कमलनाथ के व्यापम ‘बंद’ करने से क्या रुक जाएगा भ्रष्टाचार?

घोटाले के कारण राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मध्य प्रदेश की भद पिटाने वाले व्यापमं यानी व्यावसायिक परीक्षा मंडल को कमलनाथ सरकार ‘बंद’ करने जा रही है। विधानसभा चुनाव 2018 के चुनावी घोषणा पत्र में कांग्रेस ने सरकार बनने पर व्यापमं के ढाँचे को बदलने का वादा किया था। उसी वादे के तहत प्रदेश सरकार व्यापमं को बंद कर उसकी जगह राज्य कर्मचारी आयोग के गठन की तैयारी में है।
व्यापमं 1982 में अस्तित्व में आया था। मध्य प्रदेश के सरकारी मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों में दाखिले की प्रक्रिया की शुरुआत व्यापमं ने की थी। पीईटी यानी प्री-इंजीनिरिंग टेस्ट और पीएमटी यानी प्री-मेडिकल टेस्ट सरकारी इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के लिए होते थे। शासकीय विभागों में रिक्त पदों पर भर्ती का सिलसिला भी व्यापमं के ज़रिए शुरू हुआ था। व्यापमं के गठन के कुछ सालों बाद ही इसकी पारदर्शिता को लेकर सवाल उठना शुरू हो गए थे। कई बार गड़बड़ियों के आरोप भी व्यापमं के ज़रिए होने वाली परीक्षाओं में लगे। कई बार धाँधली छिटपुट होने की वजह से ज़्यादा ध्यान लोगों का इस पर गया ही नहीं।
शिवराज सरकार में भर्ती और परीक्षाओं में धाँधली को लेकर व्यापमं के ख़िलाफ़ पहली बार एफ़आईआर 2009 में हुई। एफ़आईआर होने पर हंगामा मचा। राज्य सरकार ने तमाम धाँधलियों की शिकायतों की जाँच के लिए एक कमेटी का गठन भी किया। साल 2013 में व्यापमं तब देशव्यापी सुर्खियों में आया जब इंदौर पुलिस ने मेडिकल दाखिले के लिए अभ्यर्थियों की जगह दूसरों को परचा देते 20 ‘मुन्ना भाइयों’ को पकड़ा।
मामला सामने आने के बाद तब के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक एसआईटी गठित कर दी। एसआईटी ने जाँच शुरू की तो प्याज के छिलकों के तरह एक के बाद एक चौंकाने वाली धाँधलियाँ सामने आती चली गईं। जाँच की आँच सरकार पर भी आयी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती और कई नामी-गिरामी चेहरों पर भी छींटे पड़े। मध्य प्रदेश के राज्यपाल रहते रामनरेश यादव का नाम भी इस घोटाले में आया। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पूरे घोटाले से जुड़ी ख़बरें छपीं।
कोर्ट-कचहरी के बीच पूरा मामला सीबीआई ने अपने हाथों में ले लिया। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह से इस्तीफ़े की माँग भी हुई। उनकी कैबिनेट के एक मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा को जेल हुई। शर्मा के नज़दीकी लोगों को भी जेल की हवा खाना पड़ी। व्यापमं के परीक्षा नियंत्रक पंकज त्रिवेदी, प्रधान सिस्टम विश्लेषक नितिन महेन्द्र समेत दर्जनों मुलाजिम पूरे घालमेल में लिप्त पाए गए। कई आईएएस अफ़सरों के नाम भी आरोपियों की सूची में रहे। हालांकि बाद में अधिकांश नौकरशाहों को पर्याप्त साक्ष्य के अभाव में पुलिस जाँच में ही ‘क्लीनचिट’ मिल गई। इधर सीबीआई ने भी अपनी जाँच में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को निर्दोष क़रार दे दिया।
व्यापमं घोटाले से जुड़े तीन दर्जन लोगों की मौत
मध्य प्रदेश में व्यापमं घोटाला सामने आने और एसटीएफ़ की जाँच बैठने के बाद इस घोटाले से किसी ना किसी रूप में जुड़े रहे क़रीब तीन दर्जन लोगों की मौत अब तक हो चुकी है। स्वयं एसटीएफ़ ने अपनी जाँच रिपोर्ट में माना है कि 32 लोग मारे गये हैं। ज़्यादातर मौतें बीमारी, और कई मौतें व्यापमं जाँच से घबराकर ख़ुदकुशी कर लेने की वजह से होना पाया गया है। इन मौतों को लेकर भी ख़ूब सवाल उठे हैं और तमाम राजनीति हुई है।
सरकार की क्या है योजना?
कमलनाथ सरकार चुनावी घोषणा पत्र के अनुसार व्यापमं को बंद करने जा रही है। व्यापमं को बंद करने संबंधी प्रस्ताव तैयार होने की ख़बर है। व्यापमं की जगह राज्य सरकार कर्मचारी चयन आयोग का गठन करने वाली है। मध्य प्रदेश के गृह मंत्री बाला बच्चन ने मीडिया से कहा है, ‘चुनाव के पूर्व जनता से जो वादा किया था, उसे पूरा करेंगे। व्यापमं के रिस्ट्रक्चरिंग की तैयारी सरकार कर रही है। नया स्वरूप जल्दी ही सामने आ जायेगा।’
क्या सिर्फ़ नाम बदलने से बात बनेगी?
व्यापमं घोटाले को उजागर करने और मामले के उजागर होने के बाद से इस पूरी लड़ाई को हर स्तर पर लड़ने के प्रयास में जुटे रहे और व्यापमं घोटाले के व्हीसिल ब्लोअर डॉक्टर आनंद राय ने ‘सत्य हिन्दी’ से कहा, ‘केवल नाम बदलने से बात बनने वाली नहीं है। पारदर्शिता और मज़बूत निगरानी तंत्र के बिना बेईमानी नहीं रुकेगी।’ डॉक्टर राय कहते हैं अब तो नीट यानी नेशनल एलिजिबिलिटी कम एट्रेंस टेस्ट की परीक्षाओं में घपले सामने आ रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘मध्य प्रदेश व्यापमं का नया ढाँचा यूपीएससी परीक्षाओं वाले सिस्टम की तरह लागू होने पर ही बात बनेगी।’
राय सवाल उठाते हैं, ‘कांग्रेस ने सरकार में आने पर व्यापमं के दोषियों को सीखचों में भिजवाने का भी संकल्प जताया था। एसटीएफ़ ने 100 एफ़आईआर दर्ज की थीं, कमलनाथ सरकार उन्हें फिर क्यों नहीं खोलती है? सीबीआई के समक्ष हुई 170 के क़रीब एफ़आईआर से जुड़ी जाँच की पूरी प्रगति रिपोर्ट कोर्ट के सामने रखने के लिए दबाव क्यों नहीं बनाया गया?’ 

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