प्रिय राहुल, देश आज जिन समस्याओं से जूझ रहा है, कांग्रेस उन्हीं समस्याओं में एक है

प्रिय राहुल,
मेरा मन हुआ कि आपके इस्तीफा-पत्र के जवाब में एक चिट्ठी लिखूं. आपके इस्तीफे की चिट्ठी सार्वजनिक हुई थी.
एक दशक पहले आपसे मेरा शुरुआती परिचय हुआ था और मैं उसी शुरुआती मुलाकात के आधार पर ये चिट्ठी लिख रहा हूं. उन चंद शुरुआती मुलाकातों (जिन्हें मैंने सार्वजनिक भी किया था) से आपको लेकर मेरे मन में धारणा बनी कि आप हमारे मेल-मुलाकात वाले अधिकतर राजनेताओं से ज्यादा ईमानदार हैं और लोग आपको जितना समझते हैं. उससे कहीं ज्यादा बुद्धिमान भी.
बहरहाल, आपको लेकर बनी वो सकारात्मक छवि इस चिट्ठी को लिखने की तात्कालिक वजह नहीं हैं. मैं आपको चिट्ठी लिख रहा हूं, तो इसलिए कि आपकी बातों में आपके पार्टी-हित से कहीं ज्यादा बड़ी बात की झलक है, कुछ ऐसा जो मेरे दिल को छू गया. भारत जिन आदर्शों को लेकर बना आप ‘उन आदर्शों की रक्षा’ के लिए लड़ना चाहते हैं. आपको लेकर मेरे मन में जो धारणा बनी है. उसके आधार पर मैं मानकर चल रहा हूं कि आपकी ये बात जुमलेबाजी भर नहीं है. आपने चिंता जतायी है कि ‘हमारे देश और हमारे प्रिय संविधान पर जो हमले हो रहे हैं. उनकी मंशा हमारे राष्ट्र के ताने-बाने को बर्बाद करने की है’. यही डर मुझ जैसे बहुत से भारतीयों को भी सता रहा है. आपने स्वीकार किया है कि ‘सत्ता मे बने रहने का मोह त्याग किये बिना और एक गहरी विचाराधारात्मक लड़ाई लड़े बगैर हम अपने विरोधियों से नहीं जीत सकते.’ मुझे आपकी ये बात बिल्कुल ठीक लगी.
काश! मैं आपकी बाकी बातों से भी सहमत होता. काश ! इस लड़ाई का मतलब इतना ही भर होता कि कांग्रेस को पुनर्जीवित किया जाय.
हमारे राष्ट्र के ताने-बाने पर हो रहे मौजूदा हमले का मुकाबला करने की किसी भी गंभीर कोशिश की शुरुआत कुछ कड़वी सच्चाइयों के स्वीकार से होनी चाहिए. सच ये है कि कांग्रेस-नीत विपक्ष ने इतिहास के इस निर्णायक मोड़ पर देश को दगा दिया है. आपने अपने इस्तीफे की चिट्ठी मे लिखा है कि आपकी पार्टी ने दमदार और मर्यादित लड़ाई लड़ी. लेकिन, यह तो सच्चाई से मुंह मोड़ना कहलाएगा. बेशक, कांग्रेस पार्टी ने जो चुनावी लड़ाई लड़ी उसे कुछ मायनों में मर्यादित माना जायेगा. लेकिन, कांग्रेस की चुनावी लड़ाई को दमदार तो कत्तई नहीं कहा जा सकता. आपकी ये बात सच है कि ‘भारतीय राष्ट्र-राज्य की पूरी मशीनरी विपक्षी दलों के खिलाफ लगी हुई थी.’ लेकिन, विपक्ष ने जो हिमालयी भूल की उसे ये कहकर छुपाया नहीं जा सकता. मैं यहां तफ्सील से ना बता पाऊंगा कि कांग्रेस ने इस चुनाव में क्या नहीं किया. मैंने इस बाबत अन्यत्र लिखा है. यहां मैं बस इतना कहूंगा कि जिस वक्त जरुरत आन पड़ी थी कि कांग्रेस बीजेपी का एक सुसंगत विकल्प खड़ा करे ऐन उसी वक्त पर आपकी पार्टी बिखराव, विमुखता और नौसिखुआपन का शिकार नजर आयी.
मुझे नहीं पता, इस बात के लिए कांग्रेस के भीतर किस नेता को जिम्मेवार ठहराया जाय. ये काम आपकी पार्टी और नेतृत्व का है कि वो जिम्मेवारी तय करे. एक बाहरी व्यक्ति के रुप में मेरी धारणा है कि कांग्रेस में बेशक बहुत से सद्भाव भरे राजनेता हैं. लेकिन, एक पार्टी के रुप में उनके पास किसी बड़ी ‘अच्छाई’ के लिए कोई साझा रोडमैप नहीं है, पार्टी में बहुत से चतुर लोग हैं. लेकिन उनके पास साझे का कोई विवेक नहीं है, निजी महत्वाकांक्षाएं तो असीमित हैं. लेकिन सत्ता चलाने की वैसी कोई सांस्थानिक इच्छाशक्ति नहीं हैं. जब किसी संगठन में ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है, तो शीर्ष नेतृत्व को जिम्मेदारी लेनी चाहिए. आपने जिम्मेदारी ली और इस्तीफा दिया, यह उचित ही था.
आपने समाधान सुझाया है कि कांग्रेस को पुनर्जीवित करना होगा. लेकिन मुझे लगता है, इस समाधान में बुनियादी समस्या का ध्यान नहीं रखा गया. आज की कांग्रेस वो पार्टी नहीं जिसे आपने अपने इस्तीफे में ‘गहरे इतिहास और विरासत, संघर्ष और गरिमा’ से परिपूर्ण पार्टी के रुप में चिन्हित किया है. आपने जिस पार्टी की अध्यक्षता की वो आज के भारतीयों को गांधीजी, नेहरु, पटेल और आजाद या फिर स्वतंत्रता-संग्राम के हमारे उन मूल्यों की याद नहीं दिलाती जो हमारे संविधान की आत्मा हैं. आज की कांग्रेस लोगों को वंशवादी शासन, पूरमपूर भ्रष्टाचार, लोकतांत्रिक संस्थाओं पर चोट, राजनीतिक संरक्षण मे होने वाले दंगे-फसाद और सियासी लोभ-लालच की याद दिलाती है. मैं इसके लिए आपको या किसी नेता-विशेष को जिम्मेदार नहीं मानता. लेकिन इस सच्चाई से इनकार करना एक मजाक होगा. आज की तारीख में कांग्रेस के आम कार्यकर्ता की विचारधारा किसी बीजेपी कार्यकर्ता से बहुत अलग नहीं है. बिना मीन-मेख निकाले कहें तो आज की कांग्रेस में कांग्रेस नाम के विचार का सार-तत्व ही नहीं है. हम यह मानकर नहीं चल सकते कि समाधान कांग्रेस है. देश आज जिन समस्याओं से जूझ रहा है, कांग्रेस उन्हीं समस्याओं में एक है.
काश कि आप एक और सच्चाई को स्वीकार करते कि समाधान का एक बड़ा हिस्सा आज कांग्रेस में नहीं बल्कि कांग्रेस से बाहर मिलेगा. भारत नाम के विचार पर आज की घड़ी में जो हमले हो रहे हैं. उनसे निपटने के लिए जरुरी ऊर्जा और विचार देश के पास पर्याप्त मात्रा में है. लेकिन, यह ऊर्जा और विचार आपको उन सामाजिक आंदोलनों और संगठनों के पास मिलेंगे जो या तो गैर-राजनीतिक हैं या फिर गैर-कांग्रेसी राजनीतिक धड़ों के साथ हैं. सो, कांग्रेस इस ऐतिहासिक मिशन का अब कोई स्वाभाविक मंच नहीं रही.
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आपने इस्तीफे की चिट्ठी में लिखा है कि ‘कांग्रेस पार्टी को अपने को आमूल-चूल रुप मे बदलना होगा’. मुझे नहीं पता, यहां आपका आशय क्या है. अगर इसका मतलब पार्टी के अधिकारियों को बदलना है, तो फिर यह आपकी पार्टी का अंदरुनी मामला है. अगर आपका आशय पार्टी संगठन को नये सिरे से गढ़ना है, तो फिर मुझे जैसे बाहरी व्यक्ति का इस बाबत कुछ कहना नहीं बनता. लेकिन, मैं इतना जरुर कहूंगा कि मरीज को दवा के जरिये ठीक करने का वक्त अब निकल चुका. मुझे नहीं लगता कि इनमें से कोई काम आपकी पार्टी के बाहर के लोगों के लिए कोई अहमियत रखता है या फिर ऐसा करने से पार्टी उन समस्याओं से जूझने के लिए उठ खड़ी होगी, जो आज देश को घुन की तरह खा रही हैं. मुझे उम्मीद है कि इस बात को समझने के लिए गैर-भाजपायी पार्टियां बीजेपी की तीसरी जीत का इंतजार नहीं करेंगी.
आमूल-चूल परिवर्तन का अर्थ कुछ और भी हो सकता है. इसका एक अर्थ यह भी हो सकता है कि कांग्रेस पार्टी अपने जज्बे और रंग-ढंग में उस भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की ओर लौटे जिसने भारत की आजादी की लड़ाई लड़ी थी. उस वक्त कांग्रेस स्वराज प्राप्ति के साझे लक्ष्य से प्रेरित विभिन्न राजनीतिक-विचारधारात्मक गठबंधन का एक महामंच थी. उस वक्त कांग्रेस में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी और स्वराज पार्टी जैसे सियासी दल भी शामिल थे. हमारा गणतंत्र आज के दिन जिन चुनौतियों से जूझ रहा है उनसे निपटने के लिए हमें तब की कांग्रेस जैसी विराट कल्पना के साथ सोचना होगा. ऐसा अवसरवादी गठबंधन बनाने भर से नहीं हो सकता. तब की कांग्रेस जैसा महामंच खड़ा करने का अर्थ है. हमारे संविधान के बुनियादी मूल्यों की रक्षा के लिए तत्पर लोगों को एकसाथ करना. ऐसा करने का मतलब होगा 12 करोड़ लोगों का समर्थन हासिल करना और कांग्रेस इस परियोजना के लिए अनिवार्य है. बशर्ते वह इस बात को स्वीकार करने के लिए तैयार हो कि आज की कांग्रेस ऐसी व्यापक एकता को धारण कर सकने लायक महामंच नहीं रही.
इस कारण, राहुल! मैं आपसे पूछता हूं कि आप और आपकी पार्टी क्या उस ऐतिहासिक मिशन को पूरा करने के लिए त्याग करने को तैयार हैं. जिसकी आपने बिल्कुल सही पहचान की है ? कुछ लोग कह सकते हैं कि ऐसा करने का अर्थ होगा. आज की कांग्रेस का खात्मा. कुछ और लोग इसे कांग्रेस का पुनर्जन्म बतायेंगे. जहां तक मेरा सवाल है. ऐसा करने का मतलब है अपने गणतंत्र पर फिर से अपना हक जताना. तो फिर, बताइगा कि इस सिलसिले में आप क्या सोचते हैं, राहुल ?
आपका शुभेच्छु,
योगेन्द्र यादव

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