकार हुए तो 105 विधायकों वाली बीजेपी अपने दम पर ही सरकार बना लेगी। 2 निर्दलीय विधायक भी उसके साथ हैं। 
इच्छा मृत्यु की राह पर चल पड़ी है कांग्रेस?
अविश्वास प्रस्ताव से सरकार को डर नहीं 
कर्नाटक विधानसभा का शुक्रवार से सत्र भी शुरू हो रहा है। जब तक बागी विधायकों का इस्तीफा स्वीकार नहीं होता तबतक विधानसभा की स्ट्रेंथ 224 ही मानी जाएगी। तबतक कांग्रेस-जेडीएस भी बेफिक्र हैं क्योंकि उन्हें अविश्वास प्रस्ताव का कोई डर नहीं है। अगर सरकार विधानसभा में खुद विश्वास प्रस्ताव लाती है या विपक्ष (बीजेपी) उसके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाता है तो गठबंधन इस इम्तिहान को आसानी से पास कर लेगा। ऐसे प्रस्ताव पर सरकार अपने सभी विधायकों को विप जारी कर देगी और अगर किसी विधायक ने विप का उल्लंघन किया तो उसे दल-बदल कानून के तहत सदन से निष्कासित किया जा सकेगा। यही वजह है कि बीजेपी भी अविश्वास प्रस्ताव न लाकर विधायकों के इस्तीफे पर फैसले का इंतजार कर रही है। हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि बागी विधायकों पर विप लागू नहीं हो सकता क्योंकि वह पहले ही इस्तीफा दे चुके हैं। 
कल क्या-क्या हुआ? 
बागी विधायकों पर याचिका पर सुनवाई करते हुए गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें शाम 6 बजे स्पीकर से मिलने को कहा था। कोर्ट ने कर्नाटक के डीजीपी को विधायकों को सुरक्षा मुहैया कराने का भी निर्देश दिया था और साथ में स्पीकर को गुरुवार को ही इस्तीफों पर फैसला लेने को कहा था। गुरुवार को इस फैसले के कुछ घंटों बाद स्पीकर रमेश कुमार भी वरिष्ठ वकील और कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी के जरिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर इस्तीफों पर फैसले के लिए और वक्त देने की मांग की। कोर्ट ने पहले के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि अब शुक्रवार को ही याचिका पर सुनवाई होगी। बाद में शाम को 6 बजे बागी विधायकों ने स्पीकर से मुलाकात की। 
विधायकों की बेसब्री और स्पीकर की 'अंतर्रात्मा' की आवाज 
बागी विधायकों से मुलाकात के बाद स्पीकर केआर रमेश कुमार ने मीडिया से बातचीत में कहा कि वह जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं लेंगे और अंतर्रात्मा की आवाज सुनेंगे। स्पीकर ने कहा कि उनके पास कांग्रेस ने भी बागी विधायकों को अयोग्य घोषित करने के लिए आवेदन दिया है। उन्होंने कहा कि वह अगर जल्दबाजी में कोई फैसला लेते हैं तो यह अन्याय होगा, इसलिए वह कोई भी फैसला लेने से पहले संतुष्ट होना चाहेंगे कि विधायकों ने स्वेच्छा से इस्तीफा दिया है, इसके लिए उन पर किसी तरह का कोई दबाव नहीं है। संविधान के तहत उन्हें ऐसा ही करना होगा। रमेश कुमार ने यह भी कहा कि अगर उन्होंने जल्दबाजी में कोई फैसला लिया तो विधायकों के साथ अन्याय होगा। उन्होंने कहा कि अगर उन्होंने विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया तो वे विधानसभा के इस पूरे कार्यकाल में फिर से कभी भी इसका हिस्सा नहीं बन पाएंगे। स्पीकर ने कहा कि वह पूरे मामले में निष्पक्ष होकर अपनी अंतर्रात्मा की आवाज को सुनते हुए संविधानसम्मत फैसला लेंगे। 
नियमों का चक्कर 
स्पीकर ने सुप्रीम कोर्ट में भी अपनी याचिका में वही दलीलें रखी हैं, जो उन्होंने बागी विधायकों से मुलाकात के बाद मीडिया से बातचीत में रखी। स्पीकर ने कोर्ट से कहा है कि वह संविधान के तहत सबसे पहले बागी विधायकों को अयोग्य घोषित करने के आवेदन पर फैसला करने के लिए बाध्य हैं, जिनमें से कुछ तो 11 फरवरी से ही लंबित हैं। बागी विधायकों का इस्तीफा मंजूर हुआ तो उसके नतीजे कुछ अलग होंगे और अयोग्य घोषित किए जाने के नतीजे अलग होंगे। अगर किसी विधायक को स्पीकर अयोग्य घोषित कर देते हैं तो वह भले ही उस पार्टी का दामन थाम ले जो मौजूदा सरकार गिरने के बाद सत्ता में आए, मंत्री नहीं बनाया जा सकेगा। लेकिन अगर उसका इस्तीफा स्वीकार होता है तो वह बाद में बनने वाली सरकार में मंत्री बनाया जा सकता है। इसका मतलब है कि अगर बागी विधायकों को अयोग्य घोषित किया जाता है तो कुमारस्वामी सरकार के गिरने और बीजेपी सरकार के बनने की सूरत में भी ये मंत्री नहीं बन पाएंगे। कांग्रेस और जेडीएस को उम्मीद है कि डिस्क्वॉलिफिकेशन प्रक्रिया पर जोर देने से कुछ बागी विधायक शायद बगावत का रास्ता छोड़ दें। 

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