'महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री शिवसेना का ही होगा'

महाराष्‍ट्र में मुख्‍यमंत्री पद पर शिवसेना ने दावा ठोंक दिया है. राज्‍य में विधानसभा चुनाव से पहले शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ के संपादकीय में कहा गया है महाराष्‍ट्र का सीएम तो उनका ही होगा. यह भी इशारा किया गया है कि बीजेपी के शीर्ष नेतृत्‍व से इसपर बात हो चुकी है. पत्र में लिखा गया है कि बीजेपी अध्‍यक्ष अमित शाह और शिवसेना के बीच जो तय हुआ है, वही होगा.
पढ़ें सामना का संपादकीय
“राजनीति में कोई भी सवाल अनुत्तरित नहीं रहता. समय आने पर सभी प्रश्नों के उत्तर मिलते रहते हैं. आड़े, तिरछे शब्दों की पहेली सिर खुजाने के बाद सुलझती रहती है. राजनीति के प्रश्नों की पहेली भी उसी प्रकार से सुलझती रहती है.
महाराष्ट्र में शिवसेना-भाजपा युति के बीच तनातनी हुई थी तब कई लोगों के मन में सवाल था, ‘युति का क्या होगा?’ उसके बाद युति की पहेली सुलझ गई और नया सवाल सामने आया, ‘साहेब, युति हो गई. अब सीटों का बंटवारा कैसे होगा? मतलब समान सीटों की गुत्थी कैसे सुलझेगी?’ सीटों के बंटवारों की गुत्थी सुलझने के बाद लोगों के समक्ष नई पहेली आई. वो थी, ‘साहेब, युति के बिना विकल्प नहीं था. इसकी तो दोनों को आवश्यकता थी. सीटों के बंटवारे का पेंच भी सुलझ गया. लेकिन मुख्यमंत्री पद का क्या? महाराष्‍ट्र का मुख्यमंत्री भाजपा का या शिवसेना का?’
फिलहाल इस सवाल की जुगाली चल रही है. मुख्यमंत्री पद का सवाल तो है ही लेकिन ये उतना जटिल नहीं. भाजपा के कार्यकर्ताओं के सामने उनके नेता कहते हैं, ‘चिंता मत करो, मुख्यमंत्री हमारा ही होगा.’ यहां हम भी कहते हैं, ‘अगला मुख्यमंत्री शिवसेना का ही होगा!’ ऐसा अपने-अपने कार्यकर्ताओं से कहना गलत नहीं है.
भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष रावसाहेब दानवे चंट और दिलदार आदमी हैं. भाजपा के सदस्यता अभियान के उद्घाटन के लिए दानवे संभाजीनगर आए. वहां किसी ने उन्हें छेड़ा, ‘साहेब, भाजपा का मुख्यमंत्री बनेगा क्या?’ इस पर उन्होंने झट से उत्तर दिया, ‘भाजपा का मुख्यमंत्री नहीं होगा, ऐसा कौन कहता है?’ दानवे ने शत-प्रतिशत ठीक कहा.
दानवे की जगह शिवसेना का कोई एकाध नेता होता तो उसने कुछ और कहा होता क्या? ‘शिवसेना का मुख्यमंत्री बनेगा क्या?’ इस सवाल पर दानवे की तरह ही शिवसेना की ओर से भी ‘शिवसेना का मुख्यमंत्री नहीं होगा, ऐसा कौन कहता है? वो तो होकर रहेगा!’ ऐसा ही उत्तर मिलेगा.
हालांकि ये प्रश्न और पहेली पत्रकारों के समक्ष उपस्थित हुई है. मुख्यमंत्री शिवसेना और भाजपा का ही होगा. महाराष्ट्र के लोकसभा चुनाव के नतीजे क्या कहते हैं? राज्य में शिवसेना-भाजपा युति पर जनता ने विश्वास जताया है.
कल विधानसभा चुनाव भी ‘युति’ भारी बहुमत से जीतनेवाली है. राज्य को सुव्यवस्थित करने और लोगों के अच्छे दिन आने के लिए ही सत्ता पाने का हमारा उद्देश्य है. सत्ता की चाबी हमें जनता को या राज्य को लूटने के लिए नहीं चाहिए. ‘युति’ की गांठ अच्छे के लिए ही बांधी गई है. सत्ता या पद का अमरपट्टा बांधकर कोई इस दुनिया में नहीं आता. सभी को एक-न-एक दिन खाली हाथ जाना है, इसे याद रखना चाहिए.
राजनीति के बड़े-बड़े सिकंदर गत १०-१५ वर्षों में कैसे मिट्टी में मिल गए ये हम सबने देखा है. शेष पीछे रह जाता है वो सिर्फ इंसान का कर्म. वही इतिहास के पन्नों में दर्ज रहता है. हिटलर याद रहता है विश्वयुद्ध के कारण और बाबा आमटे याद रहते हैं अपने सामाजिक कार्यों के कारण. गांधीजी तो देश के साथ ही पूरे विश्व के राष्ट्रपिता बने. इंदिरा गांधी याद रहती हैं पाकिस्तान की दो फाड़ करने और शौर्य के कारण. अटल जी जैसे व्यक्तित्व कवि हृदय और प्रखर राष्ट्रवादी के रूप में अमर हो गए. शिवसेनाप्रमुख बालासाहेब ठाकरे के महाप्रयाण के पश्चात आंखों में अश्रु लिए उनके विजय और सत्कार्यों के नारे लगाते हुए पीछे चलनेवाली 40-50 लाख की भीड़ शिवसेनाप्रमुख के उत्तुंग कर्तृत्व का साक्षात उदाहरण थी. बालासाहेब तो मुख्यमंत्री भी नहीं थे और न ही पूर्व प्रधानमंत्री थे. हालांकि 50-60 साल उन्होंने जनता को बहुत कुछ दिया.
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आज मुख्यमंत्री कुर्सी पर हैं इसलिए सत्ताधीश हैं. बाद में कौन पूछता है? देश के ऐसे कई ‘पूर्व’ आज भी गुमनामी के अंधेरे में खो गए हैं. महाराष्‍ट्र का भविष्य शिवसेना ने ही बनाया है. मराठी की लड़ाई हो या महाराष्ट्र की अखंडता का मामला या रोजगार और किसानों का मामला हो. शिवसेना मजबूती के साथ उनके साथ खड़ी रही.
कहा जाए तो हम आज सत्ता में हैं. कुछ मामले कठिन या पेचीदे हो सकते हैं लेकिन सत्ता में रहने के बावजूद फसल बीमा योजना की गड़बड़ से हमने किसानों को बाहर निकालने का समानांतर काम शुरू किया. शिवसेना का मुख्यमंत्री कुर्सी पर होता तो भी हम इससे अलग कुछ नहीं करते. महाराष्‍ट्र का मुख्यमंत्री शिवसेना का हो, जो कि बनेगा ही लेकिन ये कोई न सुलझनेवाली पहेली नहीं है. भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और हमारे बीच जैसा तय है वैसा ही होगा.
इस पहेली को पहले ही सुलझा लिया गया उत्तर समय आने पर ही पता चलेगा. तब तक भाजपा और शिवसेना के लोगों को ‘युति’ को ठेस न पहुंचाते हुए बोलते रहना है, ‘मुख्यमंत्री, हमारा ही! ऐसा हमारे बीच तय है!’ युति की जीत का इसके अलावा कोई दूसरा ‘फॉर्मूला’ नहीं हो सकता.
रावसाहेब दानवे का कितना आभार माना जाए. उन्होंने मुख्यमंत्री पद के संदर्भ में भाजपा की पहेली को सुलझाया और शिवसेना को भी पहेली सुलझाने में मदद की. मुख्यमंत्री हमारा ही! एक बार दोनों के बीच तय हो चुका है तो मुफ्त का विवाद क्यों?”

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