पश्चिम बंगाल नहीं बनेगा 'बांग्ला', केंद्र ने ठुकराया ममता सरकार का प्रस्ताव

केंद्र ने ममता सरकार के पश्चिम बंगाल का नाम बदलने के प्रस्ताव को ठुकरा दिया है। पिछले साल 27 जुलाई को पश्चिम बंगाल विधानसभा ने राज्य का नाम बदल कर तीन भाषाओं बांग्ला, अंग्रेजी और हिंदी में 'बांग्ला' रखने का प्रस्ताव पारित किया था।ममता बनर्जी सरकार ने इससे पहले साल 2011 में राज्य का नाम बदल कर पश्चिम बंगो रखने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन केंद्र ने वह प्रस्ताव भी खारिज कर दिया था।

इसके बाद  29 अगस्त, 2016 को सदन में आम राय से पारित एक विधेयक में तीन भाषाओं में तीन अलग-अलग नाम रखने का फैसला किया था। उसके मुताबिक इसका नाम बांग्ला में बांग्ला, अंग्रेजी में बेंगाल और हिंदी में बंगाल रखा जाना था। लेकिन केंद्र सरकार ने इस पर आपत्ति जताई थी।
जानिए क्या है राज्यों के नाम बदलने की प्रक्रिया
भारतीय संविधान में अनुच्छेद 3 के अंतर्गत राज्यों की सीमा, नाम और क्षेत्र में परिवर्तन के लिए संसद की एक खास प्रक्रिया का पालन करना होता है। इनके अनुसार संसद कानून बनाकर निम्नांकित कार्य कर सकती है:
  • नए राज्य का निर्माण
  • किसी राज्य के क्षेत्र में विस्तार
  • किसी राज्य के क्षेत्र को घटना
  • किसी राज्य की सीमाओं को बदल देना
  • किसी राज्य के नाम में परिवर्तन
प्रक्रिया-
जिस राज्य का नाम, सीमा, क्षेत्र बदला जाना है उस राज्य का विधानमंडल इस विषय में एक प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजेगा। इस प्रस्ताव पर राष्ट्रपति का अनुमोदन प्राप्त करना अनिवार्य है। अनुमोदन के बाद केंद्र सरकार उस प्रस्ताव को फिर से सम्बंधित राज्य/राज्यों के विधानमंडल को अपना विचार रखने और एक निश्चित समय के अन्दर उसे संसद में प्रस्तुत करने के लिए कहेगी।

राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित समय-सीमा को ध्यान में रखते हुए विधान मंडल द्वारा विधेयक को वापस संसद के पास भेजा जाता है। राष्ट्रपति अगर चाहें तो वह इस समय-सीमा को बढ़ा भी सकते हैं। संसद, विधान मंडल द्वारा भेजे गए विधेयक को मानने के लिए बाध्य नहीं है। यदि संसद चाहे तो साधारण बहुमत द्वारा राज्य के विधानमंडल की राय को खारिज कर सकती है। राज्य विधानमंडल को विधेयक भेजने का प्रावधान मूल संविधान में नहीं था बल्कि इस प्रक्रिया को 5 वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1955 में जोड़ा गया था।

More videos

See All